गेस्ट-कॉर्नर
जहां आज भी धान कुटती हैं परियां
देवभूमि उत्तराखंड में अनगिनत, अद्भुत
और चमत्कारिक स्थल हैं। उत्तराखंड में जनपद टिहरी के प्रतापनगर क्षेत्र का पीड़ी (कुंड)
पर्वत भी इन स्थलों में एक है। मां भराड़ी का वास स्थल कहे जाने वाले पीड़ी पर्वत पर
कई रहस्यमय स्थान हैं। मान्यता है कि यहां परियां भी वास करती हैं। इसलिए इस क्षेत्र
को परियों का देश भी कहा जाता है। मगर, प्रचार प्रसार के अभाव में ऐसी चमत्कारिक जगहों
को आज तक अपेक्षित पहचान नहीं मिली।
और चमत्कारिक स्थल हैं। उत्तराखंड में जनपद टिहरी के प्रतापनगर क्षेत्र का पीड़ी (कुंड)
पर्वत भी इन स्थलों में एक है। मां भराड़ी का वास स्थल कहे जाने वाले पीड़ी पर्वत पर
कई रहस्यमय स्थान हैं। मान्यता है कि यहां परियां भी वास करती हैं। इसलिए इस क्षेत्र
को परियों का देश भी कहा जाता है। मगर, प्रचार प्रसार के अभाव में ऐसी चमत्कारिक जगहों
को आज तक अपेक्षित पहचान नहीं मिली।
समुद्रतल से 9,999 फीट की ऊंचाई पर
स्थित पीड़ी पर्वत रमणीक स्थान है। यहां से नागाधिराज हिमालय समेत मां सुरकंडा, कुंजापुरी
और चंद्रबदनी का मंदिर भी दिखलाई देता है। यह क्षेत्र बांज बुरांश और कई जड़ी बुटियों
के पेड़ पौधों से आच्छादित है। एक पहाड़ी पर मां भराड़ी देवी का मंदिर है। यह मंदिर प्राचीनकाल
में आलू बगियाल ने बनवाया था। जिसका भव्य जीर्णोद्धार 2003 में किया गया। मंदिर के
आसपास कई अद्भुत, रहस्यमयी और चमत्कारिक स्थान हैं। पीड़ी के ठीक पास की पहाड़ी को खैट
पर्वत कहा जाता है।
स्थित पीड़ी पर्वत रमणीक स्थान है। यहां से नागाधिराज हिमालय समेत मां सुरकंडा, कुंजापुरी
और चंद्रबदनी का मंदिर भी दिखलाई देता है। यह क्षेत्र बांज बुरांश और कई जड़ी बुटियों
के पेड़ पौधों से आच्छादित है। एक पहाड़ी पर मां भराड़ी देवी का मंदिर है। यह मंदिर प्राचीनकाल
में आलू बगियाल ने बनवाया था। जिसका भव्य जीर्णोद्धार 2003 में किया गया। मंदिर के
आसपास कई अद्भुत, रहस्यमयी और चमत्कारिक स्थान हैं। पीड़ी के ठीक पास की पहाड़ी को खैट
पर्वत कहा जाता है।
गर्भ जोन गुफा
मां भराड़ी देवी मंदिर के पास एक बड़ी
गुफा है। इसकी सही गहराई का अभी तक पता नहीं है। गुफा में पत्थर फेंकने पर काफी देर
तक आवाज सुनाई देती है। माना जाता है कि यह गुफा गणेश प्रयाग (पुरानी टिहरी) तक है।
जिससे मां भराड़ी देवी स्नान के लिए गणेश प्रयाग जाती हैं।
गुफा है। इसकी सही गहराई का अभी तक पता नहीं है। गुफा में पत्थर फेंकने पर काफी देर
तक आवाज सुनाई देती है। माना जाता है कि यह गुफा गणेश प्रयाग (पुरानी टिहरी) तक है।
जिससे मां भराड़ी देवी स्नान के लिए गणेश प्रयाग जाती हैं।
तीर प्रहार पहाड़
मंदिर के समीप की पहाड़ी के बीच गहरी
और 200 मीटर लंबी दरार पड़ी हुई है। मान्यता है कि जब माता ने राक्षसों के वध के लिए
तीर छोड़े थे, तब कुछ तीरों से पहाड़ पर दरारें पड़ गई थी। इसलिए इस पहाड़ी को तीर प्रहार
कहा जाता है। यहां बड़ा ताल भी है। इस ताल में हड्डी और कंकाल नुमा पत्थर आज भी देखे
जाते हैं, जो राक्षसों की हड्डियां बताई जाती हैं।
और 200 मीटर लंबी दरार पड़ी हुई है। मान्यता है कि जब माता ने राक्षसों के वध के लिए
तीर छोड़े थे, तब कुछ तीरों से पहाड़ पर दरारें पड़ गई थी। इसलिए इस पहाड़ी को तीर प्रहार
कहा जाता है। यहां बड़ा ताल भी है। इस ताल में हड्डी और कंकाल नुमा पत्थर आज भी देखे
जाते हैं, जो राक्षसों की हड्डियां बताई जाती हैं।
रावण तपस्थली
मंदिर के पास एक टापूनुमा एकांत स्थान
है। यहां एक पत्थर पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की आकृति बनी हुई हैं। इस स्थान
से हिमालय और आसमान के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता है। माना जाता है कि यहां रावण
ने भगवान आशुतोष शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।
है। यहां एक पत्थर पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की आकृति बनी हुई हैं। इस स्थान
से हिमालय और आसमान के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता है। माना जाता है कि यहां रावण
ने भगवान आशुतोष शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी।
उल्टी ओखलियां
मंदिर के ठीक सामने की पहाड़ी पर कुछ
उल्टी ओखलियां बनी हैं। पहाड़ी पर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं हैं। लेकिन दूर से ओखलियां
साफ नजर आती हैं। यहां आज भी अनाज भूसा देखा जा सकता है। मान्यता है कि यहां आछरियां
(परियां) धान कुटती हैं। पहाड़ी के ठीक नीचे अखरोट का बागान है। खास बात यह है कि इन
अखरोटों को उसी स्थान पर खा सकते हैं।
उल्टी ओखलियां बनी हैं। पहाड़ी पर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं हैं। लेकिन दूर से ओखलियां
साफ नजर आती हैं। यहां आज भी अनाज भूसा देखा जा सकता है। मान्यता है कि यहां आछरियां
(परियां) धान कुटती हैं। पहाड़ी के ठीक नीचे अखरोट का बागान है। खास बात यह है कि इन
अखरोटों को उसी स्थान पर खा सकते हैं।
आलेख- रविन्द्र सिंह थलवाल
फोटो- साभार गूगल