साहित्य

  • बसंत

    लो फिर आ गया बसंत अपनी मुखड़ी में मौल्‍यार लेकर चाहता था मैं भी अन्‍वार बदले मेरी मेरे ढहते पाखों…

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  • सिखै

    सिहमरा बीच बजार दुकानि खोलि भैजी अर भुल्‍ला ब्‍वन्‍न सिखीगेन मिदेळी भैर जैक भैजी अर भुल्‍ला व्‍वन्‍न मा सर्माणूं सिखीग्‍यों…

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  • तय मानो

    तय मानों देश लुटेगा बार-बार, हरबार लुटेगा तब-तब, जब तक खड़े रहोगे चुनाव के दिन अंधों की कतारों में समझते…

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  • बाबा केदार के दरबार में

    जगमोहन ‘आज़ाद‘//  खुद के दुखों का पिटारा ले खुशीयां समेटने गए थे वो सब जो अब नहीं है…साथ हमारे,बाबा केदार के…

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  • क्या फर्क पड़ता है

    ये इतनी लाशें किस की हैं क्यों बिखरी पड़ी हैं ये बच्चा किसका है मां को क्यों खोज रहा है….मां…

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  • मैं, इंतजार में हूं

    मैं, समझ गया हूं तुम भी, समझ चुके हो शायद मगर, एक तीसरा आदमी है जो, चौथे और पांचवे के…

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  • बेटियां

    कई बार देखा बेटियों को बेटा बनते हुए मगर, बेटे हर बार बेटे ही बने देखे इसलिए जोर देकर कहूंगा…

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  • सांसू त् भ्‍वोर

    बिसगणि बिसैकि सै उकळी जैलि उकाळ एक न एक दिन सांसू त् भ्‍वोर जाग मा च मयेड़ बैठीं देळी मा…

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  • Chola-Badal: Review

    Chola-Badal: Satire on Blind Followership of Political Leaders Critical review of Garhwali satirical proseCritical Review of Garhwali Satirical prose written…

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  • हाइकू

    1 बोगठ्या काळू हो चा गोरु दोष नि मिटण त् क्य फैदू 2 पळ्नथरा ढुंगौं पर बि पळ्येक खुंडा होणान्…

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