न्युतो
दगड्यों!
पैथ्राक दस सालों बटि नामी-गिरामी चिट्ठी-पतरी(गढ़वळी पत्रिका) कि गढ़वळी भाषै बढ़ोत्तरी मा भौत बड़ी मिळवाक च। यीं पतड़ीन् गढ़वळी साहित्य संबन्धी कथगा इ ख़ास सोळी(विशेषांक) छापिन्। जनकि लोकगीत, लोककथा, स्वांग(नाटक), अबोधबंधु बहुगुणा, कन्हैयालाल डंडरियाल, भजनसिंह ’सिंह’, नामी स्वांग लिखनेर(लिख्वार) ललितमोहन थपलियाळ पर खास सोळी (विशेषांक) उल्लेखनीय छन।
पत्रिका कू एक हौर पीठ थप थप्यौण्या पर्यास गढ़वळी कविता पर खास सोळी च। जैं सोळी मा 123 कवियुं कि 143 कविता छपेन्। दगड़ मा एक भौत बड़ी किताब बि छप्याणि च जख मा सन 1700 से लेकी 2011 तक का हरेक कवि की कविता त छपेली ई दगड़ मा गढ़वळी कविता कू पुराण इतियास बि शामिल होलू।
अग्वाड़ी (भविष्य मा) आपै अपणि “चिट्ठी पतरी” कि मन्शा गढ़वळी कथा-सोळी(विशेषांक) छापणै च। इख्मा आपौ सौ-सय्कार(सहकार) मिळवाक चयाणि च। आपसे हथजुड़े च बल ईं ख़ास सोळी क बान बन्नि-बन्नि कथा भ्याजो जी! कथा क विष्यूं मा श्रृंगार (प्रेम, विच्छोह, काम (erotika), समाज विद्रोही प्रेम, प्रेम मा टूटन, तलाक, ब्यौ पैथरां प्रेम संबन्ध(विवाहेत्तर प्रेम), बाळकथा, जात्रा संस्मरण, समळौण(संस्मरण), जासूसी, सल्ली-पट्टी(विज्ञानं अर तकनीक), मिथक, उद्योंगुं बढ़ण से समाज मा बदलौ अर वांको असर, पलायन सम्बन्धी, प्रवाशी गढ़वाल्यूं कू सुख-दुःख, गौं-गौळ मा राजनीतिक/समाजिक अनाचार, भ्रष्टाचार, विकाश (जनकि रस्ता बणण, पाणि, बिजली आण से कुछ नयो घटण, गौं-गौळ नई पाळी (घटक, समीकरण) को जनम होण)।
सामजिक आदि विशयूं पर बीर, शांत, रौद्र, घृणा रस, कळकळी (करूण रस) हंसौडि, चाबोड्या-च्खन्युरि (व्यंग्यात्मक), धार्मिक, रोष कि कथा, खौंल्य़ाण(आश्चर्य ) वली कथा आदि। हौरि बि जनकि, रौन्सदार कथा, दुबारो जनम कि कथा, शिल्पकारूं/ जनान्यूं संबन्धी कथा आदि। बकै आप तैं जु सै लगद।
Dear all,
Chitthi Patri a representative magazine of Gadhwali language is bringing a special issue on Gahdwali Stories. You are requested to post your contribution on various subjects to-
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