गढ़वाली कहानीः छठों भै कठैत की हत्या!
• भीष्म कुकरेती /
हौर क्वी हूंद त डौरन वैक पराण सूकि जांद पण मेहरबान सिंग कठैत त राजघराना को संबंधी छौ राजा प्रदीप शाह को खासम ख़ास महामंत्री पुरिया नैथाणी सनै कौरिक खड़ो ह्व़े अर वैन कैदी मेहरबान सिंग कठैत तैं द्याख. फिर पुरिया नैथाणी न मेहरबान कठैत को तर्फां देखिक, घूरिक ब्वाल,“ओह! कठैत जी! जाणदवां छंवां तुम पर क्या अभियोग च?“
मेहरबान सिंग कठैत न जबाब दे,’पुरिया बामण जी! अभियोग? जु म्यार ब्वाडा क नौन्याळ पंचभया कठैत तुमर पाळीक बजीर मदन सिंग भंडारी, हमर बैणिक जंवैं भीम सिंग बर्त्वाल जन लोकुं ळीोंन दसौली ज़िना नि मारे जांद अर तुम पकडे़ जांद त तुम क्या जबाब दीन्दा? बामण जी जरा जबाब त द्याओ.“
पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“खैर.. हाँ त! खंडूरी जी! डोभाल जी! जरा हम सब्युं समणि मेहरबान सिंग कठैत पर क्या क्या अभियोग छन सुणाओ.!“खंडूरी न पुरिया नैथाणी, भीम सिंग बर्त्वाल, मदन भंडारी, सौणा रौत, भगतु बिष्ट, डंगवाल, भागु क नौनु सांगु सौन्ठियाल अर सात आट और मंत्र्युं ज़िना देखिक ब्वाल,“
मेहरबान सिंग कठैत क भायुं – सादर सिंग, खड्ग सिंग आद्युं न जनता पर स्युंदी सुप्प डंड, हौळ डंड, चुल्लू डंड, सौणि सेर जन क़र लगैन अर जनता तैं राणि राज अर प्रदीप शाही खिलाफ कार.“
मेहरबान न बेधडक ब्वाल, ”डंड लगाण त क्वी राजशाही कि खिलाफात नी होंद. राजाक बान इ कर लगयेगेन.“
सांगु सौन्ठियाल न ब्वाल, ’पण जब कर राजकोष मा आओ त ठीक छौ. भाभर, रवाईं से लेकि बद्रीनाथ तक इन दिखेगे कि डंड को तीन चौथे से बिंडि भाग तुम कठैत भयूँ न गबद कॉरी. गबन कौरी.“
अबै दें दिवाकर डोभाल न ब्वाल, ’अर फिर कठैत भायुं न कथगा काम का मंत्र्युं जन शंकर डोभाल, गंभीर सिंग भंडारी, भागु सौन्ठियाल की बर्बर हत्या कराई.“
मेहरबान सिंग न ब्वाल,“ठीक च त आप लोकुं न म्यार ब्वाडा क पंची नौन्याळू हत्या कौरी आल. अब में फर क्यांक अभियोग?“
भीम सिंग बर्त्वालन ब्वाल,“मेहरबान जी तुम पर इ त बड़ो अभियोग लगण चयेंद. हम सौब तैं पता च बल पंच भया कठैतऊं असली दिमाग त तुम छ्या. अर को नि जाणदो बल तुम इ त कर चोरीक धन का हिसाब किताब दिखदा छया.“
पुरिया नैथाणी क आंख्युं सैन से एक सिपै न मेहरबान कु गात पर बंध्युं लगुल खैंच अर मेहरबान तैं चलण पोड़. दगड मा मेहरबान क दगड का कैदियूँ तैं बि म्वाटा लगुलोँ से खिंचेगे अर सौब कैदि चलण बिसेन.
एक उड़्यार जन कूड़ सि कुछ छौ. उख मेहरबान अर हौरी कैदि बि लएगेन. दगड़ मा सबि मंत्री बि छ्या.
एक मंत्री भंडारी न क्रूरता से ब्वाल,“ देख बै मेहरबान!.तयार दगड़ माका चार अपराध्युं तैं एक एक कौरिक फांसी दिए जाली. अर देख ली कन फांसी दिए जाली.“
सब्युं न द्याख कि मथि बौळी पर एक बड़ो म्वाटो ज्यूड़ जन डुडड़ा छौ. ज्यूड़ पर कैदिक गौळु बंधे जांद छौ अर फिर वै तैं छटाक से तौळ छुडे जांद छौ. भंडारी न ब्वाल,’फांसी ऊं तैं इ दियी जाली जौन कम अपराध कार.“
फिर सौब हैंक उड़्यार ज़िना ऐन जख मथि जंदर बरोबर बडी बडी पथरौ जंती छौ. कैदी तैं तौळ पड़ळे जांद छौ अर फिर मथि बिटेन पथरौ जंती डुड़डों मदद से छुडे जांद छौ. अर य़ी जंती मोरण वाळक गात तैं तब तक थींचदा छ्या जब तलक मोरण वाळक ह्ड्की बूरा नि बौणि जवान.
हैंक उड्यारम राम तेल गाडणो इंतजाम छौ. कैदिक मुंड सुधारीक वै तैं जिन्दो इ उलटो लटगये जांद छौ अर तौळ बडी कढाई चुल्ल मा धरीं रौंदी छे. फिर एक सुव्वा से कैदिक मुंड पर दुंळ करे जांद छे. धीरे धीरे कौरिक कैदिक ल्वे/खून गरम तचीं कढ़ाई मा टपकदो छौ अर फिर धीरे धीरे तेल जन बौण जांद छौ.कैदी भौत देर तलक ज़िंदा रौंद छौ अर यो डंड भौत इ खतरनाक, बीभत्स निर्दयी डंड माने जांद छौ. राम तेल की सजा बिरला इ लोगूँ तैं दिए जांद छे. एक हैंको मिरतु दंड को इंतजाम बि छौ जख मथि बिटेन पैनी कील लग्यां जंदर जन चल्ली अपराधी मनिख मा फिंके जांद छया
इन भयानक भिलंकर्या मिरतु दंड सजा दिखाणो गाऊँ क सयाणो तैं बुलये जांद छौ जां से प्रजा मा राजाक डौर ह्वाओ. पुरिया नैथाणी न ब्वाल,“मेहरबान सिंग जी आप तैं कठैत भायूं तै सहयोग दीणो बान पन्दरा गति ’राम तेल गाडणो’या क्वी हौरी सजा दिए जाली.
