नजरिया
कलह से धीमी हुई डबल इंजन की रफ्तार
हाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित
शाह ने उत्तराखंड दौरे पर भले ही सरकार के छह महीने के कार्यकाल को 100 नंबर दिए हों, मगर उन्होंने अपने दौरे में सरकार के अधिक ‘संगठन’ को
तरजीह दी। शायद इसलिए भी कि कुछ समय से सरकार और संगठन के बीच का तालमेल पटरी पर
नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि किसी दल के लिए सियासत में प्रचंड बहुमत ही
पर्याप्त नहीं होता है, निरंतरता
और प्रगति के लिए संगठनात्मक ताकत का उत्तरोत्तर बढ़ना भी जरूरी है। दरारों और
खाइयों के बीच ताकत को सहेजे रखना आसान नहीं होता। इस दौरे में शाह का विधायक और
मंत्रियों से लेकर अनुषंगियों तक जरूरत के हिसाब से पेंच कसना, स्पष्ट करता है कि अंदरुनी घमासान कुछ जोर
पर है।
शाह ने उत्तराखंड दौरे पर भले ही सरकार के छह महीने के कार्यकाल को 100 नंबर दिए हों, मगर उन्होंने अपने दौरे में सरकार के अधिक ‘संगठन’ को
तरजीह दी। शायद इसलिए भी कि कुछ समय से सरकार और संगठन के बीच का तालमेल पटरी पर
नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि किसी दल के लिए सियासत में प्रचंड बहुमत ही
पर्याप्त नहीं होता है, निरंतरता
और प्रगति के लिए संगठनात्मक ताकत का उत्तरोत्तर बढ़ना भी जरूरी है। दरारों और
खाइयों के बीच ताकत को सहेजे रखना आसान नहीं होता। इस दौरे में शाह का विधायक और
मंत्रियों से लेकर अनुषंगियों तक जरूरत के हिसाब से पेंच कसना, स्पष्ट करता है कि अंदरुनी घमासान कुछ जोर
पर है।
यहां कौन किस से नाराज है, कोई कहे, जरा हाल की कुछ घटनाओं पर भी नजर डाल लें। राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा बुलाई
गई क्लास में जब पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ सांसद बीसी खंडूड़ी हाजिर हुए, तो कुर्सियां खाली नहीं थीं और किसी ने
उनके लिए कुर्सी खाली करने की औपचारिकता भी नहीं निभाई। नतीजा उन्हें कुछ देर जगह
तलाश में खड़ा ही रहना पड़ा। तब टिहरी सांसद मालाराज्य लक्ष्मी शाह ने उन्हें अपने
सीट पर कुछ जगह दी। जबकि यही जनरल खंडूड़ी 2012 के विस चुनाव तक सबके लिए ‘जरूरी’ थे।
गई क्लास में जब पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ सांसद बीसी खंडूड़ी हाजिर हुए, तो कुर्सियां खाली नहीं थीं और किसी ने
उनके लिए कुर्सी खाली करने की औपचारिकता भी नहीं निभाई। नतीजा उन्हें कुछ देर जगह
तलाश में खड़ा ही रहना पड़ा। तब टिहरी सांसद मालाराज्य लक्ष्मी शाह ने उन्हें अपने
सीट पर कुछ जगह दी। जबकि यही जनरल खंडूड़ी 2012 के विस चुनाव तक सबके लिए ‘जरूरी’ थे।
उधर, हरिद्वार के अखाड़े में दो कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और सतपाल महाराज
समर्थकों के बीच खूंनी संघर्ष भी संबंधों में ‘रार’ का ही नतीजा माना जा
रहा है। प्रेमनगर आश्रम के अतिक्रमण के नाम पर हुई कार्रवाई को आपसी द्वंद के तौर
पर ही देखा गया। मामला अमित शाह तक भी पहुंचा और पटाक्षेप की बात भी हुई बताई गई।
मगर, संबंध अब भी मधुर हुए होंगे, इसके आसार कम लग रहे हैं। जनपद हरिद्वार
में ही सांसद और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक और कांग्रेस से भाजपा में आए
विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन समर्थकों के बीच भी विवाद बताया जा रहा है।
समर्थकों के बीच खूंनी संघर्ष भी संबंधों में ‘रार’ का ही नतीजा माना जा
रहा है। प्रेमनगर आश्रम के अतिक्रमण के नाम पर हुई कार्रवाई को आपसी द्वंद के तौर
पर ही देखा गया। मामला अमित शाह तक भी पहुंचा और पटाक्षेप की बात भी हुई बताई गई।
