गढ़वाल की वह रानी जिसने मुगलों की नाक काटी

भारतीय इतिहास में जब-जब “रानी कर्णावती” का नाम लिया जाता है, अधिकतर लोग मेवाड़ की उस रानी को याद करते हैं, जिसने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी थी। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि गढ़वाल की एक और रानी कर्णावती भी हुई थीं, जिन्होंने मुगल साम्राज्य की शक्ति को परास्त कर उसका घमंड चकनाचूर कर दिया था। यही रानी आगे चलकर “नाक कटी रानी” या “नाक काटने वाली रानी” के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
गढ़वाल की शेरदिल रानी
सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में गढ़वाल पंवार वंश के अधीन था। राजा महिपतिशाह के निधन के बाद उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह मात्र सात वर्ष के थे। ऐसे कठिन समय में राज्य की बागडोर उनकी माता रानी कर्णावती ने संभाली। दिल्ली की गद्दी पर तब मुगल सम्राट शाहजहाँ का शासन था। इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपनी प्रसिद्ध कृति “बादशाहनामा” में रानी कर्णावती का उल्लेख किया है। इसके अलावा नवाब शम्सुद्दौला खान की “मासिर-उल-उमरा” तथा इटली के लेखक निकोलाओ मानुची की “स्टोरिया डो मोगोर (Mughal India)” में भी रानी की वीरता का वर्णन मिलता है।
मुगल आक्रमण और रानी की रणनीति
जब शाहजहां का राज्याभिषेक हुआ (14 फरवरी 1628), तो उसने सभी भारतीय राजाओं को आगरा बुलाया था। लेकिन राजा महिपतिशाह न गए। एक ओर कठिन पर्वतीय मार्ग, और दूसरी ओर मुगलों की अधीनता स्वीकार न करने का स्वाभिमान। शाहजहां इससे क्रोधित हो गया। साथ ही उसे यह भ्रम था कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में सोने की खदानें हैं। महिपतिशाह और उनके वीर सेनापति रिखोला लोदी व माधोसिंह मलेथा के निधन के बाद शाहजहां ने मौका पाकर गढ़वाल पर चढ़ाई कर दी।
मुगल सेना के साथ लगभग तीस हज़ार घुड़सवार और पैदल सैनिक थे। रानी कर्णावती ने अपनी सेना को सीमा पर तैनात किया और शत्रु को गढ़वाल की घाटियों में घुसने नहीं दिया। जब मुगल सेना लक्ष्मणझूला (वर्तमान पौड़ी गढ़वाल) तक पहुंची, तो रानी ने कुशल रणनीति से उनके सभी मार्ग बंद कर दिए। आगे बढ़ने का रास्ता भी और पीछे लौटने का भी।
नाक कटवाने का आदेश, अपमान से बड़ी हार
पहाड़ों और नदियों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों की स्थिति दयनीय हो गई। रसद समाप्त हो गई, बीमारी फैल गई, और मुगल सेनापति नजाबत खान ने संधि का प्रस्ताव भेजा। रानी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा “गढ़वाल की धरती पर जो तलवार खींचेगा, उसका घमंड भी यहीं टूटेगा।” जब मुगलों की हार निश्चित हो गई, तब रानी ने उन्हें जीवनदान का एक ही शर्त रखी “जो जीना चाहता है, उसे अपनी नाक कटवानी होगी।” मुगल सैनिकों ने अपनी जान बचाने के लिए यह अपमान स्वीकार कर लिया।
गढ़वाल की धरती पर हजारों मुगल सैनिकों की नाकें काटी गईं। सेनापति नजाबत खान इस अपमान को सह नहीं सका और लौटते समय उसने अपनी जान दे दी। रानी की सेना में दोस्त बेग नामक एक अधिकारी का भी उल्लेख मिलता है, जिसने मुगलों की घेराबंदी और पराजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गढ़वाल की धरती पर स्वाभिमान की विजय
यह घटना सन् 1640 के आसपास की मानी जाती है। शाहजहां की हार ने मुगल साम्राज्य को गहरा आघात पहुंचाया। बाद में शाहजहां ने अरीज़ खान और फिर औरंगज़ेब को भी गढ़वाल पर आक्रमण का आदेश दिया, पर दोनों को असफलता ही मिली। गढ़वाल की यह विजय केवल एक युद्ध नहीं थी,यह स्वाभिमान की घोषणा थी। रानी कर्णावती ने यह सिद्ध कर दिया कि हिमालय की पुत्री कभी किसी बादशाह के आगे सिर नहीं झुका सकती।
इतिहास में उपेक्षित किंतु अमर नाम
विडंबना यह है कि कई स्थानीय इतिहासकारों ने पंवार वंश के राजाओं पर तो विस्तार से लिखा, पर इस वीरांगना के अदम्य साहस को अपेक्षित स्थान नहीं दिया। फिर भी, जनश्रुतियों, विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों और गढ़वाली लोककथाओं में रानी कर्णावती आज भी अमर हैं। “नाककटी रानी” केवल एक उपाधि नहीं, यह उस स्वाभिमान का प्रतीक है जिसने भारत की पहाड़ियों में स्वतंत्रता की लौ जलाए रखी।
गढ़वाल की रानी कर्णावती भारतीय इतिहास में नारी-साहस की ऐसी मिसाल हैं, जिन्होंने मुगल साम्राज्य की शक्ति को न केवल चुनौती दी, बल्कि पराजित भी किया। उन्होंने यह दिखा दिया कि “गढ़वाल की धरती पर तलवारें झुक सकती हैं, पर आत्मसम्मान नहीं।”
संदर्भ स्रोत
• अब्दुल हमीद लाहौरी – बादशाहनामा / पदशाहनामा
• नवाब शम्सुद्दौला खान – मासिर-उल-उमरा
• निकोलाओ मानुची – Storia do Mogor (Mughal India)
• गढ़वाल राज्य की प्राचीन लोककथाएं और स्थानीय इतिहास-वृत्तांत



