बोली-भाषा

गढ़वाळि भाषा मानकीकरण पर तीन दिनै कार्यशाला

रमाकान्त बेंजवाल //

दून यूनिवर्सिटी, देहरादून मा तीन दिनै (20 जून बिटि 22 जून, 2019 तलक) गढ़वाळि भाषा औच्चारणिक फरक तैं एकसौंडाळ कन्ना वास्ता कार्यशाला ह्वे।  यीं कार्यशाला मा उत्तराखण्डा  35 लिख्वार, साहित्यकार अर भाषा जणगुरोंन भाग ल्हीनि।
डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल जीन भाषौ मानक रूप तय कन्न से पैलि कुछ मार्गदर्शी सिद्वान्त निश्चय कन्नै बात करि अर वे हिसाब से वूंन बतायि कि-
1. जन हिंदी मा मेरठा आसपासै खड़ि बोलि तैं आधार बणाये गे वनि गढ़वाळि मा सिरनगर्या गढ़वाळि तैं आधार बणौला। गढ़वाळ्या सबि इलाक्वा शब्द पर्यायवाची बण्या रौला। गढ़वाळी मूल प्रकृति खुणि बचौणा वास्ता सांस्कृतिक शब्दावलि तैं बचै रखला।
2. शब्दांत मा स्वर-व्यंजन विवादै स्थिति पर स्वर तैं महत्व दिये जाव। 
3. उच्चारणा बाबत ब्वाल कि कखि जरूरत छ तक नै चिन्ह अपणोण पड़ला, ध्वनि चिन्ह बणाण की जरूरत छ।
4. असौंगा से सौंगै तरपां बढ़ण पड़लो।
कार्यशाला मा सर्वनाम, सबंध कारक प्रयोग, विशेषण, क्रिया विशेषण अर संज्ञा 400 व्यावहारिक शब्दों पर छाळछांट ह्वे अर उच्चारणो मानक निर्धारित करि गे। क्रियो मूल पद अकारान्त होण पर सहमति ह्वे। क्रिया तिन्नि कालों- भूत,  वर्तमान अर भविष्यत् (लिखण- लिखि – लिखद- लिखणू छ – लिखलो)  रूप तय ह्वेन।
यु बि तय करै गै कि-
1.  संज्ञा अर क्रिया मूल पदों मा इकारान्तो प्रयोग होलो। जन-अपणि ( अपनी), अपणी (अपनी ही)।
2. उकारान्त अर ओकारान्त द्वी अपणा सजिला हिसाबन लिखि सकदा। (मेरु/मेरो)
3. सम्बन्ध कारक मा का, की, कु को प्रयोग जख जरुरि हो तबै करै जाव। (जन- बाबौ कोट, भैज्यो बट्वा, भाषै जाणकारि, भाषौ इत्यास।)
3. लिंग भेद पर पुल्लिंग अर स्त्री लिंग कख जाणू अर कख जाणी अलग-अलग होलो।
4. श,  स, ष तिन्यों को प्रयोग सुबिधानुसार करि सकदा।
डा. अचलानंद जखमोला जी कि अध्यक्षता, लोकेश नवानी जी अर डा. जयन्ती प्रसाद नौटियाल जी का निर्देशन मा डा. नंदकिशोर ढौंडियाल जी, डा. जगदम्बा कोटनाला जी, वीरेन्द्र डंगवाल ‘पार्थ’ जी, डा.  सुरेश ममगांई जी, डा. सत्यानंद बडोनी जी, मदन मोहन डुकलान जी, गिरीश सुन्दरियाल जी, दिनेश ध्यानी जी, ओम बधाणी जी, संदीप रावत जी, डा. प्रीतम अपछ्याण जी, नीता कुकरेती जी, बीना कण्डारी जी, सुमित्रा जुगलान जी, रमाकान्त बेंजवाल, अरविंद पुरोहित जी, देवेन्द्र जोशी जी, सुरेन्द भट्ट जी,  देवश आदमी जी,  ओम प्रकाश सेमवाल जी, शान्ति प्रकाश जिज्ञासु जी, धनेश कोठारी जी, अरविंद प्रकृति प्रेमी जी, धर्मेन्द्र नेगी जी, डा. वीरेन्द्र बर्त्वाल जी, हरीश कण्डवाल ’मनखी’ जी उपस्थित छा।
ये अवसर पर उत्तराखंड भाषा संस्थान का निदेशक बीआर टम्टा भी मौजूद रैन। कार्यशालौ संयोजन बीना बेंजवाल अर गणेश खुगशाल गणीन करि।

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2 Comments

  1. 1.उत्कृष्ट प्रस्तति।
    2.गढ़वाली भाषा का विकास मा यि प्रयास सराहनीय छन।
    3.गढ़वाली भाषा तें नई पीढ़ी तक पहुंचोन कु तैं वेबमाध्यम बहुत ही प्रभावी होंदु।
    4.आप कू यु प्रयास सहेजी रखन योग्य च।
    डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल

  2. बोल पहाड़ी ब्लॉग तक पौंछणा वास्ता आभार सर।
    अपड़ी भाषा, संस्कृति, परंपरा संरक्षण मा मेरि या कोशिश जारी रैलि।

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