गढ़वाली-कविता

यलगार चहेणी (गढ़वाली कविता)

























प्रदीप रावत “खुदेड़”//
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म्येरा पाड़ तै ज्वान नौनो कि दरकार चाहेणी च ,
दिल्ली देहरादून न गैरसैणे कि सरकार चहेणी च ।

जू रोजगार का बाद बी उंदा बस्ग्येन तौंते छोड़ा ,
जू सच्चा हिमपुत्र छन तौंकी ललकार चहेणी छ ।

मास्टर अपड़ा नौनो तै सरकरि इस्कूल मा पढ़ाण ,
पहाड़ मा इना मास्टरूं कि लंग्त्यार चहेणी छ ।

स्यू बी चुनौ जीती कि देहरादून जगता नि व्हान ,
इख समर्प्रित नेतों कि इख अगल्यार चहेणी छ ।

हर रोज हर हफ्ता हर मैना स्यूं पर घचाक मार ,
जनता बी पाड़े इख जागरूक दार चहेणी छ ।

अन्याय का दगड़ा खड़ी नि व्हा पुलिस चहेणी ,
नागरिक समाज का प्रति जिमेदार चाहेणी छ ।

केवल बिधायक नि कैर सकदू गौं कू विकास ,
प्रधान पंचू कि फ़ौज बी इख बफादार चहेणी छ ।

दारू भंगलू पे कि नि फूंका तुम यी ज्वनि तै ,
आपदा तोड्या पाड़ तै ज्वनि ताकतदार चहेणी छ ।

दल वल क्वी बी हो तुमारु ये पाड़ी मनख्यूं इख ,
पाड़ी हितों पर न इख क्वी तकरार चहेणी छ ।

एक दौं डंडा झंडा ले कि क्रांति का नारा लगजान ,
त्येरि कलमन खुदेड़ इनि एक यलगार चहेणी छ ।

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