गढ़वाली-कविता
गुलज़ार साहब की कविता “गढ़वाली” में
लोग सै ब्वळदिन, ब्यठुला हैंकि बानि का उलखणि सि हुंदिन । सर्या राति फस्सोरिक नि सिंदिन, कभि घुर्यट त कबरि…
Read More »गोर ह्वेग्यो हम
जैकि मरजि जनै आणी, वु उनै लठ्याणूं छ जैकि गौं जनै आणी, वु उनै हकाणू छ ज्वी जनै पैटाणू छ,…
Read More »जै दिन
जै दिन मेरा गोरू तेरि सग्वाड़यों, तेरि पुंगड़यों उजाड़ खै जाला जै दिन झालू कि काखड़ी चोरे जालि जै दिन…
Read More »सर्ग दिदा
सर्ग दिदा पाणि पाणि हमरि विपदा तिन क्य जाणि रात रड़िन् डांडा-कांठा दिन बौगिन् हमरि गाणि उंदार दनकि आज-भोळ उकाळ…
Read More »सिखै
सिहमरा बीच बजार दुकानि खोलि भैजी अर भुल्ला ब्वन्न सिखीगेन मिदेळी भैर जैक भैजी अर भुल्ला व्वन्न मा सर्माणूं सिखीग्यों…
Read More »तेरा गौं औऊ जब बिटि (गढ़वाली कविता)
हेमवतीनंदन भट्ट ‘हेमू’ का लिखा और गया गया एक कर्णप्रिय गढ़वाली गीत http://www.4shared.com/mp3/1LIWPoxT/TERU_GAUN_AUNU_JAB_.html
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