फिर मेहरबान सिंग तैं वीं जगा लयेगे जो जघन्य अपराध्युं बान बणी छे. वैक दगड्यों तैं कख ल्हिजयेगे वै तैं कुछ नि बतयेगे.मेहरबान सिंग कठैत तैं मरणो डौर उथगा नि लगणो छौ जथगा डौर मिरतु मा देर हूण से लगणि छै. हिमाचल या इख सिरीनगर मा राजघराना मा हूण से वो जाणदो छौ कि मंत्री या वैका पाळी दारूं मुंड धळकाण आम बात च. मेहरबान सुचदोगे पण पुरिया नैथाणी हैंको लुतको/हाड मांस को मनिख छौ. सौब भयुं तैं वैन जान से मरवै दे पण मी तैं जिंदु इ पकड़वाई. जरूर ओ मेरो मिरतु डंड तैं इथगा बीभत्स बणालो कि क्वी हैंको मनिख वैको विरुद्ध हूणो सोची बि नि साको. मेहरबान तैं राजघराना मा रैक पता छौ बल मिरतु डंड मा जथगा देर लगद वो डंड वो उथगा इ तरास दिन्देर होंद.
य़ी कुठड़ी ब्वालो या उड़्यार औ जेल ब्वालो क बारा मा मेहरबान तैं कुछ कुछ अन्थाज त छौ. जब रात अलकनंदा क स्वां स्वां से वै तैं निंद नि आई त वो समजीगे कि या जगा कखम च. वो शिरीनगर कम इ आंदो छौ. बदरीनाथौ रस्ता मा खांकरा मथि अर फतेपुर औ तौळ वैको घौर छौ पंच भया कठैत सला मसवरा लीणो बान या राजकोष से लुकयूँ धन दीणो वै तैं शिरीनगर बुलान्दा छया. मेहरबान न य़ी कोठड़ी बारा मा सुणी छौ.क्वी अलकनंदा ज़िना भागल त सीधो रौड़ीक गंगळ इ जालो अर हैंक तरफ सिपयों जाळ अर बीच बीच मा पाणी ढंडीयूँ से क्वी नि बची सकदो छौ.
राजघराना परिवारौ हूण से वै तैं कैदखाना से भगणै सुजणि इ छे. कैद से भगणो मतलब जिन्दगी. सुबेर दिन मा या स्याम दै तीन चार भृत भुर्त्या आंदा छ्या. एक सुबेर जौ क सतु दे जांद छौ. दिन मा हैंको जौ क रुटि प्याज अर एक छ्वटि कंकरी लूणै देण वाळु पर वै तैं भर्वस नि होणु छौ. हाँ स्याम दै कुठड़ी से भैर दिवळ छिल्ल जगाण वळु अर जौ को बाड़ी, बाड़ी दगड़ो वास्ता लुण्या पाणि दीण वळ पर कुज्याण किलै भर्वस होण लगे बल यो ई मनिख कामौ च.
तिसर दिन वैन स्याम दै वळु भुर्त्या /भृत तैं पूछ,“त्यार नाम क्य च?“
“म्यार नाम फगुण्या नेगी च.“भृत न जबाब दे
मेहरबान न पूछ,“नेगी जी तुम जाणदा छंवां बल पन्दरा गति औंसी दिन म्यार रामतेल गाडे जालो या कुचः बडी भयानक सजा?.“
“हाँ सूण त मीन बि इन्नी च बल तुम तैं उलटो लटगैक मुंड पर स्यूण न दुंळ कौरिक तुमारो खून से रामतेल गाडे जालो.“फगुण्या न जबाब दे
थोड़ा देर तलक मेहरबान क पुटुकउन्द डौरन च्याळ पोड़ना रैन. मुंड बिटेन जरा जरा कौरिक गर्म कढ़ाई मा खून टपकणो बारा मा सोचिक वै तैं डौरन उकै/उल्टी आणो ह्व़ेगे. फिर कैड़ो जिकुड़ी कौरिक मेहरबान न पूछ,“त स्याम दें तू इ मेरी टहल सेवा मा रैली?“
फगुण्या न सुरक सुरक बाच मा ब्वाल,“हाँ जब तलक मथि वाळ चाल त स्याम दै मी इ तुमारि नेगिचारी, सेवा टहल मा रौलू.हाँ जु तुम जोर से बोलिल्या या मी जादा देर तलक तुमारो दगड छ्वीं लगौलू त ह्व़े सकद च मेरी जगा क्वी हैंको भुर्त्या (भृत) ऐ जालो.“
मेहरबान समजीगे कि यू फगुण्या कुछ ना कुछ मदद दीणो तैयार ह्व़े जालो. वैदिन इ फगुण्या न बथों बथों मा बताई बल कठैतूं एक खाश भुर्त्या घुगतू रौत तैं लाल गरम तवा मा नचै नचै क मारेगे. फगुण्या न बथै जब घुगतू रौत तैं लाल लाल गरम तवा मा नचाणा छया त वैक ऐड़ाट भुभ्याट, रूण-धूण सूणिक राणि बि बिज़ीगे छे बल. घुगतु रौत क किराण से कत्ति बाळ/बच्चा छळेगेन बल. मंत्री पुरिया नैथाणि न फिर राणी सणि समजाई बुझाई बल बिद्रोहियों तैं इनी निर्दयी पन से डंड्याण चएंद जां से हौर क्वी बि राजशाही बिरुद्ध सोचो इ ना.
रात भर अलकनंदा क स्यूंसाट अर घुगतु राउत को लाल लाल गरम तवा मा नचाणो बारा मा सोचिक सोचिक मेहरबान तैं निंद नि ऐ. जरा सी निंद आणो ता मेहरबानो आंख्युं मा गरम लाल लाल लोखरै पटाळ जै लोखरै पटाळ तौळ म्वाटा म्वाटा गिंडा जळणा छन अर अळग मा घुगतू रौत केवल नाची इ सकुद छौ. खड़ी दीवार इन छे कि क्वी बि कुछ नि कौरी सकुद छौ. बस मोरण वाळ रोई इ सकुद छौ अर नाची सकुद छौ। मेहरबान तैं याद आई बल जब खड्ग सिग कठैत न शंकर डोभाल का एक खास समर्थक घोगड़ बिष्ट तैं लाल लाल गरम तवा मा नाचणै सजा दे छौ त तब मेहरबान न गरम तवा मा घोगड़ बिष्ट क नचण क्या जिन्दगी से संघर्ष देखी छौ. जब लोखरै पटाळ कम गरम छे त घोगड़ बिष्ट किराणो छौ बल,“मी तैं कुलाड़ी न मारी द्याओ.. ए ब्व़े.. मेरी मौण धळकै द्याओ पण इन तरसे तरसेक नि मारो’. धीरे धीरे घोगड़ बिष्ट केवल किराणो इ छौ. अर जथगा बि दिखण वाळ छ्या वो हंसणा छया. तब मेहरबान बि हंसणो छौ.
