गढ़वाली-कविता
मनखि (गढ़वाली-कविता) धर्मेन्द्र नेगी
विकास-विकास चिल्लाण लैगे
मनखि बिणास बुलाण लैगे
घौ सैणैं हिकमत नि रैगे वेफर
हिंवाळ आँखा घुर्याण लैगे
उड्यार पुटग दम घुटेणूं वींकू
गंगाळ अब फड़फड़ाण लैगे
धुंआर्ंवळनि पराण फ़्वफ़सेगे वेको
अगास मुछ्यळा चुटाण लैगे
छनुड़ा खन्द्वार, गोर सड़क्यूंमा
स्यु ढ़िराक बग्वाळ मनाण लैगे
धर-धरों मा मोबैल टावरों देखी
चखल्यूं को पराण घुमटाण लैगे
निरजी राज हुयूं छ यख ’धरम’
स्यु सुंगर कूड़्यूं तैं कुर्याण लैगे
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धर्मेन्द्र नेगी
धर्मेन्द्र नेगी
चुराणी, रिखणीखाळ, पौड़ी गढ़वाळ