व्यंग्यलोक
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व्यंग्य : एक आम हैंका आमाऽ काम नि औंदु
Satire: Ek aam hainka aamaa kaam ni aundu• नरेंद्र कठैतवुन त आम क्वी बड़ी चीज नी। आम, आम होंदु। आमौ…
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जरा बच के … (व्यंग्य)
• प्रबोध उनियाल बहुत समय पहले की बात है, तब इतनी मोटर गाड़ियां नहीं थीं। सबके अपने-अपने घोड़े होते थे।…
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भाई साहब घर में हैं (व्यंग्य)
• प्रबोध उनियाल कुछ भाई साहब तो आजकल बर्तनों के साथ फर्श को भी रगड़-रगड़ कर चमका रहे हैं। आजकल…
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अरे! यु खाणू बि क्य- क्य नि कराणू! (गढ़वाली व्यंग्य)
नरेन्द्र कठैत खाणू जैका हथ मा आणू, दुन्या मा वी राणू। अर जैका हथ मा खाणू नि आणू, वू…
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आखिर यम हैं हम..!!! (हास्य-व्यंग्य)
धनेश कोठारी // ************* ब्रह्मलोक में वापस लौटते ही यमराज अपना गदा एक तरफ, मुकुट दूसरी तरफ, भैंस तीसरी तरफ…
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दानै बाछरै कि दंतपाटी नि गणेंदन्
ललित मोहन रयाल // ऊंकू बामण बिर्तिकु काम छाई। कौ-कारज, ब्यौ-बरात, तिरैं-सराद मा खूब दान मिल्दु छाई। बामण भारि…
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लोकभाषा के एक भयंकर लिख्वाड़ कवि (व्यंग्य)
ललित मोहन रयाल // लोकभाषा में उनका उपनाम ’चाखलू’ था, तो देवनागरी में ’पखेरू’। दोनों नाम समानार्थी बताए जाते थे।…
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फेसबुक अकौंट औफ ब्वाडा … (व्यंग्य)
यस. के थपल्याल ’घंजीर’ / / हे वै निरबै दलेदरा! निगुसैंकरा तु मेरू फीसबुक अकौंट किलै नि खोलणु छै रै……
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‘जानलेवा’ कवि (व्यंग्य)
ललित मोहन रयाल // ‘जानलेवा’ उनका तखल्लुस था, ओरिजिनल नाम में जाने की, कभी किसी ने जरूरत ही नहीं समझी।…
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लंपट युग में आप और हम
बड़ा मुश्किल होता है खुद को समझाना, साझा होना और साथ चलना। इसीलिए कि ‘युग’ जो कि हमारे ‘चेहरे’…
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