चौथू दिन स्याम दै फगुण्या आई, भैर दिवळ छिल्ल जळैक वैन बथाई बल आज कठैतूं घोर पाळीदार मंगला नन्द मैठाणी तैं घणो जंगळ मा लिजयेगे अर उख खड्डा पुटुक किनग्वड़ो, हिसरौ काण्ड अर दगड मा कळी बुट्या डाळेगेन अर फिर मंगला नन्द मैठाणी तैं जिंदु वै खड्डा मा डाळेगे. फगुण्या न अगने बथाई बल सौब बुना छया बल भोळ या पर्स्युं तक मंगला नन्द मैठाणी तरसी तरसी क मोरी इ जालो. यीं बात सूणिक मेहरबान सिंग क अंग फंग कामीगेन.
फिर फगुण्या न अपण खिसा उन्दन द्वी बड़ो प्याजौ दाण अर पांछ छै कंकर ल़ूणो निकाळ अर कोठड़ी क जंगला बिटेन मेहरबान तैं पकडै क ब्वाल. ”कनि कौरिक बि मी अपण घौरन यूं चीजुं तै लौंउ. बाड़ी मा या रुट्टी मा…“
मेहरबान न ब्वाल, ’हूँ! ज्यू त इन बुल्याणु कि त्वे तैं भौत सा इनाम किताब द्यों पण इख मीम क्या च? खन्नू बि नी च.“
फगुण्या न कुछ नि ब्वाल पण मेहरबान न ब्वाल,“हाँ जो बि मेरी सेवा टहल करदारा रैन मीन ऊं तैं खूब इनाम दे.पण आज त्वे तैं मी क्या द्यूं?“
“नै जी! मी तैं बदरीनाथै किरपा से तनखा मिलदी छें च. इनाम किताब कि क्या बात?“फगुण्या न ब्वाल.
मेहरबान न कनफणि सि, अजीब सि भौण मा ब्वाल,’हाँ तनखा अलग बात च अर मातबर, थोकदारूं थोकदार मेहरबानौ तर्फां न इनाम किताब अलग इ बात च. चार दिन पैलि मींमंगन इनाम पाणो बान ढांगू, उदैपुर, रवाईं, बदलपुर, माणा, जन दूर जगौं बिटेन उखाक थोकदारूं पंगत लगीन रौंदी छे.“
फगुण्या न बोली,’जी! जाणदो छौं.“
मेहरबान न सुरक ब्वाल,“क्या बात नेगी जी तुम भौत मातबर छं वां क्या?“
फगुण्या न जबाब दे, केक मातबर! मी बि ढांगू क छौं जख जौ बि उथगा नी होन्दन जथगा इना ग्युं होन्दन.गरीब इ छौं.“
“मि तुम तैं मातबर बणै सकुद छौं….? ’मेहरबान न भौत इ भेद भोरीं भौण मा ब्वाल.
’सची! तुम मि तैं मातबर बणै सकदवां क्या? ब्वालो क्या काम करण? ’फगुण्या न बि भेद भरीं बाच मा पूछ.
’हाँ….जु तुम मेरी मदद करील्या त..!“मेहरबान सिंग न सरासरी ब्वाल.
फगुण्या न पूछ,“ब्वालो! काम क्या च..?“
इथगा मा भैर ज़िना कुछ छिड़बिड़ाट ह्व़े. फगुण्या सुरक सुरक न ब्वाल, ’म्यार पैथर बि राजा क हौरी सिपै लग्यां रौंदन कि मि कखी..
तुमारि मदद त नि करणु होऊँ.बकै बात भोळ करला…हाँ.. मि अबि भैर कैदखाना क जग्वाळी मा जाणु छौं.“
आज मेहरबान तैं अलकनंदा क स्युंसाट से फ़रक नि पोड़ पण द्वी बतुं से आज रात बि निंद नि आई. एक तरफ मेहरबान तैं पूरो भरवास हैगे कि फगुण्या लालच मा ऐगे अर अब मेहरबान तैं कैदखाना से भगण मा मदद मीलली इ. पण जनि मेहरबान मंगला नन्द मैठाणी तैं काण्ड अर कळी पुटुक मारेगे कि याद आँदी छे त सरा आसा पर बणाक लगी जांदी छे.
मेहरबान न काण्ड अर कळी से कन मौत होन्द् दिखीं छे.जब पंच भै कटोचूं तैं भट्ट सिरा मा कत्ले आम करेगे छौ त सिरीनगर मा असली राज मेहरबानौ ब्वाडौ नौनुं ह्व़ेगे छौ. कठैतूं न कटोचूं ख़ास ख़ास पाळीदारूं तैं इन निर्दयी सजा दिएगे कि कटोचूं मौतौ दसों दिन बिटेन सिरीनगर मा बुल्याण बिसेगे बल अब त राणी राज नी च बल्कण मा असल राज त कठैतगर्दी को च.
वै दिन मेहरबान सुदन सिंग कठैत क बुलण पर कटोचूं खासम खासदार भक्तु डिमरी क सजा दिखणो जंगळगे. एक खड्डा पुटुक किनग्वड़, हिसरूं काण्ड आर दगड़ म कंडाळी क बुट्या डाळेगेन अर फिर उख पुटुक जोर से भक्तु डिमरी तैं जिंदु इचुलयेगे. भौत देर तलक भक्तु डिमरी किराई छौ, ऐड़ाइ छौ. फिर ऐड़ाट भुभ्याट खतम ह्व़े बस भक्तु डिमरी क कणाट इ कणाट छ्या. अर फिर ल्वे बौगण से कणाट बि नि राई बस भक्तु डिमरी किनग्वड़, हिसरूं काण्ड आर दगड़ म कंडाळी म उन्द -उब हो णु रै.
