आजकल
कैसा है कीड़ाजड़ी का गोरखधंधा
देवभूमि उत्तराखंड अपनी
नैसर्गिकता के साथ ही प्राकृतिक संपदा से भी परिपूर्ण है। इसी संपदा में शामिल हैं
वह हजारों औषधीय पादप,
जो आज के दौर में भी उपयोगी हैं। यही कारण है कि आज भी चिकित्सा की
आयुर्वेदिक पद्धति के शोधकर्ता हिमालय का रुख करते हैं। खासबात कि यह सब पहाड़ की
पुरातन परंपरा का हिस्सा हैं। गांवों में जानकार बुजुर्ग आज भी अपने आसपास से ही
इन्हीं औषधियों का उपयोग कर लेते हैं। चीन और तिब्बत में कीड़ाजड़ी परंपरागत
चिकित्सा पद्धित का हिस्सा है।
नैसर्गिकता के साथ ही प्राकृतिक संपदा से भी परिपूर्ण है। इसी संपदा में शामिल हैं
वह हजारों औषधीय पादप,
जो आज के दौर में भी उपयोगी हैं। यही कारण है कि आज भी चिकित्सा की
आयुर्वेदिक पद्धति के शोधकर्ता हिमालय का रुख करते हैं। खासबात कि यह सब पहाड़ की
पुरातन परंपरा का हिस्सा हैं। गांवों में जानकार बुजुर्ग आज भी अपने आसपास से ही
इन्हीं औषधियों का उपयोग कर लेते हैं। चीन और तिब्बत में कीड़ाजड़ी परंपरागत
चिकित्सा पद्धित का हिस्सा है।
ऐसी ही जड़ी बूटियों में
शामिल है औषधीय पौधा कीड़ा-जड़ी। करीब 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर उगने वाली इस
जड़ी के दोहन की इजाजत नहीं होने और विश्व बाजार में इसकी मुहंमांगी कीमत के चलते
वर्षों से अवैध दोहन किया जा रहा है। एक तरह से उत्तराखंड में यह अवैध कारोबार की
शक्ल ले चुका है।
शामिल है औषधीय पौधा कीड़ा-जड़ी। करीब 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर उगने वाली इस
जड़ी के दोहन की इजाजत नहीं होने और विश्व बाजार में इसकी मुहंमांगी कीमत के चलते
वर्षों से अवैध दोहन किया जा रहा है। एक तरह से उत्तराखंड में यह अवैध कारोबार की
शक्ल ले चुका है।
नेपाल, तिब्बत, भूटान आदि में इसे ‘यारसागुंबा’ के नाम से भी जाना जाता है। जंगली मशरुम की शक्ल का यह पौधा एक खास कीड़े
की इल्लियों यानि कैटरपिलर्स को मारकर उसपर पनपता है। इसका वैज्ञानिक नाम
कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर यह उगता है उसका नाम हैपिलस
फैब्रिकस है। हिमालय में जहां से ट्री लाइन समाप्त होती है। उस जगह यह जड़ी मई से
जुलाई के बीच बर्फ पिघलने के बाद उगनी शुरू होती है।
की इल्लियों यानि कैटरपिलर्स को मारकर उसपर पनपता है। इसका वैज्ञानिक नाम
कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर यह उगता है उसका नाम हैपिलस
फैब्रिकस है। हिमालय में जहां से ट्री लाइन समाप्त होती है। उस जगह यह जड़ी मई से
जुलाई के बीच बर्फ पिघलने के बाद उगनी शुरू होती है।
खास बात कि यह सामान्य
नजर से नहीं दिखती है। इसके लिए जानकार होना आवश्यक है। बर्फ पिघलने के बाद नर्म
घास के बीच उगती है। यह पौधा आधा जड़ी और और आधा कीड़े की शक्ल का होता है। इसीलिए
इसका सामान्य बोलचाल का नाम कीड़ा जड़ी है। जानकारों के मुताबिक इसका सर्वाधिक उपयोग
चीन करता है। खिलाड़ियों द्वारा शक्तिवर्धक दवा के रूप में इस्तेमाल होने के बाद भी
डोप टेस्ट में इसका पता नहीं चलता है। चीन में इसका उपयोग स्टिरॉयड की तरह किया जाता
है।
नजर से नहीं दिखती है। इसके लिए जानकार होना आवश्यक है। बर्फ पिघलने के बाद नर्म
घास के बीच उगती है। यह पौधा आधा जड़ी और और आधा कीड़े की शक्ल का होता है। इसीलिए
इसका सामान्य बोलचाल का नाम कीड़ा जड़ी है। जानकारों के मुताबिक इसका सर्वाधिक उपयोग
चीन करता है। खिलाड़ियों द्वारा शक्तिवर्धक दवा के रूप में इस्तेमाल होने के बाद भी
डोप टेस्ट में इसका पता नहीं चलता है। चीन में इसका उपयोग स्टिरॉयड की तरह किया जाता
है।
बताते
हैं कि पहले विश्व बाजार में इसकी कीमत चार-पांच लाख प्रति किलोग्राम ही थी। अब एक
किलो कीड़ा जड़ी के बदले में 10 से 15 लाख
रूपये तक मिल जाते हैं। इसीलिए हाल के वर्षों में इसकी अहमियत बड़ी है, तो अवैध दोहन का सिलसिला भी। सूत्रों के अनुसार हाल में वनविभाग ने इस
कारोबार को वैध श्रेणी में लाने का प्रयास किया है। जिसके तहत वह स्वयं लाइसेंस
देकर हिमालय क्षेत्र से कीड़ाजड़ी का संग्रह कराएगा। यदि ऐसा होता है, तो युवाओं को रोजगार देने के साथ ही स्वाभाविक तौर पर प्रदेश को राजस्व का
भी मिलेगा।
हैं कि पहले विश्व बाजार में इसकी कीमत चार-पांच लाख प्रति किलोग्राम ही थी। अब एक
किलो कीड़ा जड़ी के बदले में 10 से 15 लाख
रूपये तक मिल जाते हैं। इसीलिए हाल के वर्षों में इसकी अहमियत बड़ी है, तो अवैध दोहन का सिलसिला भी। सूत्रों के अनुसार हाल में वनविभाग ने इस
कारोबार को वैध श्रेणी में लाने का प्रयास किया है। जिसके तहत वह स्वयं लाइसेंस
देकर हिमालय क्षेत्र से कीड़ाजड़ी का संग्रह कराएगा। यदि ऐसा होता है, तो युवाओं को रोजगार देने के साथ ही स्वाभाविक तौर पर प्रदेश को राजस्व का
भी मिलेगा।