गढ़वाली-कविता

हिकमत न छोड़ (गढवाली कविता)

थौ बिसौण कू चा उंदारि उंद दौड़
उकाळ उकळं कि तब्बि हिकमत न छोड़

तिन जाणै जा कखि उंड-फंडु चलि जा
पण, हौर्यों तैं त्‌ अफ्वू दगड़ न ल्हसोड़

औण-जाण त्‌ रीत बि जीवन बि च
औंदारौं कू बाटू जांदरौं कि तर्फ न मोड़

रोज गौळी ह्‍यूं अर रोज बौगी पाणि
कुछ यूं कू जमण-थमण कू जंक-जोड़

हैंका ग्वेर ह्‍वेक तेरु क्य फैदू ह्‍वे सकद
साला! वे भकलौंदारा थैं छक्वैकि भंजोड़ ॥

कॉपीराइट- धनेश कोठारी 

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