जन बुल्यां क्वी मर्युं मनिख अफिक बचणो कोशिश करणो ह्वाऊ. पीला, हौरा काण्ड अर कंडळी लाल ह्व़ेगे छ्या. जब भक्तु डिमरीक कणाट बन्द ह्व़े त सुदन सिंग कठैत अर मेहरबान सिंग कठैत सिरीनगर ऐगेन. दुसर दिन फिर सुदन सिंग कठैत अर मेहरबान सिंग कठैत भक्तु डिमरी क लाश दिखणोगेन (कि क्वी वै तैं बचाओ ना ). सुदन सिंग तैं त ना पण मेहरबान सिंग तैं उल्टी ऐगे. सरा खड्डा क काण्ड कंडाळी भूरिण भूरिण रंग मा बदलीगे छौ अर सरा खड्डा मा किरम्वळ, सिपड़ी अर छ्वटा-बड़ा कीड़ो सळाबळी मचीं छे. सड्याणि न बि सब्यूँ तैं उकै सि आणि छे.
एक तरफ भक्तु डिमरी क सजा कि याद से डौर अर दुसरी तरफ फगुण्या की मदद से कैदखाना बिटेन भजणै बडी आस. मेहरबान न सोची आली छौ कि भोळ कन कौरिक फगुण्या तैं लोभ मा संस्याण. मेहरबान न घड्याइ कि फगु ण्या तैं आधा खजानों दिए बि जावो तबी बि खजानों मा इथगा माल च बल कि आधा गढ़वाळ मोले सक्यांद च. फिर कन कौरिक बि वो खजाना लेकी ळीरद्वार या बिजनौर ज़िना भाजी जाल अर उख फिर धन का बल पर भौं कुछ करे सक्यांद. त मेहरबान तैं कैदखाना से भैर हूण जरूरी च.
मेहरबान न पक्को इरादा कौरी याल कि कैदखाना बिटेन भगण इ च, अर भाजी नि सौकल त कुज्याण वै तैं क्वा निरदै सजा दिए जांद धौं. मेहरबान सिंग इथगा त जाण दो छौ बल ज्वा बि सजा/डंड होली वा भयानक इ होली. भयानक सजा को भयंकर / भिलंकारि डौर अर कैदखाना बिटेन ळीरद्वार /बिजनौर ज़िना भगणो आस का बीच मेहरबान सिंग सरा रात झुल्याणो राई. आज दिन भर मेहरबान सियूँ सी रै पण वै पर डौर अर आसा क दौरा बि पड़णा इ रैन.
स्याम दें फगुण्या आई अर वैन बथै बल कठैत भायूं क घोर पाळीदार टिहरी को सुबान सिंग थोकदार तैं भितर ग्वडै मा तमाखू अर सुरै लखडों धुंवा देक सजा दिएगे. मेहरबान तै भितर ग्वडै मा धुंवां देक सजा दीणो सौब पता छौ. वैक कठैत भैयुं न बि कटोच भयात अर डोभाल, भंडारी जन लोकुं क कति पाळीदारूं तैं भितर ग्वाडिक तमाखू अर सुरै क धुंवां से मार. खिराणि न खांसी खांसी क मनिख मोरी जांद छौ. फिर से मेहरबान की आस खतम हूंदगे अर डौर भितर आन्दगे. निर्दयी सजाऊं याद कौरिक इ मेहरबान क पुटुकुंद च्याळ पोड़ण बिसेगेन. मेहरबान बिसरीगे बल वैन त फगुण्या तैं लालच देक, पटैक कैदखाना बिटेन भगणो कौंळ/योजना बणाण छे. पन कुज्याण भौत देर सजों तलक डौर से वो अद्बकायुं सी गाणि मा चलेगे. फिर आस वैक भितर बैठ. भौत देर परांत मेहरबान न पूछ,“मातबर बणनो कि ना?“
फगुण्या न जबाब दे,“यीं दुन्या मा क्या गरीब क्या कुबेर बि हौर अमीर होण चाणा छन. मी त एक गरीब मनिख छौं.“
मेहरबान समजी गयो बल फगुण्या लालच मा ऐगे. मेहरबान न,“मि त्वे तैं इथगा मातबर बणै सकुद कि तुमारा चालीस पुस्त बि कुछ नी कौरन तो बि से-से की जिन्दगी काटे जै सक्याली.“
फगुण्या क आंख्युं मा जैंगण जन उज्यळ देखिक मेहरबान न बोलि,“पण यांखुण मै तैं कैदखाना से भैर हूण पोड़ल.“
फगुण्या न लळसे क पूछ,“मतबल?“ मेहरबान न बोली,“हम कठैतूं मा हमर अर कटोचूं क दबायूँ खजानो अबि बि च. जो खजाना पुरिया नैथाणी या हमर रिश्तेदार बर्त्वाल न लूठी वैक समणि जु अबि लुकायुं खजाना च कुछ बि नी च. मी बुलणु छौं तेरी चालीस पुस्त बगैर कुछ कर्याँ खै सकदी. बस मै तैं भैर होण पोड़ल. अर त्वे तैं मि तैं खजानों तलक लिजाण पोडल. जु तू मि तैं खजानों तलक सही सलामत ली जैली त त्याई हिस्सा त्यार. अर जु हम वै खजानों तैं हरद्वार ली जाण मा सफल ह्व़े जान्द्वां त खजाना अदा अदा. अदा खजानों क मतलब च तू सरा भाभर अर ड्याराडूण मुले ( खरीद ) सकदी“
मेहरबान न जंगला क बीच क जगौं से फगुण्या क आन्खुं मा लोभ कागेणा द्याख. मेहरबान तैं भरोसा ह्वेगे बल फगुण्या वै तैं भगाण मा अब अपणि जिन्दगी लगै दयालो.
फगुण्या न बोली,“धरती रस्ता त भगण कठण च अर गंगा जी क जिना भगणो मतबल सीदो रौड़ीक मोरण. पण भोळ तक मी कुछ सोचदू छौं कि…!“
फगुण्या मेहरबान तैं भगणो आस दिलैक चलीगे. मेहरबान तैं कुछ पता छौ बल अलकनंदा ज़िना जाण मतबल सीधा तौळ. यांक मतलब च फगुण्या सीधो बाटो से इ वै तैं भगैक लिजालु? पण इथगा सरल त नी ह्व़े सकदो. मेहरबान तैं याद आई बल जब कठैतगर्दी क बगत पर इख कैदखाना बिटेन कटोचूं एक समर्थक भाग त कैदखाना क समणि इ पकडेगे छौ अर कती गंगा ज़िना भगद दै अलकनंदा जोग ह्वेन. भागणै आस मा निंद हर्चीगे। फिर वै तैं डौर लग कि कखी पकडेगे त?? एक आस हैकि आस तैं लांद अर एक डौर हैंक डौर मन मा लांद.
