फिल्म

‘जग्वाळ’ से शुरू हुआ था सफर

उत्‍तराखंडी
फिल्‍मों का सफरनामा

4 मई का दिन उत्‍तराखंड के लिए एक खास दिन है। जब दुनिया में सिनेमा के अन्‍वेषण के करीब सौ साल बाद 1983 में पहली आंचलिक फीचर फिल्‍म ‘जग्‍वाळ’ प्रदर्शित हुई। यह इतिहास रचा नाट्य शिल्‍पी पाराशर गौड़ ने। तकनीकी कमियों के बावजूद पहली फिल्‍म के नाते ‘जग्वाळ’ को औसत रिस्‍पांस मिला। इसके बाद बिन्देश नौडियाल ने 1985 में ‘कबि सुख कबि दु:ख’ प्रदर्शित की। जो कि कमजोर कथानक के चलते दर्शकों को कतई आकर्षित नहीं कर सकी। 
1986 का साल जरुर आंचलिक सिनेमा के लिए उत्‍साहजनक रहा। मुंबई के उद्यमी विशेश्वर नौटियाल ने तरनतारन धस्‍माना के निर्देशन में उत्‍तराखंड को पहली सबसे कामयाब फिल्‍म ‘घरजवैं’ दी। इस फिल्‍म ने आंचलिक सिनेमा को नई उम्‍मीद भी दी। जिसकी बदौलत उत्‍तराखंड सिनेमा का यह सफर 33 साल पूरे कर चुका है। सन् 1986 में ही शिवनारायण रावत निर्मित और तुलसी घिमीरे निर्देशित फीचर फिल्‍म ‘प्‍यारू रूमाल’ सिनेमाघरों में लगी। जो कि नेपाली फिल्‍म ‘कुसमई रुमाल’ से गढ़वाली भाषा में डब मात्र थी। इसी साल एक और फीचर फिल्‍म ‘कौथिग’ परदे पर साकार हुई। कौथिग को बेहद सधी हुई कथावस्‍तु, सुमधुर गीत संगीत, अभिनय और अच्‍छे निर्देशन के लिए याद किया जाता है। यह फिल्‍म जयदेव शील ने शक्ति सामंत के शागिर्द
रहे चरण सिंह चौहान के निर्देशन में बनाई। वहीं, बद्री आशा फिल्‍मस के बैनर पर सुरेंद्र सिंह बिष्‍ट द्वारा निर्मित व निर्देशित गढ़वाली फिल्‍म ‘उदंकार’ भी रिलीज हुई। 
उत्‍तराखंड के आंचलिक सिनेमा के इतिहास में वर्ष 1987 को भी खास तौर पर याद रखा जाएगा। इस साल कुमाउनी भाषा की पहली फिल्‍म ‘मेघा आ’ रिलीज की गई। इसका निर्माण जीवन बिष्‍ट व निर्देशन काका शर्मा ने किया था। सन् 1990 में किशन पटेल निर्मित और सोनू पंवार द्वारा निर्देशित एक और गढ़वाली फिल्‍म ‘रैबार’ दर्शकों तक पहुंची। 1992 में निर्माता सीताराम भट्ट ने मनोज कुमार के अस्सिटेंट रहे नरेश खन्‍ना के निर्देशन में ‘बंटवारू’ को रिलीज किया।
1993 में चरण सिंह चौहान के दिग्‍दर्शन में उर्मि नेगी द्वारा गढ़वाली फिलम ‘ फ्यूंली’ को प्रदर्शित किया गया। 1996 में ग्‍वाल दंपति ने चंद्र ठाकुर के निर्देशन में ‘बेटी ब्‍वारी’ फिल्‍म बनाई। 1997 में निर्माता नरेंद्र गुसाईं व निर्देशक नरेश खन्‍ना की फीचर फिल्‍म ‘चक्रचाळ’ रिलीज हुई। चक्रचाळ को भी दर्शकों में खासा सराहा गया।1998 में ‘ब्‍वारी होऊ त इनि होऊ’ का निर्माण सूर्यप्रकाश शर्मा और निर्देशन महावीर नेगी ने किया। महावीर नेगी के निर्देशन में ‘सतमंगळया’ नामक फिल्‍म भी प्रदर्शित हुई।
2001 में सावित्री रावत ने सुशील बब्‍बर के निर्देशन में रामी बौराणी के कथानक पर आधारित गढ़वाली फिल्‍म ‘गढ़ रामी बौराणी’ को प्रदर्शित किया गया। 2002 में अविनाश पोखरियाल ने ‘किस्‍मत’ रिलीज की। जिसे तब सबसे महंगी फिल्‍म माना गया। 2003 में बलविंदर सिंह ने ‘जीतू बगड्वाळ’ को सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया। 2003 में ही निर्माता अनिल जोशी व निर्देशक अनुज जोशी की फीचर फिल्‍म ‘तेरी सौं’ परदे पर आई। जो कि उत्‍त़राखंड आंदोलन में मुज्‍जफरनगर कांड की कहानी पर आधारित थी। इसी साल अर्श मलिक प्रोडक्‍शन के बैनर पर गढ़वाली फिल्‍म ‘चल कखि दूर जौला’ को रिलीज किया गया। 2004 में माहेश्‍वरी फिल्‍मस् की फिल्‍म ‘औंसी की रात’ प्रदर्शित हुई।

