कहानियां

समौ (गढ़वाली कहानी)

चंदरु दिल्ली बिटि घौर जाणों तय्यार छौ, अर वेका गैल मा छौ तय्यार ’झबरु’। झबरु उमेद कु पाळ्यूं कुत्ता छौ। पाल्ळं से लेकि कुछ दिन पैलि तक उमेद अर वेकी स्वेण थैं झबरु से भारी आस छै। लेकिन अजकाल द्वी बड़ा परेशान छा। ठीक इन बग्त चंदरु दिल्ली काम से पौंछी। माना कि, उमेदा कु द्‍यब्ता दैणूं ह्‍वेगे हो। हलांकि दिल्ली कि लाइफ़ मा चंदरु कि द्वी चार दिनै कि खातिरदारी मा ही उमेदा थैं असंद औंण लगि छै। पण, यख त मोल हर चीज कू च। स्यू उमेदा का घौर रयां कु कर्ज चंदरु परैं बि ह्‍वे। ये ऐसान का बदला ही चंदरु झबरु सणिं घौर लिजाण कू राजी ह्‍वे। उमेदन् बोली- खुब बोलि ब्यट्टा तिन

चंदरु कि बात बीच मा ही काटिक उमेदन् बोलि

ज्यूंद रौ म्यरा लाटा

अफ्वू उमेद बर्सूं बिटि घौर नि गै छौ। ब्वै आज बि यकुलासी का दिन छै काटणीं च घौर मु। उमेद कु ध्यान ब्वै परैं वन्न त कबि नि जागी। पण, आज उमेद थैं ब्वै का यकुलास कि भारी चिंता ह्‍वईं छै। घैर मु ब्वै क दगड़ रिश्ता कि तरां दिल्ली कि मैंगै मा झबरु बि भारी प्वड़न लगि छौ। तन्न बि यूं शैरूं कु रिवाज च कि, बिगर आमदनी का त शैद ही क्वी मनख्यात बि कैमा जोड़ू।

स्यू चंदरु कु दिल्ली आगमन जोड़ जुगति अर उमेद का तड़तड़ा भाग कि ही बात छै। झबरु कि गाड़ीं असंद मा ब्वै याद औण बि लाजिमी ही छै। उमेद का चंट्ट दिमाग कि चकरापत्ती मा मुश्किल से पण, चंदरु फ़ंसी ही गे।  काका कुछ न सै त घौर फ़ण्ड सुदी भुकी बि करलु माचु त जग्वाळ त ह्‍वे जाली।

तब्बि घड़ेक बैठण पर छुं- बत्थ का बीच उमेदन् चंदरु काका तैं झबरु कु जीवन परिचय दे। क्य बोल्दन कि, ‘हौर्यौं कि हौर्यि छविं बल म्यर काले वी छविं’। पंदरा दिनौ लै छौ वू ये सणिं मल्या मुल्क बिटि। तबारि लाटू सि छौ माद! घौर फ़ुंडा सि छोरों कि तरां…।  तुम जणदै छां काका कि शैरूं मा लंडेरु बि कुछ दिन मा चकड़ैत ह्‍वे जांदन्।…। कबारि तू बि त घौर फ़ंडु कु ही छै। काका कि सच बाणी पर उमेद अर वेकि जनानि खित्त हैंसिक रैगेन। जनभुल्यो काकान् क्वी चखन्यो करि हो।

तबारि चंदरु काकान हर्बि घौरै डोखरी, पुंगड़्यों कि दग्ड़ सौब धाणि कि छविं मिसैन अर हर्बि उमेद कि ब्वै का यकुलास कि खैरि बि वे मा लगै। इतगा मा ही घौर बिटि ब्वै का बांध्यां च्यूड़ा बुखणौं कि रस्याण द्वी स्वेण-मैसा कु जन असवादी सि ह्‍वेगे छै। उमेदन् अपणा गौळा पर हाथ फ़ेरी, जनकि ब्वै का यकुलास का रैबार से वेका गौळा पर गेड़ाख सि पड़ीगे हो।

