व्यंग्यलोक
जरा बच के … (व्यंग्य)
• प्रबोध उनियाल
बहुत समय पहले की बात है, तब इतनी मोटर गाड़ियां नहीं थीं। सबके अपने-अपने घोड़े होते थे। भले ही हम तब भी गधे ही रहे। अस्तु! उस समय मकान की दीवारें ‘टच’ नहीं होती थी बीच में नाली या नाला आपकी सुविधा अनुसार होता था। ‘टच’ के जमाने तो अब आये, चाहे दीवारें ‘टच’ हो या मोबाइल टच…।
पुराने लोग गवाह हैं। उनके जमाने की फिल्मों में शम्मी कपूर और मनोज कुमार पेड़ के ही आसपास घूमते हुए हीरोइन को रिझाते थे लेकिन ‘टच’ नहीं करते थे। ये सोशल डिस्टेंस ( Social distance ) के जमाने थे। यही वजह थी कि ये फिल्में बेहद मनोरंजक और घर के लोगों के साथ देखने वाली होती थीं। साम्बा इसीलिए हमेशा दूर पत्थर पर बैठा रहता था।
सोशल डिस्टेंस पर कई हिट गाने भी बने हैं। ‘दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ..।’ लेकिन साहब मजाल है जो हीरो या हीरोइन इतने करीब आ जाएं। समय बैल गाड़ियों से होता हुआ इलेक्ट्रॉनिक रेलगाड़ियों तक आ गया। दूरियां घटने लगी। यानि no distance …
गांव की बात छोड़ दें तो शहरों में बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गयीं। इन इमारतों में घर तो थे लेकिन छत नहीं। इन घरों में रह रहे लोग एक दूसरे से डिस्टेंस में ही रहते हैं। फ्लैट कल्चर है साहब! सही बात कहें तो ये डिस्टेंस तो आम लोगों के लिए है। उसे संभलना होगा। तभी कोरोना से बचा जा सकता है …!
(लेखक प्रबोध उनियाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
करारा कटाक्ष
आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.