साहित्य

वीरेन्द्र पंवार की गढवाली भाषा में समीक्षाएं

वीरेन्द्र पंवार गढवाली समालोचना का महान स्तम्भ है. पंवार के बिना गढवाली समालोचना के बारे में सोचा ही नहीं जा सकता है. पंवार ने अपनी एक शैली परिमार्जित की है जो गढवाली आलोचना को भाती भी है क्योंकि आम समालोचनात्मक मुहावरों के अतिरिक्त पंवार गढ़वाली मुहावरों को आलोचना में भी प्रयोग करने में दीक्षित हैं. वीरेंद्र पंवार की पुस्तक समीक्षा का संक्षिप्त ब्यौरा इस प्रकार है
आवाज- खबरसार (2002)
लग्याँ छंवां – खबरसार (2004)
दुन्‍या तरफ पीठ – खबरसार (2005)
केर- खबसार (2005)
घंगतोळ – खबरसार (2008)
टुप-टप – खबरसार (2008)
कुल़ा पिचकारी – खबरसार (2008)
कुल़ा पिचकारी – खबरसार (2008
डा. आशाराम – खबरसार (2008)
अडोस पड़ोस – खबरसार (2009)
मेरी पूफू – खबरसार (2009)
दीवा दैणि ह्वेन – खबरसार (2010)
खबर सार दस साल की – खबरसार (2010)
ज्यूँदाळ – खबरसार (2011
पाणी’ – खबरसार (2011)
गढवाली भाषा के शब्द संपदा – खबरसार (2011)
सब्बी मिलिक रौंला हम – खबरसार (2011)
आस – रंत रैबार (2011)
फूल संगरांद – खबरसार (2011)
चिट्ठी पतरी विशेषांक – खबरसार (2011)
द्वी आखर – खबरसार (2011)
ललित मोहन कोठियाल की भी दो पुस्तकों की समीक्षा खबरसार में प्रकाशित हुईं हैं.
संदीप रावत द्वारा उमेश चमोला कि पुस्तक की समालोचना खबरसार (2011) में प्रकाशित हुई.
क्रमश:–
द्वारा- भीष्म कुकरेती

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