गढ़वाली-कविता

सुबेर होण ई च (गढवाली कविता)

अन्धेरा तू जाग्यूं रौ, भोळ त सुबेर होण ई च।
सेक्की तेरि तब तलक, राज तिन ख्वोण ई च॥

आज हैंसी जा जथा हैंसदें, ठट्टा बि लगैकर तू
जुगू बटि पैट्यूं घाम, आखिर वेन्‌ औण ई च॥

माना कि यख तुबैं बि, तेरा धड़्वे बिजां होला
तब्बि हमुन्‌ उज्याळा कू, हौळ त लगौण ई च॥

ब्याळी कि तरां आज नि, आजै चार भोळ क्य होलू
आज माण चा भोळ, तेरा फजितान्‌ त होण ई च॥

तेरा बुज्यां आंखों मा, चा न दिख्यो कुछ न कत्त
हत्त खुट्टौन्‌ जलक-जुपै करि घाम त ख्वौज्यौण ई च॥

निराश ऐ उदास रै तू, जब बि मेरि देळ्‌यी मा
बर्सूं का बणबास बाद त, बग्वाळ मनौण ई च॥

कॉपीराइट- धनेश कोठारी 

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