नजरिया
घृणा, राजनीति और चहेते
आज एक राजनीतिक दल से जुड़े परिचित ने अपने स्मार्टफोन पर व्हाट्स
अप से आई तस्वीर दिखाई। उनके नेता की गोद में बच्चे के रुप में एक दल की मुखिया दिखाई
गई थी। तभी मेरे मुहं से तपाक से छूटा, अरे क्या वह कुंवारे ही बाप बन गए
… बेचारे परिचित कुछ नहीं कह सके। सब वाकया महिला दिवस पर आयोजित एक
कार्यक्रम के दौरान का है। तब मैंने मन में सोचा कि यही लोग हैं, जो यत्र नार्यस्तु
पुज्यंते रमंते तत्र देवता का स्वांग भरते
हैं, और यही वह लोग हैं, जो नारियों का
सम्मान इस रुप में भी करते हैं।
उस वक्त मेरा मन निश्चित ही घृणा से भर गया। मन में
घृणा इसलिए भी हुई कि क्या राजनीतिक विरोधों के लिए हम अपनी मानवीय संवेदनाओं को भी
तिलांजलि दे चुके है। हमारा हास्य भी इतना असामाजिक, अनैतिक और अमानवीय हो गया है।
प्रचार का इतना निकृष्टतम स्वरुप, वह भी महिला दिवस पर …. और वह भी उनके द्वारा जो महिलाओं की सुरक्षा दुहाई देते हैं। दूसरों के महिलाओं
के साथ किए गए कुकृत्यों को अंगुलियों पर गिनाते फिरते हैं। धिक्कार ऐसी राजनीति
और उसके चहेतों पर….। महोदय और आपके बिरादरान सुन रहे हैं न….
अप से आई तस्वीर दिखाई। उनके नेता की गोद में बच्चे के रुप में एक दल की मुखिया दिखाई
गई थी। तभी मेरे मुहं से तपाक से छूटा, अरे क्या वह कुंवारे ही बाप बन गए
… बेचारे परिचित कुछ नहीं कह सके। सब वाकया महिला दिवस पर आयोजित एक
कार्यक्रम के दौरान का है। तब मैंने मन में सोचा कि यही लोग हैं, जो यत्र नार्यस्तु
पुज्यंते रमंते तत्र देवता का स्वांग भरते
हैं, और यही वह लोग हैं, जो नारियों का
सम्मान इस रुप में भी करते हैं।
उस वक्त मेरा मन निश्चित ही घृणा से भर गया। मन में
घृणा इसलिए भी हुई कि क्या राजनीतिक विरोधों के लिए हम अपनी मानवीय संवेदनाओं को भी
तिलांजलि दे चुके है। हमारा हास्य भी इतना असामाजिक, अनैतिक और अमानवीय हो गया है।
प्रचार का इतना निकृष्टतम स्वरुप, वह भी महिला दिवस पर …. और वह भी उनके द्वारा जो महिलाओं की सुरक्षा दुहाई देते हैं। दूसरों के महिलाओं
के साथ किए गए कुकृत्यों को अंगुलियों पर गिनाते फिरते हैं। धिक्कार ऐसी राजनीति
और उसके चहेतों पर….। महोदय और आपके बिरादरान सुन रहे हैं न….