फगुण्या की मदद से भगद दै पकड्याणो डौर से मेहरबान तैं टिहरी को सुबान सिंग कि मिरत्यु दंड याद आई. कनो मोरी होलू वो कठैतूं समर्थक सुबान सिंग. छ्वटि सि कुठड़ी अर जै कुठड़ी क अगल बगल मा कुठड़ी. दुई कुठड्यु दिवालूं मा दुंळ इ दुंळ. मेहरबान कल्पना करदोगे कि बीचै कुठड़ी मा सुबान सिंग तै ग्वडेगे होलू अर फिर द्वी छ्वाड़ो कुठड्यु मा तमाखू अर सुरै जळयेगे होलू अर जैक धुंवा बीचै कुठड़ी मा आन्दगे होलू. पैल पैली त सुबान सिंग खिराण न खान्स्दोगे होलू. जिन्दगी क भीक मांगणो रै होलू. खांसद खांसद. ऐड़ाट भुभ्याट बि करदो रै होलू. फिर सुबान सिंग फगोसीन तड़फि होलू, फगोस से सुबान सिंगौ द्वी आँखी भैर ऐ होली अर अंत मा तड़फि तड़फिक मोरीगे होलू.
जब तलक कठैत भायुं क मंत्री पद से मेहरबान क मजा रैन तब तलक मेहरबान न इन दुरजनी सजा क बारा मा कबि नि सोची. पण आज मेहरबान तै लगो कि राजकरणि मा इन निर्दयी सजा नि होण चयेन्दन. जब अपण खुटों पर ब्युंछी पोड़दन तबि ब्युंछीक डा या दर्द पता चल्दो. मेहरबान फिर अपण मन तैं भागणो आस मा लायो. अर वो सुपन्याण बिस्याई कि कन भागलु वो फगुण्या दगड. फिर खजानों से खजाना बिजनौर ज़िना या हरद्वार ज़िना या…. हैं! नेपाल ज़िना लिजाला अर फिर स्वतंत्र जिंदगी काटे जाली.
जब हैंक दिन स्याम दै फगुण्या आई त फिर ऊ एक नई दैसत को बिरतांत बथाणो बिसेगे बल कठैतूं एक समर्थक रामप्रसाद बडोला तैं इगासुर चौन्दकोट लिजयेगे जख बल रामप्रसाद बडोला तै शौलकुंडो सजा दिए जाली. मेहरबान सुचदोगे बल जब बि क्वी बिरोधी पाळीदार कटोचगर्दी या कठैत गर्दी जन गर्दी खतम करदो त बिरोधी क समर्थकूं तै देस का अलग अलग हिस्सों मा सजा दिए जांद जां से जनता मा नै पाळीवळु दैसत सौरी जावो, फ़ैली जवो। शौलकुंडो सजा देवप्रयाग अर इगासुर मा दिए जांद. यूँ जगा एक कुठड़ी मा शौल पळे जान्दन अर जब बि कैतै शौलकुंडो सजा दीण ह्वाओ त वैक ळी पैथर बंधे जान्दन, वैका सरैल पर ग्यूं,जौ, झन्ग्वर या कोदो बलड़ बंधे जान्दन अर मथि बिटेन शौलूं बीच डाळे ज्यान्द्। शौल तेजी से शौलकुण्डो छुड़दन जो सजा पाण वाळक सरैल पर पुड़णा रौंदन.बिस, ल्वेखतरी से मनिख चार पांच दिनु मा मोरी जान्द.
या खबर बि दैसती खबर छे. मतबल पुरिया नैथाणी अर पाळी पुरियागर्दी फैलाणा छन. आण वळी सजा की डौर को डौरन मेहरबानौ ल्वे मुंड मथि चौड़ीगे, कन्दूड़ लाल ह्व़ेगेन, कंदुड़ो मा झमझम्याट हों बिस्याई, जीब खुसक ह्व़ेगे. मेहरबानौ आँखी भैर जन आण बिसयाणा छ्या.अंख पंख कमण बिसेगेन. अबै दै इ भगवान बौणिक आई,
वैन ब्वाल,“मेहरबान जी! आप खजानों क अदा हिसा देल्या ना?“
मेहरबानौ पराण पर पराण ऐ, ल्वे मुंड से खुटों तरफ आण बिस्याई, कंदुड़ो झमझम्याट कम ह्व़े, जीब पर पाणी आण बिस्याई अर सबड़ाट मा मेहरबान न जबाब दे,“बद्रीनाथ जी की कसम, मा धारी देवी की कसम, ग्विल्ल कि कसम उख पौंचीगे त खजानों क अदा भाग तुमारो.“
फगुण्या न बोलि,“ठीक च भोळ काम शुरू होलू. तुम दिन मा बिटेन हरेक घड़ी झाड़ा जाणा रैन. इख सैनिकुं तैं लगण चएंद बल तुमारो पुटुक चलणो च. अर हाँ जाण कना च?“
मेहरबान न पूरो राजघरानों चोळा मा ऐक ब्वाल,“फ़गुण्या जी!मेहरबानी तुमारी च ।तुम बि राजकरणि मा छंवां त.. कख जाण यो त मी तबी बतौल़ू
जब मी सिरीनगर से कुछ दूर भैर ह्व़े जौंलू.“
फगुण्या बि बात बिंगदो छौ, समजदो छौ.वैन ब्वाल,’ठीक च. जब कैदखाना से भैर जौंला त दिसा को होली? चलो ठीक च नि बथाओ. यि ल्याओ मी सतेंदर अघोरी बाबा से कुछ टूण -टणमणो समान लै छौ. य़ी तीन पथरी छन यूँ तैं कुड़ी जन धौरिक, य़ी बि चार पटाळी छन,
यूं तैं बि एकमंज्यूळया कुड़ जन बणैक अर यी घासौ बुट्या छन यूँ तैं बांधिक रात कुछ पूजा करी लेन. मी त अघोरी बाबा क बड़ो च्याला छौं.“ अर फिर फगुण्या न खाणो दगड धरयां टूण -टणमणो समान मेहरबानौ तरफ सरकाई.
मेहरबान समजीगे बल फगुण्या मातबर बणनो बड़ो सुपिन दिखंदेर ह्व़े इगे. तबी त टूण-टणमणो इथगा समान लाइ.
