साहित्य

समीक्षाः जीवन के चित्रों की कथा है ‘आवाज रोशनी है’

बचपन की स्मृतियां कभी पीछा नहीं छोड़तीं। कितना भी कहते रहो ’छाया मत छूना मन’ मन दौड़ता रहता है दादी, नानी, मामा, मां, पिताजी के पास। अमिता प्रकाश की कृति आवाज़ रोशनी है- जीवन के उस कालखंड की यादें हैं जहां ‘उस मीठी नींद में, नाना-नानी का प्यार दुलार है, मामा-मामी की केयर है, धौली गाय का स्नेह है, अज्जू, सूरी, गब्दू की छेड़खानियां हैं। गुर्रूजी की फटकार है, पानी के लिए लड़ते-झगड़ते अनेकों चेहरे हैं तो घास व लकड़ी की ’बिठकों’ के नीचे हंसती खिलखिलाती, किसी ‘बिसौण’ पर बतियाती या जेठ-बैसाख की दुपहरी में किसी सघन खड़िक या पीपल की छांव में सुस्ताती, या पत्थरों की दीवार पर घड़ी भर को थकान से चूर- नींद की गोद में जाती नानी-मामी-मौसियों के चेहरे हैं। ’पंदेरे’- चैरी और तलौं पर लड़ती-झगड़ती, कोलाहल करती आठ से अस्सी वर्ष तक के स्त्री-पुरुषों के असंख्य चित्र’ इन्हीं चित्रों की कथा है- आवाज रोशनी है।

लेखिका अमिता आवाज की इस रोशनी में अपने समूचे बचपन को पूर्ण सच्चाई से जीती हुई, हमारे सामने पहाड़ के किसी भी गांव का चित्र बना देतीं हैं। वैसे इस गांव का नाम सिलेत है। कितनी मजेदार बात है कि जब मैं किताब के मार्फत अमिता के बचपन को पढ़ रही थी, मुझे अपना बचपन बार-बार याद आ रहा था। वैसे ही खेत, वही खेल, वैसे ही मास्टर जी की संटी, मुंगरी, ककड़ी, खाजा, बुकांणा, कौदे की रोटी और हर्यूं लूंण। लिखते-लिखते ही मेरे मुंह में पानी आ रहा है। पहाड़ कब- कब हंसता है, कब गुस्साता है, कब रुदन में भीग जाता है, सभी बहुत ही सरल और सहज रूप में लिख दिया भुली अमिता ने।

‘मीथैं लगीं च खुद ममकोट की

ननकी खुचली मा पौंछण द्यावा।’

मात्र गांव का जीवन ही नहीं उकेरा लेखिका ने, पहाड़ के इतिहास में होने वाले सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए उसे भी यथा स्थान वर्णित किया। पहाड़ ने बहुत जल्दी-जल्दी करवट बदली है, इन सिलवटों का जिक्र है किताब में। संक्षेप में कहूं तो एक इतिहास- बचपन से लेखिका विवाह तक और आज तक का भी। अपनी कथा की अभिव्यक्ति कौशल में सफल है कृति। पठनीय और संग्रहणीय भी।

मेरी बात अधूरी रह गई बीच में ही। मैं ‘आवाज रोशनी है’ पढ़ रही थी और मेरे दादाजी जी तिबारी में बैठे मुझे धै लगा रहे थे। ऐसा कैसे हो सकता है! इतना साधारणीकरण असंभव! मैंने सीधे लेखिका को फोन लगा दिया कौन हो तुम! (ठीक मनु की तरह) कहां की हो? मेरे ही गांव के पास सिलेत की कथा, और लेखिका भी ढौंडियाल! भई वाह! तभी तो कथा से ककड़ी की सुगंध आ रही है, दही मथने की आवाज आ रही है। ऊंमी भूनने की गर्माहट आ रही है, हद हो गई इसमें तो भट्ट भूनने की भट्यांण भी है।

अमिता ने गढ़वाली लोकगीत, शब्द खूब प्रयुक्त किए हैं, परन्तु अर्थवत्ता कहीं भी बोझिल नहीं है। उन्नीस अध्याय और एक सौ छत्तीस पृष्ठों में विस्तार पाता बचपन आपको पुस्तक पूरी पढ़ लेने तक जवान नहीं होने देगा। इतनी गारंटी तो अमिता के पक्ष में ले सकती हूं। काव्यांश प्रकाशन के अधिपति प्रबोध उनियाल जी को शुभकामनाएं। श्रेष्ठ साहित्य प्रकाशित कर रहे हैं।

समीक्षक : डॉ. सविता मोहन

कहानी संग्रह : आवाज रोशनी है

लेखक : अमिता प्रकाश

प्रकाशक : काव्यांश प्रकाशन, ऋषिकेश

पृष्ठ : 136

मूल्य : 200 रुपये

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