हिन्दी-कविता

झड़ने लगे हैं गांव

चारू चन्द्र  चंदोला//
सूखे पत्तों की तरह झड़ने लगे हैं यहाँ के गाँव
उजड़ने लगी है मनुष्यों की एक अच्छी स्थापना
महामारी और बमबारी के बिना
मनुष्यों से रिक्‍त हो जाने के बाद
बचे रह जाएँगे यहाँ केवल
पेड़, पत्थर, पहाड़, नदियां
बदरीकेदार के वीरान रास्ते
अतीत की स्मृतियाँ
पूर्वजों की आत्माओं को भटकाने के लिए
भग्नावशेषों के थुपड़े
चलो ऐसा करें
पहाड़ के गाँवों को पूरी तरह
खाली करें और मैदानों में ले आएँ
देवभूमि को बेऔलाद करने के लिए
वहाँ के कीड़ेमकोड़े भी नहीं चाहते
कि वे वहाँ के क्वूड़ों, पूड़ों और पुँगड़ों में
रहें
उन्हें भी चाहिए
देहरादुनीसुविधाएँ, मायायें और कायाएँ
इसलिए
महानाद के साथ
मारते हुए एक ऐतिहासिक धाद
कह दो अपने मानवीय चालकों, परिचालकों और
तथाकथित उद्धारकों से
जिसके लिए हम लड़ेभिड़े,
नपेखपे
वह राज्य तुम्हारे लिए ही हो गया
तुम्हारा ही हो गया
इसलिए
तुम्हारी ही तरह सेठ बनने के लिए
अपने गाँवों को मैदानों में
ले जाने के लिए ठनगए हैं हम
रास्ता छोड़ो…..वास्ता तोड़ो!
आने ही वाला है देवभूमि में
विदाई का एक अभिनव मौसम
बजने वाले हैं ढोलदमौ
सिसकने वाली है पहाड़ की सगोड़ीपुगंड़ी,
घुघुती, सेंटुली और घेंडुड़ी भी।
कविताश्री चारू चन्द्र  चंदोला
(रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम बर्सू, का यह घर उन १२० परिवारों में से किसी का है, जो कुछ
समय पूर्व तक यहां रहते थे। अब यह गांव पूरी तरह खाली
(जनशून्य)
हो चुका है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार राज्य स्थापना से पूर्व जहां
१९९१ से २००१ तक पूरे उत्तराखण्ड परिक्षेत्र में ५९ गाँव पूरी तरह खाली हुए वहीं
स्थापना के बाद २००१ से २००९ के केवल अकेले रुद्रप्रयाग जिले में ही २६ गाँव पूरी
तरह खाली हो गए
)

साभारधाद से प्रकाशित कैलेण्डर २०१०.photo- sabhar

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