स्यू च्यूड़ा घुटणा कु उमेद थैं पाणि पेण पोड़्ये। अब तक वे तैं ब्वै कि खैर्यौं कि जगा सिर्फ़ वींकि देयिं समोण ही भलि लगदी छै।… देख भै काका यूं शैरूं का जंजाळ मा ‘समौ’ मोल्येक बि नि मिल्द, अर फेर ब्वै जना र्ह्‍यन् कू टैम कैमु च। यना मनख्यों कि खातिर मि अपणा ये बग्त थैं हात से बि त नि जाण दे सकदू। काका तु बि जाण्णीं छैं कि यिं सदी मा जब सर्रि दुन्या अगनै हिटणि च, तब ब्वै जना र्ह्‍यन मा क्य समझदारी च?

आखिर त्वी बोल… सवाल काका कि तर्फ़ उछाळीक्। ब्वै त ब्याळी च। मिन अपणौ आज, भोळ बि त द्‍यखण… अर भविष्य बि…। ! ज्यूंद रौ!! क्य खूब परिभाषा गढ़ीं च तेरि। चंदरुन् उमेद कि ‘दार्शनिकता’ का बीच मा ही वेकि बात काटि अर बोली… उमेद! शैद तू जात, थात अर मात (मां) कु मतबल बि भूलिगें। समौ तुम्मू त नि च पण, वीं ब्वैंल बि त कबि अपणि दुदलि चुंवैक समौ जग्वाळी होलू। छुचा! घौर मु निसक्कु शरेल… मंगरा ह्‍वेगेन् दूर… अर काचा लखड़ौं कु धुंयेरु जुद्‍दू। अबारि त पुंगड़ा जागदा कि क्वी नेळदू छौ त खार कि खार उपजौंदु। सोरौं का ओड़ा दिन रात बोदा कि कतगा जि सर्कि जां।

आखिर ई बि त समौ ही च। उमेद, काका कि छविं सुणिं बि अजाण सि बण्यूं रै। पण, वेकि स्वेण का गौळा खिकरांण सि लगि। किलै कि तबारि ब्वै चै जादा ऊंकि फ़िकर झबरु का बारै छै। हालांकि सब्बि तरै का ढंड करि आखिर द्वी स्वेण मैसान् चंदरु तैं झबरु घौर लिजाण का बारा राजि करि ही दे।

दिल्ली बिटि घौर पौंछिक् झबरु त जन बगच्छट्ट ह्‍वेगे। जनकि वे सणिं असल आजादी अब मिली हो। चंदरु से दिल्ली कि सर्रि स्वाल खबर जण्ण का बाद ब्वैन् बि चित्‍त बुझौ कै कि शैद यि जोग भाग च। चंदरु मा बचल्ये वा कि, द्‍यूरा! ये मुल्क मा ज्वान होंण ही भलु, बुढेण त अखर्त च। खैर, उमेद कि जगा झबरु ही सै…। बार बग्त जाग त रखलु। युधिष्ठिर का त दग्ड़ा तक गै छौ…।

अबि तकै का यकुलासी दिन वींल् कतगि दां बेऴ मा ही काटीन्। पण, अब झबरु कि खातिर द्वि-येक ढ्बाड़ी त ढोळन् जरूरी छा। चा काचा लखड़ौं कु धुंयेरु आंखा ही फ़ोड़ू। निथर भोळ उमेदन् सवाल भ्यजण… येक झबरु बि नि राखि जाणीं ब्वैन्। वीं थैं अजौं बि… यिं बातै फ़िकर छै। त सना-सना यख ब्वै अपणा ‘समौ’ तैं जग्वाळन् लगिं छै अर सोरौं कि तरां ‘ज्यूंरा’ बि दूर बिटि हैंसणूं छौ… समौ का बारा स्वोचिक्।

Copyright@ Dhanesh Kothari

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