मगर, संबंध अब भी मधुर हुए होंगे, इसके आसार कम लग रहे हैं। जनपद हरिद्वार
में ही सांसद और पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक और कांग्रेस से भाजपा में आए
विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन समर्थकों के बीच भी विवाद बताया जा रहा है।
अनुशासन, सम्मान, मर्यादा
और नैतिकता की बातों के बीच यह अंतर्द्वंद का सीमा क्षेत्र गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं
में भी है। बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद भगत सिंह कोश्यारी को भी
फिलहाल साइड लाइन किया गया है। केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा और कैबिनेट
में एकमात्र महिला मंत्री रेखा आर्य के बीच भी टकराव की बात सामने आ रही हैं। दून
के मेयर विनोद चमोली और मुख्यमंत्री के बीच संवाद का वायरल वीडियो, हरिद्वार ग्रामीण से विधायक यतिश्वरानंद पर
एबीवीपी छात्रों का हमला और डिग्री कॉलेजों में एबीवीपी का ही ड्रेस कोड के खिलाफ
खड़ा होना, काफी कुछ बता दे रहा
है।
और नैतिकता की बातों के बीच यह अंतर्द्वंद का सीमा क्षेत्र गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं
में भी है। बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद भगत सिंह कोश्यारी को भी
फिलहाल साइड लाइन किया गया है। केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा और कैबिनेट
में एकमात्र महिला मंत्री रेखा आर्य के बीच भी टकराव की बात सामने आ रही हैं। दून
के मेयर विनोद चमोली और मुख्यमंत्री के बीच संवाद का वायरल वीडियो, हरिद्वार ग्रामीण से विधायक यतिश्वरानंद पर
एबीवीपी छात्रों का हमला और डिग्री कॉलेजों में एबीवीपी का ही ड्रेस कोड के खिलाफ
खड़ा होना, काफी कुछ बता दे रहा
है।
यहां तक कि अंदरखाने यह बात भी कही जा रही
है कि पूर्व के कांग्रेसी और अब भाजपा के विधायकों के साथ भी संगठन और सरकार की
ट्यूनिंग भी बहुत अच्छी नहीं। सड़क पर आम कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री तक
नाराजगियों का यह सिलसिला अमित शाह के दौरे के बाद भी थमा हो, ऐसा नहीं। जानकारों की मानें, तो सरकार और संगठन के बीच मसलों को सुलटाए
जाने की बजाए फिलहाल उन्हें अनदेखा करने की नीति पर अधिक फोकस किया जा रहा है।
नतीजा, क्षत्रप इस छाया युद्ध में
अपने वजूद बचाने में जुट गए हैं। अंदरखाने मीटिंगों से लेकर हाईकमान तक खुद को
साबित करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं।
है कि पूर्व के कांग्रेसी और अब भाजपा के विधायकों के साथ भी संगठन और सरकार की
ट्यूनिंग भी बहुत अच्छी नहीं। सड़क पर आम कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री तक
नाराजगियों का यह सिलसिला अमित शाह के दौरे के बाद भी थमा हो, ऐसा नहीं। जानकारों की मानें, तो सरकार और संगठन के बीच मसलों को सुलटाए
जाने की बजाए फिलहाल उन्हें अनदेखा करने की नीति पर अधिक फोकस किया जा रहा है।
नतीजा, क्षत्रप इस छाया युद्ध में
अपने वजूद बचाने में जुट गए हैं। अंदरखाने मीटिंगों से लेकर हाईकमान तक खुद को
साबित करने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं।
ऐसे में जब 2019 के लिए शाह ने देशभर में 350 प्लस का लक्ष्य तय किया है, उससे पहले उत्तराखंड में ‘रार’ का यह सिलसिला
थम जाएगा, फिलहाल कहना मुश्किल है।
हां, इस छोटे से वक्फे में
उत्तराखंड भाजपा के भीतर घमासान का असर भविष्य पर क्या होगा, यह देखना बाकी है।
हां, इस छोटे से वक्फे में
उत्तराखंड भाजपा के भीतर घमासान का असर भविष्य पर क्या होगा, यह देखना बाकी है।
आलेख- धनेश कोठारी