गढ़वाली-कविता
तेरि सक्या त… (गढ़वाली कविता)
ब्वकदी रौ
मिन हल्ळु नि होण
तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च
दाना हाथुन् भारु नि सकेंदु
अबैं दां तू कांद अळ्गौ
तेरि घ्यू बत्तयोंन् गणेश ह्वेग्यों
चौदा भुवनूं मा रांसा लगौ
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण
तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च
सदानि सिच्युं तेरु बरगद ह्वेग्यों
अपणा दुखूं मेरा छैल मा उबौ
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण
तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च
श्हैद मा शोध्यूं नीम नितर्वाणी
दिमाग बुजि सांका थैं ठगौ
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण
तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च
खाणै थकुलि तेर्यि सौंरिं
बारा पक्वान बावन व्यंजन बणौ
ब्वकदी रौ मिन हल्ळु नि होण
तेरि सक्या त गर्रू ब्वकणै च
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मालीगांव
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