सतपुळी मोटर बोगिन खास… (गढ़वाली लोकगीत)

द्वी हजार आठ भादौं का मास, सतपुळी मोटर बोगिन खास।
से जावा भै-बन्दों अब रात ह्वेगे, रुण-झुण रुण-झुण बरखा लैगे।
काल की सि डोर निन्दरा ऐगे, मोटर का छत पाणी भोरेगे।
भादों का मैना रुण-झुण पाणी, हे पापी नयार क्य बात ठाणी।
सबेर उठिक जब औन्दान भैर, बोगिक औन्दार सान्दण, खैर।
डरैबर-कलैण्डर सबि कट्ठा ह्वावा, अपणि गाड़ी मां ढुंगा भोरा।
गरि ह्वै जाली गाड़ी रुकि जालो पाणी, हे पापी नयार क्य बात ठाणी।
अब तोड़ा जन्देउ कफड़यों खोला, हे राम, हे राम, हे शिब बोला।
डरैबर-कलैण्डर सबि भेंटि जौला, ब्यखुनी बिटिन यखुली रौला।
भग्यानु कि मोटर छाला लैगी, अभाग्यूं कि मोटर डुबण लैगी।
शिवानन्दी को छयो गोवरधन दास, द्वी हजार रुप्या थै तैका पास।
गाड़ी बगदी जब तैन देखी, रुप्यों कि गडोली नयार फेंकी।
हे पापी नयार कमाई त्वैकु, मंगसीर का मैंना ब्यो छयो मैकु।
सतपुळी का लाला तुम घौर जैल्या, मेरि हालत मां म बोल्या।
मेरि मां म बोल्यान तु मांजी मेरि, नि रयो मांजी गोदी कु तेरि।
मेरि मां म बोल्यान नि रयी सास, सतपुळी मोटर बोगिन खास।