व्यवस्था के विरूद्ध सवाल हूं मैं

जन्मदिवस पर साहित्य प्रेमियों ने स्व. पार्थसारथी डबराल को किया याद
’फन उठाता जो व्यवस्था के विरुद्ध, सवाल हूं मैं/डबराल हूं मैं…’ प्रख्यात साहित्यकार स्व. पार्थसारथी डबराल की यह कविता आज भी सहसा ही उनके कृतित्व व व्यक्तित्व का साक्षातकार करा जाती है। यह विचार आवाज साहित्यिक संस्था की गोष्ठी में साहित्य प्रेमियों ने व्यक्त किए।
शुक्रवार को आवाज साहित्यिक संस्था ने हिन्दी साहित्य के स्वनाम धन्य साहित्यकार एवं कवि स्व. लक्ष्मीविलास ’पार्थसारथी ’डबराल की 76वें जन्मदिवस के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर साहित्य प्रेमियों ने डा. डबराल का भावपूर्ण स्मरण करते हुए उनके साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला।
साहित्यप्रेमियों ने कहा कि डा. डबराल साहित्य के क्षेत्र में नवयुवाओं के प्रेरणास्रोत रहे हैं। उनके परिहास में भी साहित्य लाक्ष्णिकता चूकती नहीं थी। उन्हें अपने जीवनकाल में जीवंत शब्दकोश की संज्ञा दी जाती थी।
आवाज के अध्यक्ष अशोक क्रेजी ने कहा कि गुरुजी के सानिध्य में बिताए कुछ क्षण आज भी उनकी उपस्थिति का आभास देते हैं। डा. अतुल शर्मा के अनुसार डा. डबराल जैसा व्यक्तित्व यदा-कदा ही मिलता है। कवि डा. जग्गू नौडियाल कहते हैं कि वे अपने जीवन में असाधक कवियों को काव्य कामिनी के साथ व्यभिचार करने वाला कवि मानते थे। कवि प्रबोध उनियाल ने कहा कि डा. डबराल मेरी पाठशाला थे, जहां मैं अपना बस्ता उठाकर चल देता था अक्षर ज्ञान लेने के लिए। रामकृष्ण पोखरियाल ने स्व. डबराल की कविता ’यह कवि जनमा उस भूमि, जहां हिमशैल उठाते व्योमभार…. का जिक्र करते हुए कहा कि गुरुजी के साहित्य में अपनी माटी का अहसास हमेशा जिंदा रहा है।
गोष्ठी में पूनम उनियाल, एचएन भट्ट, सुनील थपलियाल, सत्येंद्र सिंह चौहान, केके उप्रेती, विशेष गोदियाल ने भी विचार व्यक्त किए।