साहित्य

खाडू लापता नाटक : अंध विश्वासुं पर कटाक्ष

ललित मोहन थपलियाल जी कु लिख्युं एकांकी’ खडू लापता ‘ गढवाळ ऐ जिंदगी कु

भौत इ सजीव चित्रण प्रस्तुत करदो
एकांकी मा सिरफ़ चार इ पत्र छन – पंडित जी , जु अपणि ज्वानी मा डिल्ली कै सरकारी दफ्तर मा चपड़ासी छ्या

अर अब उना कुछ टूणा-मूणा , दवै-दारु सीख अर गाँव मा मजा की जिंदगी बिताणा छन. यांका अलावा
गाँवों मोती अकलौ हरि सिंग , गौं कु चकडैत परमा अर डिल्ली बटें छूटी फर अयूं तुलसी राम.
गौं मा जारी अंधविश्वास फर कटाक्ष थपलियाल जीन भलो तरीका से करै, हरि सिंगू खाडू चुरयै जांद

वो गणत कराणो बैद जी क पास जान्द. बैद जी ब्तान्दन बल नरसिंग क द्वाष लग्युं च .फिर हरि सिंग तैं बौम
होंद बल ना हो कि कखि चकडैत परमा अर तुलसीराम न जी खाडू चट्ट नि कौरी दे ह्वाऊ .सरल मनिख
हरि सिंग खाडू तैं खुजदा खुजदा हडका मिल्दन परमा क कुलण. हरि सिंग कुलादी लेकी जांद बैद जीक

पास की आज वैन परमा तैं कचे दीण जैन वैको खाडू चट्ट कै दे. इखम लिख्वार गाँव कु सरल हिरदै मनिखों
चित्रण करदो .
तुलसी राम जु डिल्ली मा चपड़सि च अर वो पन्डि जी मा अपणि हड़का मरदो बल
‘ बैद राज बोडा मी त डिल्ली दफ्तर मा काम करदू . एक दफ्तर भटें हैंक दफ्तर अर ये दफ्तर बिटेन वै दफ्तर “
पन्डि जी – ये भै तुलसी टु कब ऐ घार ?
तुलसी – बैद जी ! एक सप्ताह ह्व़े गे
पन्डि जी – तेरो ददा जीक रै होलो सप्ताह .हैं?

सम्वाद चुलबुला अर पैना छन अर हरेक सम्वाद से दर्शकुं हंसी गुन्जद .
पैलि बार ‘खाडू लापता’ को मंचन डिल्ली मा ओक्टोबर १९५८ मा ह्व़े छौ. मुंबई मा
गढ़वाल भ्रात्री मंडल, गढ़वाल छात्र संघ न ये नाटक औ कम से कम आठ बार मंचन कौरी

अर सबि दों ये नाटक न वाह ! वाही ही जीत . आज बि यू नाटक उथगा इ नया लगदो जथगा
२०-२५ साल पैल लगदो छौ.
(मुम्बै प्रवासी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, मंच संयोजक अर उद्घोषक , स्वांग-लिख्वार, नाटक निदेशक, नाटक कलाकार

स्व दिनेश भारद्वाज क एक भूमिका ज्वा ऊन गढवाळ भरतरी मंडल को एक प्रोग्रैम मा ‘खाडू लापता ‘ मंचन से पैलि बोली छौ.
स्व दिनेश भारद्वाज न ए नाटक मा कथा दें पंडित/बैद जीक पाठ खेली छौ.)

सन्दर्भ –

१- भारत नाट्य शाश्त्र अर भौं भौं आलोचकुं मीमांशा
२- भौं भौं उपनिषद
३- शंकर की आत्मा की कवितानुमा प्रार्थना

४-और्बास , एरिक , १९४६ , मिमेसिस
५- अरस्तु क पोएटिक्स
६- प्लेटो क रिपब्लिक
७-काव्यप्रकाश, ध्वन्यालोक ,

८- इम्मैनुअल कांट को साहित्य
९- हेनरिक इब्सन क नाटकूं पर विचार १०- डा हरद्वारी लाल शर्मा
११ – ड्रामा लिटरेचर

१२ – डा सूरज कांत शर्मा
१३- इरविंग वार्डले, थियेटर क्रिटीसिज्म
१४- भीष्म कुकरेती क लेख
१५- डा दाताराम पुरोहित क लेख

१६- अबोध बंधु बहुगुणा अर डा हरि दत्त भट्ट शैलेश का लेख
१७- शंकर भाष्य
१८- मारजोरी बौल्टन, १९६०. ऐनोटोमी ऑफ़ ड्रामा
१९- अल्लार्ड़ैस निकोल
२० -डा डी. एन श्रीवास्तव, व्यवहारिक मनोविज्ञान
२१- डा. कृष्ण चन्द्र शर्मा , एकांकी संकलन मा भूमिका
२२- ए सी.स्कौट, १९५७, द क्लासिकल थियेटर ऑफ़ चाइना

२३-मारेन एलवुड ,१९४९, कैरेकटर्स मेक युअर स्टोरी

बकै अग्वाड़ी क सोळियूँ मा……

फाड़ी -१
१- नरेंद्र कठैत का नाटक डा ‘ आशाराम ‘ मा भाव
२- गिरीश सुंदरियाल क नाटक ‘असगार’ मा चरित्र चित्रण

३- भीष्म कुकरेती क नाटक ‘ बखरौं ग्वेर स्याळ ‘ मा वार्तालाप/डाइलोग
५- कुलानंद घनसाला औ नाटक संसार
६- दिनेश भारद्वाज अर रमण कुकरेती औ स्वांग बुड्या लापता क खासियत
फाड़ी -२
१-ललित मोहन थपलियालौ खाडू लापता
२-स्वरूप ढौंडियालौ मंगतू बौळया

३- स्वरूप ढौंडियालौ अदालत 

स्व.दिनेश भारद्वाज
इन्टरनेट प्रस्तुति – भीष्म कुकरेती

Copyright@ Bhishm Kukreti

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