वहीं उत्‍तरांचल फिल्‍मस् के बैनर पर ‘मे‍री गंगा होली त मैंमु आली’ को रिलीज किया गया। वर्ष 2004-05 में ही उत्‍तरा कम्‍युनिकेशन के बैनर तले मुकेश धस्‍माना की फिल्‍म ‘मेरी प्‍यारी बोई’ का निर्माण किया गया। इसी दौरान हिंदी से गढ़वाली में
डब फिल्‍म ‘छोटी ब्‍वारी’ भी प्रदर्शित हुई। 2005 में कैलास द्विवेदी निर्मित गढ़वाली फिल्‍म ‘किसमत अपणी अपणी’ दर्शकों के सामने आई। वहीं अंकिता आर्ट के बैनर पर रिलीज फिल्‍म ‘संजोग’ को भी दर्शकों ने देखा।
2006 में लंबे अंतराल के बाद कुमाउनी भाषा में दूसरी फिल्‍म ‘चेली’ रिलीज हुई। जिसका निर्माण कमल मेहता द्वारा किया गया था। 2007 में सुदर्शन शाह ने कुली बेगार प्रथा पर आधारित कुमाउनी फिल्‍म ‘मधुलि’ को दर्शकों तक पहुंचाया। इसी साल भास्‍कर रावत ने गढ़वाली फिल्‍म ‘अपणु बिराणु’ का निर्माण भी किया। सन् 2008 में अजय शर्मा निर्मित व अनिल बिष्‍ट निर्देशित गढ़वाली फिल्‍म ‘मेरो सुहाग’ आई। जबकि ‘जगवाळ’ के निर्माता पाराशर गौड़ द्वारा प्रवासी मित्र के साथ इसी वर्ष रंगकर्मी श्रीश डोभाल के निर्दशन में ‘गौरा’ को प्रदर्शित किया।
सन् 2009 में निर्माता माधवानंद भट्ट व राजेश जोशी के निर्देशन में गढ़वाली व कुमाउनी में एक फिल्‍म रिलीज की गई। ब्रह्मानन्द छिमवाल, गोपाल उप्रेती  बद्री प्रसाद अंथवाल द्वारा निर्मित व राजेन्द्र बिष्ट निर्देशित कुमाउनी फिल्म ‘याद तेरी ऐगे
भी इसी वर्ष दर्शकों ने देखी। वहीं संतोष शाह निर्देशित व हीरासिंह भाकुनी, कुल रावत और खालिद द्वारा निर्मित कुमाउनी फिल्‍म ‘अभिमान’ को भी प्रदर्शित किया गया।
इसके बाद लंबे समय बाद 2015 में निर्माता उर्मि नेगी ने नरेश खन्‍ना के निर्देशन में शराब की विभीषिका पर केंद्रीत फिल्‍म ‘सुबेरौ घाम’ को दर्शकों तक पहुंचाया। इसी साल मोहनी ध्‍यानी पाटनी की ‘ल्‍या ठुंगार’ भी रिलीज हुई। जिसे बंबई और दिल्ली के
साथ ही गढ़वाल क्षेत्र में भी जबरदस्‍त रिस्‍पांस मिला। 2016 में नरेश खन्‍ना खुद निर्माता के रूप में उतरे हैं। अप्रैल में उनके द्वारा भाई बहन के प्रेम और खनन के गोरखधंधे पर आधारित फिल्‍म ‘भुली ऐ भुली’ को रिलीज किया गया है।
प्रस्‍तुति- भीष्‍म कुकरेती, मुंबई।
(साभार व मूल संदर्भ : मदनमोहन डुकलाण, चंद्रकांत नेगी, विपिन पंवार, एमएम मेहता के साथ मेरा पहाड़ डॉट कॉम टीम व हिलीवुड पत्रिका) 

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