Month: December 2011
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लोकसभा मा क्य काम-काज हूंद भै ?
(Garhwali Satire, Garhwal Humorous essays, Satire in Uttarakahndi Languages, Himalayan Languages Satire and Humour ) अच्काल पार्लियामेंट मा रोज इथगा…
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क्य मि बुढे गयों ?
फिर बि मै इन लगद मि बुढे गयों! ना ना मि अबि बि दु दु सीढ़ी फळआंग लगैक चढदु. कुद्दी…
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गढवाली में गढवाली भाषा सम्बन्धी साहित्य
गढवाली में गढ़वाली भाषा, साहित्य सम्बन्धी लेख भी प्रचुर मात्र में मिलते हैं. इस विषय में कुछ मुख्य लेख इस…
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भाषा संबंधी ऐतिहासिक वाद-विवाद के सार्थक सम्वाद
गढवाली भाषा में भाषा सम्बन्धी वाद-विवाद गढवाली भाषा हेतु विटामिन का काम करने वाले हैं. जब भीष्म कुकरेती के ‘गढ़…
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मानकीकरण पर आलोचनात्मक लेख
मानकीकरण गढवाली भाषा हेतु एक चुनौतीपूर्ण कार्य है और मानकीकरण पर बहस होना लाजमी है. मानकीकरण के अतिरिक्त गढवाली में…
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वीरेन्द्र पंवार की गढवाली भाषा में समीक्षाएं
वीरेन्द्र पंवार गढवाली समालोचना का महान स्तम्भ है. पंवार के बिना गढवाली समालोचना के बारे में सोचा ही नहीं जा…
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गढवाली भाषा में पुस्तक समीक्षायें
ऐसा लगता है कि गढवाली भाषा की पुस्तकों की समीक्षा/समालोचना सं. 1985 तक बिलकुल ही नही था, कारण गढवाली भाषा…
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पहाड़ के उजड़ते गाँव का सवाल विकास की चुनौतियाँ और संभावनाएं
उत्तराखंड की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँव मैं निवास करती है 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश मैं लगभग…
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रचना संग्रहों में भूमिका लेखन
पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षा का जीवनकाल बहुत कम रहता है और फिर पत्र पत्रिकाओं के वितरण समस्या व रख…
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गढवाली भाषा में समालोचना/आलोचना/समीक्षा साहित्य
(गढवाली अकथात्मक गद्य-३) (Criticism in Garhwali Literature) यद्यपि आधिनिक गढवाली साहित्य उन्नीसवीं सदी के अंत व बीसवीं सदी के प्रथम…
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