संघर्ष की प्रतीक रही टिहरी की कुंजणी पट्टी
देवभूमि उत्तराखंड वीरों को जन्म देने वाली भूमि के नाम पर भी जानी जाती है। इसी राज्य में टिहरी जनपद की हेंवलघाटी के लोगों की खास पहचान व इतिहास रहा है। इतिहास के पन्नों पर घाटी के लोगों की वीरता के किस्से कुछ इस तरह बयां हैं कि उन्होंने कभी अन्याय व अत्याचार सहन नहीं किया और अपने अधिकारों व संसाधनों की लड़ाई को लेकर हमेशा मुखर रहे।
राजशाही के खिलाफ विद्रोह व जनता के हितों के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीद श्रीदेव सुमन का नाम आज हर किसी की जुबां पर है, लेकिन सचाई यह है कि हेंवलघाटी के लोग उनसे भी पहले टिहरी रियासत के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा चुके थे। श्रीदेव सुमन से 30 वर्ष पूर्व तक हेंवलघाटी के नागणी के नीचे ऋषिकेश तक कुंजणी पट्टी कहलाती थी। वर्ष 1904 में टिहरी गढ़वाल रियासत में जंगलात कर्मचारियों का आतंक बेतहाशा बढ़ गया था। रियासत के अन्य इलाकों में जहां उनके अन्याय बढ़ते गए तो कुंजणी पट्टी के लोगों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की। उनके इस अभियान को इतिहास में ‘कुंजणी की ढंडक’ के नाम से जाना जाता है।
जुलाई 1904 में नरेन्द्रनगर के मौण, खत्याण के भैंस पालकों के डेरे थे। तब भैंसपालकों से पुच्छी वसूला जाता था। तत्कालीन कंजर्वेटर केशवानंद रतूड़ी समेत जंगलात के कर्मचारी मौके पर गए व मौण, खत्याड़ के भैंसपालकों से मनमाने ढंग से पुच्छी मांगी। मना करने पर कर्मचारियों ने उनके दूध-दही के बर्तन फोड़ दिए। इस पर भैंसपालक भड़क गए। भैंसपालकों के मुखिया रणजोर सिंह ने कंजर्वेटर के गाल पर चाटे जड़ दिए। इस पर रणजोर व उसके छह साथी गिरफ्तार कर लिए गए। रास्ते में फर्त गांव के भीम सिंह नेगी, जो उस समय मुल्की पंच व प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, ने कंजर्वेटर को रोका व रणजोर को छोड़ने को कहा, लेकिन कंजर्वेटर नहीं माना।
इस पर भीम सिंह ने बेमर गांव के अमर सिंह को बुलावा भेजा। अमर सिंह की गिनती तब क्षेत्र के दबंग लोगों में होती थी। अमर सिंह मौके पर पहुंचे, हालात की जानकारी ली और भैंसपालकों से विरोध करने को कहा। इस पर राणजोर सिंह सहित दूसरे लोगों ने हथकड़ियां पत्थर पर मारकर तोड़ दी। सबने मिलकर जंगलात के लोगों की धुनाई की और कंजर्वेटर को घोड़े से गिराकर कमरे में बंद कर दिया।
इसके बाद अमर सिंह ने तमाम मुल्की पंचों को बुलाकर बैठक की, जिसमें कखील के ज्ञान सिंह, स्यूड़ के मान सिंह, आगर के नैन सिंह, कुड़ी के मान गोपाल सहित दर्जन भर लोग बुलाए गए। लोगों को इकट्ठा कर आगराखाल, हाडीसेरा, भैंस्यारौ, बादशाहीथौल में विशाल सभाएं की गई। उसके बाद लोग जुलूस लेकर टिहरी पहुंचे। पंचों ने ऐलान कर दिया था कि जो व्यक्ति और गांव इस ढंडक में शामिल नहीं होगा, उसे बिरादरी से अलग कर दिया जाएगा। कंजर्वेटर ने पंचों सहित दूसरे लोगों पर मारपीट सहित कई आरोप लगाए।
राजमाता गुलेरिया के कहने पर कीर्तिशाह ने लोगों की मांगों पर गंभीरता से विचार किया तथा देवगिरी नामक साध्वी, जो क्षेत्र में वर्षो से रह रही थीं, के कहने पर लोगों को आरोपों से बरी कर दिया। इसके अलावा पुच्छीकर भी समाप्त कर दिया। लोगों की वन में चरान-चुगान खुला रखने की मांग भी मान ली गई।