हिन्दी-कविता
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पीले पत्ते
कवि- प्रबोध उनियाल पतझड़ की मार झेल रहे अपने आंगन में नीम के पेड़ के पत्तों को पीला होते हुए…
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तन के भूगोल से परे
निर्मला पुतुल/ तन के भूगोल से परे एक स्त्री के मन की गांठें खोलकर कभी पढ़ा है तुमने उसके भीतर…
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शुक्रिया कहना मां
आशीष जोशी ने अपनी वॉल पर एक हृदय विदारक कविता शेयर की है। रचनाकार के बारे में वह नहीं जानते…
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जादूगर खेल दिखाता है
जादूगर खेल दिखाता है अपने कोट की जेब से निकालता है एक सूर्ख फूल और बदल देता है उसे पलक…
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दाज्यू मैं गांव का ठैरा
अनिल कार्की// पहाड़ में रहता हूं गांव का ठैरा दाज्यू में तो पीपल की छांव सा ठैरा ओल्ले घर में…
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ग़ज़ल
दुष्यंत कुमार // तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं ।।…
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हत्यारी सडक
अतुल सती// ऋषिकेश से लेकर बद्रीनाथ तक लेटी है नाग की तरह जबडा फैलाये हत्यारी सडक राममार्ग 58 रोज माँगती…
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झड़ने लगे हैं गांव
चारू चन्द्र चंदोला// सूखे पत्तों की तरह झड़ने लगे हैं यहाँ के गाँव उजड़ने लगी है मनुष्यों की एक अच्छी…
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हे रावण
रावण तुम अब तक जिंदा हो, तुम्हें तो मार दिया गया था त्रेता में. … उसके बाद भी सदियों से…
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ये जो निजाम है
ये जो निजाम है तुझको माफ़ कर देगा खुद सोच क्या तू खुद को माफ़ कर देगा बारिशों में भीग…
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