फगुण्या क जाणो परांत मेहरबान न उनि कार जन फगुण्या न बोली छौ. आज मेहरबान तैं डौर नि लग. भागणै आस आज दैसत पर हावी ह्वेगे।
इन नी च कि मेहरबान तैं दैसत वळी सजाऊं याद नि आई हो धौं!. कथगा इ कैडी दैसती, ड़रौण्या, भिलंकारी सजौं याद आई पण पण भाजणो आस क समणि सबि दैसत आँदी छे अर ख़तम हूंदा जांदी छे.. राजकरणी मा आस, अहम्, आन,बान, शान इ राज करान्दन अर यूँ मा आस सबसे बडी संजीवनी होंद. आस मा इ स्वास च.
दुसर दिन दुफरा इ बिटेन मेहरबान बार बार झाड़ा जाण बिसेगे अर गुदनड़ जोर जोर से इन किरांदगे जन बुल्यां बडी भारी करास लगी ह्वाऊ. सैनिक समजीगेन कि मेहरबानौ पुटुक चलणो च. एक न त बोली च,“घ्यू मा खाण वळ थोकदार जौ क रुटि खालो त बिचारो तै करास होणि च.“ स्याम दै जब फगुण्या आइ त फिर दुयूंन सुरक फुरक कार अर मेहरबान गुदनड़ ज़िना चल अर पैथर पैथर फगुण्या बि चौल.
गुदनड़ भेळ मा छौ अर तौळ छे गंगा बौगणि. जूनी क उज्यळ मा बि गंगा जी क फ्यूण रूंआ जन सुफेद दिख्याणु छौ. गुदनड़ क बगल मा लम्बा लम्बा बबूलो (घास) बुट्या छ्या. दुयुंन बबूलो घास पकड़ अर स्यें स्यें तौळ रड़ण लगीगेन. इना उना गुओक पिंदका ऊँ फर लगणा छ्या पण इन मा गुओक घीण कै तै छे. तौळ अटगणो छ्वटो सि जगा छे.बबूलो घास पकड़ीक उखमा ठौ ले. जरा बि इना उना ह्व़े ना कि तौळ सीदो अलकनंदा मा इ ग्वे लगाला. फिर पैल फगुण्या न बबूलो घास झुळा बणाइ अर समां झुळा झुळीक जरा दूर हैंको अटगणो जगा मा खुट धौरिन अर फिर हैंको बबूलो बुट्या पकड़ी दे. फिर फगुण्या न एक दै हैंक झुळी ख्याल
अर हैंको पथर मा चलीगे. मेहरबान बि कम नि छयो वो बि राजघरानो को इ छौ त अयेड़ी खिल्दा दै रात बिर्त इन दुर्दांत काम करणो हभ्यास त छें इ छौ. अर फिर दैसती मिरतु डंड से त जिंदगी क दगड इनो जुआ खिलण राजपूतों बान जादा भलो छौ. मेहरबान न बि उनि झुळी ख्याल जन फगुण्या न बबूलो बुट्या से झुळी ख्याल. झुळा झुळीक अर बबूल या हौरी घास या क्वी पथर पकडिक द्वी अब इन जगा पोंछीगेन जखम जमीन जरा सैणि छे अर उख बिटेन क्वी डांग, डाळ बूट या घास पकडिक मथि तर्फां पौन्छिन जख से अलकनंदा मा रड़णो कतै डौर नि छौ. फगुण्या न सबसे पैल घासौ द्वी बुट्योँ तै बाँध, द्वी लखड़ी जमीन मा धरीन अर फिर कुछ मंतर ब्वाल.
अब जूनो उज्यळ मा रस्ता त असान छौ पण राजाक सैनिकुं तैं अर मन्त्रियुं तैं कुछ इ देर मा दुयुंक भगणो पता चौलि इ जाण. बद्रीनाथ बाटो ज़िना जै नि सकद छया. किलैकि सब्यून अन्थाज लगाण कि मेहरबान अपण घौर ज़िना भाजी होलू. अर दिप्रयाग ज़िना जै नि सकदा छ्या किलैकि इख बिटेन त सिरीनगर दिव्प्रयाग बाटो मा इ छौ.
फगुण्या न सल्ला डे बल चलो सीदो मथि जये जाओ. अर द्वी सीदो मथि घणघोर जंगळ मा उकाळी चढ़दगेन. फिर एक उद्यार सी मील अर मेहरबानौ आँख तड्याण बिसेगेन. जब वैन द्याख कि उख कुछ सामान पैली बिटेन धर्युं च. फिर फगुण्या न बताई कि इनी समान वैन दिन मा बद्रीनाथ रस्ता अर दिबप्रयाग बाटो मा बि लुकायुं च. उड़्यार मथि बिटेन पाणि छिन्छ्वड़ पोड़णो छौ इथगा ठण्ड मा बि दुयुन अपण सरैल साफ़ करी. अर फगुण्या न मेहरबान तै राठ ज़िना पैर्याण वळु कमळो लबादा दे आर अफ़ु बि भंगलो लबादा पैर. मेहरबान तै फगुण्या कि हुस्यारी पर कुज्याण किलै घंघतोळ जन भाव पैदा ह्वेन धौं. जब अग्वाड़ी भजद दै लोक मेहरबान क मिर्जई -रेबदार सुलार दिखदा त साफ़ पता चौल जांद कि मेहरबान क्वी राजघराना को मनिख च. अर इनी फगुण्या क लारा बि बथै दीन्दा कि फगुण्या क्वी सैनिक च. फगुण्या न बथाई बल अब सरासरी भगण पोड़ल किलैकि बस कुछ इ घड्यू मा जून अछल जाली. फगुण्या क द्वी भंगलो पिठू लयां छ्या जख मा बुखण /खाजा अर टूण टणमणो सामान धर्युं छौ. ये उड़्यार से जांद दै फगुण्या न द्वी पथर जमीन मा धरीन अर ऊं द्वी पथरूं अळग एक पटाळ धार अर फिर वीं पटाळ पर पिठे लगाई. अर फिर कुछ पूजा सी कौर.
फिर द्वी बढ़दगेन उभारी खुण. फगुण्या सैनिक इ ना हुस्यारुं हुस्यार मनिख छौ. वैन द्वी टिक्वा-लाठो बि निड़याँ छ्या. टिक्वा क एक हिसा कील जन भौती पैनो अर हैंको हिस्सा सपाट. फगुण्या क सपाट टिक्वा जब भ्यूं पोड़दो त माटो मा एक क्वी छाप बि छोड़दो थौ जन बुल्याँ मुहर लगी ह्वाऊ. सैत च यू टिक्वा सरकारी टिक्वा ह्वाऊ.
जब धार मा कोगेणा दिखेण लगीगे त फगुण्या न बोली, बस अब जून अछ्ल्याणि वाळ च तख गदन पोड़ जांदवां. गदन मा एक डाळो तौळ फगुण्या न पैल अज्ञलू अर कबासलू से आग जळाइ आर र्फि़ बुगुल्, लाइकेन, लिँगड़ खूंतड़ो घास पर आग लगै अर आग मा छ्वटि छ्वटि घंटि /लोड़ी धौरीन. द्वी आग टप न लगिन. जब आग बुजीगे तो बि घंटि/लोडियूँ तपन आग को काम करदीगे.
जब ब्यंणस्यरिक होणि वाळ छे त फगुण्या न ब्वाल,“जब सुबेर ह्व़े जाली त इना उना राजा क बड़ा बड़ा ढोल दमाऊ से सबि जगा इख तलक कि रवाई, भाभर, माणा, बलपूर जनि जगा रैबार पोंछी जालो बल हम द्वी राज-भगोड़ा भागीगेवां. त हम तैं सुबेर हूण से पैलि क्वी इन उड़्यार खुज्याण पोडल जख क्वी सोचि नि साको कि हम उख लुक्याँ छंवां. बस द्वी फिर चलण बिसिगेन.
कुछ देर उपरान्त एक इन उड़्यार मील जै पर मथि बिटेन पाणी गिरणो छौ. कै बि मौसम मा इख मिनख एकाध घडि से जादा नि रै सकदो छौ. वु द्वी पैल भितरगेन. फिर फगुण्या भैर आई अर इना उना बिटेन बुगुल, लाइकेन, बांजौ सुक्या लखड़ क्या क्याडा लाइ. फिर भैर जैक वो घंटी/ लोडि लाइ अर फिर आग जळैक घंटी/ लोडियूं तै करदोगे। आग बुझैक घंटी/ लोडियूं तैं फगुण्या न रंगुड़ तौळ दबाई दे. भितर सिलापौ उस्मिसि, ठंड, कीच छौ. द्वी कनि कौरिक मथि ढीस्वाळी चिपक्यां. अबि आग से गरम वतावरण छौ. जनि सुबेर घाम आई कि दुयूँ तैं सिरीनगर से ढोल- रौंटळो बजण सुणे देगे. इन बजण अर ताल नयो इ छौ. अर फिर जब सिरिनगरौ ढोल-दमाऊ बन्द ह्वेन त न्याड़ ध्वारो गौं क ढोल- रौंटळो पैलि वळी ताल की अवाज सुण्याण बिस्याई जांको मतबल छौ बल राजा क रैबार थ्वड़ा देर मा चौ छ्वड़ी चली जालो. अब उड़्यार बिटेन भैर आण खतरनाक छौ पण भितर भापो अर ठंड को अजीब प्रभाव छौ. गर्म घंटी/ लोडियूँ गर्मी से ठंड त कम होणि छे पण सिलापौ कुछ नि ह्व़े सकद छौ. फगुण्या क लयां बुखण /खाजा भूक मिटौणो काफी छया. थ्वड़ा देर मा एक बागौं डार पट उड्यारौ भैर आई. सैत च बागुं तैं मनिखूं गंध लगी ह्वेली अर ले सबि बाग़ घुरण लगीगेन. द्वी हल्ला कौरी सकदा नि छया. फगुण्या न करामत दिखाई फटाक से बुगुल पर अज्ञौ कार अर बागूं ज़िना चुलाण बिस्याई, अज्ञौ देखिक बागुं डार भाजीगे.
अर बुल्दन बल जब दिन इ खराब ह्वाओ त सबि जगौं दिन मा परेशानी आन्द. कै हैंकि जगा अयेड्यू भगाण से या क्यां से धौं उना रिकुं डार भागदी आई. रिकुं से बचणो कि उपाय छौ उन्धारी खुण भजण पण फिर कखी हैंको धार, छाल, खाळ से यि द्वी लोकुं नजर मा आईगे त? दुसरो उपाय छौ बल रिक समणि आईगे त मुंड तौ ळ धरती मा गडे द्याओ अर साँस रोकी द्याओ.फगुण्या न सुरक ब्वाल बल भितर इ मुंड धरती मा गडे क रौण ठीक च. पण कुछ हौरी ह्व़े रिक उना बिटेन जोर से भजण लगीगेन. दुयुंक साँस मा साँस आई. अर उड़्यार से मथि ज़िना घ्वीड़ -काखड़ो आवाज औणि छे जन बुल्या वो ड़र्या होवन. याने कि न्याड़ ध्वार अयेडि खिलयाणि छे. दुयूं तैं धुकधुकी लगीं छे बल कखी अयेडि खिलण वळ या घसेरी या लखड़ वळी इना ऐगे ट कुज्याण क्य हुंद धौं!
जब भौत देर तलक अब जैक दुयुंन देखी बल उड़्यार भितर सिपड्यू अर किरम्वळो लन्गत्यार लगीन छे. सिपड़ी, किरम्वळ भगौणो एकी तरीका छौ बल धुंआ, अज्ञौ करे जाओ पण दुयूं तैं पता छौ कि अबि जु रिक, बाग़ अर भाजिक ऐन अरगेन त मतबल छौ मनिख आस पास छन. बस दुयूं ध्यान छौ कि सिपड़ी, किरम्वळ ऊं तै नि तड़कावन.
दुफरा परांत फगुण्या उड़्यार से भैर आई अर उड्यारौ मुख बिटेन पोड़ीक क्वीनो बल पर अग्वाड़ीगे. वैन पोडि पोडीक इना उना रौडिक तौळौ जायजा ले फिर उल्टा उताणो ह्वेक् मथि ज़िना द्याख. वैक इन सल्ली पट्टी देखिक कुज्याण मेहरबानौ मन मा फगुण्या बान शंका अर बडै वळ द्विई भाव किलै ऐन धौं! मन इ मन मा मेहरबानौ ब्वाल बल मनण पोडल कि फगुण्या हुस्यार, सांसदार,अर दिलदेर च.
फिर सैन इ सैन मा फगुण्या न मेहरबान तै भैर आणो ब्वाल. मेहरबान बि उड्यारौ मुख बिटेन पोड़ीक क्वीनो बल पर आई. अर फिर पड्यू राई. दुयूँ घाम से, खुली हवा से कुछ चैन मील. फिर वो द्वी भितर चलीगेन. अब फगुण्या न ब्वाल,“मेहरबान जी जाण कना च? अब त बथाणो इ पोडल!“
मेहरबान न ह्यूंलि ढौळ मा जबाब दे,“द्यौप्रयाग से पाँच मील करीब..“
फगुण्या कुछ देर तलक घड्याणु राई अर फिर वैन बोलि,“त हम तैं इख बिटेन कुकुरगां, घुडदौड़ी, डांडापाणी, खोळाचौरी, सबदरखाळ ज़िना ह्वेक द्यौप्रयाग जा न पोडल“
मेहरबान न बि हंगरी पूज बल बद्रीनाथ द्यौपर्याग बाटो से जा न मा खतरा इ खतरा च. इथगा मा फगुण्या न अपण झुळा बिटेन एक दाथी जन खुन्करी मेहरबान तैं दींद ब्वाल,“
इख बिटेन सबदर खाळो बाटो मतबल च जंगळ इ जंगळ. लाठो अर दाथी काम आली“ मेहरबान न फिर हंगरी पूज.
फगुण्या न ब्वाल,“हम तैं ब्यणसरिक से सुबेर या कुछ हौरी देर तलक अर झामटो परांत जब तलक जूनो उज्यळ ह्वाओ इ चलण. बासो उड़्यार, क्वी घणो जंगळ मा डाळु फौंट्यु मा करण पोडल, रस्तौ मा ग्वरबट त होलू ना बस ध्यान से अर जल्दी बि हिटण पोडल.रिक बाग़, शौलू, अर बन बनिक जानवरूं से बचिक चलण“
फिर जरा सी झामट से पैलि दुयूँ न उड़्यार छ्वाड़. जाण से पैल फगुण्या न कुछ टूण -टणमणो पूजा कौर, द्वी पथरूं अळग एक पत्र धार अर मंतर बोलिन. अर इनी जखम बि कुछ ह्वाओ त फगुण्या टूण -टणमणो पूजा करदो छौ. मेहरबान न इन भगत क्वी नि देखी छौ. रस्ता कठण छौ पण बुल्दन बल भड़ू क मदद भगवान बि जादा इ करदो. पंचौ दिन द्वी दिबपर्यागौ नजीक पौंछीगेन. मेहरबान न यूँ पांच दिनू मा जो जो बि जिन्दगी अर मौत क बीच दूरी द्याख वांको बार मा सुचणो मौक़ा नि छौ. अब त एकी मकसद रयूँ छौ बल कठैतूं लुकायुं खजानों लेकी अब तलक मेहरबान फगुण्या क पैथर रौंदू छौ अर फगुण्या क बुल्यूं माणदो छौ. अब मेहरबान अब फगुण्या से अग्वडि छौ अर फगुण्या पैथर. अबि तलक फगुण्या बाटो दिख्वा छौ अब मेहरबान बाटु दिख्वा छौ.
द्वी सुबेर सुबेर एक जगा पौन्छीन जगा जंगळ मा छौ. उख चार छ्वटा छटा मन्दिर छ्या अर मंदिरों आस पास रग ड्या जगा छे. मन्दिर देखिक मेहरबान क मुख मा कांति आई. मेहरबान मंदिरों से दै तरफ एक मील दूर पछिम ज़िना चौल फिर नापी नापिक अळग उतरैणिगे फिर तौळ ऐ अर इनी ट्याड -ब्याड हिटीक एक भेळ क पास ऐ. भेळ इन सपाट कि जरा रौड़ ना त तौळ मोरिक अलकनंदा मा इ मोक्ष मीलल. वैन पट भेळ क चूंच पर ऐक बुबूलोँ अर हौरी घास हटाई त रस्ता बौणिगे, फिर उख उड़्यार. उड़्यार पुटुक इ कठैतूं लुकायुं खजानों छौ. मेहरबान न खजानों फगुण्या तै दिखाई अर घमंड मा ब्वाल,“फगुण्या जी! या च खजानों अर हम दुयूँ तैं यू खजानों नेपाळ लिजाण!“
फगुण्या न खौंळे क ब्वाल,“पण तुम त हरद्वार या बिजनूर कि छ्वीं लगाणा छ्या?
मेहरबान न ब्वाल,“ना ना हिन्दोस्तान मा अब नि जाण. त्वे सरीखा बीर भड़ मीमा होलू त मी नेपाल जौलू अर उख रैक इखाक राजा तै ख़तम कौरिक राजा बणणो इंतजाम नि करलो?“
भौत समौ तलक मेहरबान नेपाल राजा क दगड सकड़ पकड़ कि छ्वीं लगौणु राई अर फगुण्या तै प्रधान सेनापति बणाणो बात करणो राई.’ आखिरें मेहरबान न ब्वाल,’पण भै प्रधान मंत्री त पुरिया नैथाणी इ चयेणु च.किलैकि वै से जादा भविष्य दिखणेर क्वी नी च“
फिर द्वी उड़्यार बिटेन भैर ऐन अर समो रस्ता मा ऐन कि मेहरबान न द्याख बल समणि पुरिया नैथाणि एक सेना लेकी खड़ो छौ. पुरिया नैथाणी न बोले, “मेहरबान जी यि फगुण्या सिपै नी च बल्कण मा मेरो प्रशिक्षित अयार (जासूस) च, फगुण्या नेगी मनियार्स्युं क जखनोळी गौं को च अर यि फगुण्या नेगी जो टूण -टणमणो पूजा करदो छौ ओ सौब कफोळस्यूं क चैतराम थपलियालौ बान एक सूचना होंदी छे. चैतराम अर वैका हौर अयार तुमर पैथर इ आणा छया चैतराम थपलियाल बि म्यरो सिखायुं अयार (जासूस) च.“
मेहरबानौ सरैल कि सरा ल्वै पाणी बणीगे. वो कबि पुरिया नैथाणी, कबि चैतराम थपलियाल अर कबि मनियार्स्युं क फगुण्या नेगी तै घुरूणो छौ.
पुरिया नैथाणी न बिंगाई, “तुम तै चटाक से सजा दीणि होंदी त हम किलै जगवाळ करदां हैं?. हम तैं पता छौ कि पांच भै कठैतूं खजाना तुमारो पास च. बस..“
चैतराम थपलियालौ न पूछ’अब मेहरबान जी तैं कख लिजाण?“
पुरिया नैथाणी को जबाब छौ,“आज पन्दरा गति छन. इख इ मेहरबान जी तै शौलकुंडो से मरवाई जालो“
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