गढ़वाल की ब्राह्मण जातियों का इतिहास- (भाग 1)

उत्तराखंड के गढ़वाल (मंडल) परिक्षेत्र में अनेकों जातियों का निवास है। उनका इतिहास हमारी धरोहर है। जरूरी है कि आज और आने वाले कल में नई पीढ़ियां भी इससे वाकिफ हों, यह प्रयास है। यहा निवासरत जातियां कैसे यहां बसे, कहां से और कब यहां आए, इन्हीं सब बिन्दुओं को इतिहास की पूर्व प्रकाशित पुस्तकों से संदर्भ सहित संकलित किया जा रहा है। इस शृंखला के पहले भाग (भाग- 01) में आइए जानते हैं गढ़वाल में निवास कर रही ब्राह्मण जातियों के विषय में-
ब्राह्मण :– गढ़वाल में निवास करने वाली ब्राह्मण जातियों के बारे में यह माना जाता है कि 8वीं – 10वीं शताब्दी के मध्य में ये लोग अलग-अलग मैदानी भागों से आकर यहां बसे और यहीं के रैबासी (निवासी) हो गए। गढ़वाल में प्राचीन समय से ब्राह्मणों के तीन वर्ग हैं। इतिहासकारों ने उन्हें सरोला, निरोला (नानागोत्री या हसली) तथा गंगाड़ी नाम दिए हैं। राहुल सांकृत्यायन यहां के ब्राह्मणों को सरोला, गंगाड़ी, दुमागी व देवप्रयागी चार श्रेणियों में बांटते हैं। गढ़वाल की ब्राह्मण जातियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है –
(अ) सरोला ब्राह्मण :- इसके अंतर्गत वे ब्राह्मण जातियां आती हैं जिनका मुख्य काम शादी-विवाह व अन्य शुभ-अवसरों पर सम्पूर्ण गांव-कुटुंब-भयात के लिए भात पकाना (खाना पकाना) था। इसीलिए इन्हें सरोला कहा जाता है। सरोला ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जिन्हें प्राचीन समय में चांदपुर गढ़ी के राजा ने रसोई के रूप में नियुक्त किया था। ‘सर’ का सरोला ‘गाड’ का गंगाड़ी। इस उक्ति के अनुसार ऊंचे स्थानों पर रहने वाले ब्राह्मण सरोला तथा नदी घाटी के निवासी ब्राह्मणों को गंगाड़ी कहा जाने लगा। आरम्भ में सरोलों की बारह जातियां ही थीं। कहा जाता है कि नौटियालों का पूर्व पुरुष जो नौटी गांव में बसा था, गढ़ नरेशों के पूर्वज कनकपाल के साथ गढ़वाल में आया था।
1- नौटियाल :- संवत 945 में नौटियाल जाति के सरोला लोग धार मालवा से राजा कनकपाल के साथ आकर तल्ली चांदपुर के नौटी गांव में बस गए। नौटियाल जाति के लोगों के बसने के कारण ही इस गांव का नाम नौटी गांव पड़ा। नौटियाल जाति के वंशजों का आरम्भ इसी गांव से माना जाता है। जो कि राजा कनकपाल के साथ आयी थी। ढंगाण, पल्याल, मंजखोला, गजल्डी, चान्दपुरी, बौसोली नामक छह जाति संज्ञा इसी एक जाति की शाखा हैं।
2- सेमल्टी :- इतिहासकार पं हरिकृष्ण रतूड़ी जी के अनुसार, इनके आदि पुरुष संवत 965 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेमल्टा गांव में आकर बसे थे। सेमल्टा गांव के निवासी होने के कारण ये सेमल्टी कहलाए।
3- मैटवाणी :- गढ़वाली आद्य गौड़ ब्राह्मण मैटवाणी गौड़ देश छखात, बंगाल से संवत 975 में गढ़वाल चांदपुर गढ़ी के मैटवाणा नामक गांव में आकर बसे। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद त्र्यम्बक थे।
4- गैरोला :- आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण गैरोला जाति के लोगों का पैतृक गांव चांदपुर में माना जाता है। इनके आदि पुरुष जयानन्द और विजयानन्द संवत 972 में गैरोली गांव में आकर बसे थे। इसी कारण ये गैरोला कहलाए।
5- चमोली :- मूलरूप से सरोला द्रविड़ ब्राह्मण हैं, जो रामनाथ विल्हित नामक स्थान से संवत 924 में आकर गढ़वाल के चांदपुर परगने के चमोली नामक गांव में आकर बसे। यह जाति सरोलाओं में प्रमुख मानी जाती है और ‘बारह- थोकी’ समुदाय का अंग है। नंदादेवी राजजात यात्रा में इस जाति के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
6-डिमरी :- डिमरी ब्राह्मण दक्षिण भारत के द्रविड़ ब्राह्मण माने जाते हैं। इनके मूल पुरुष राजेन्द्र और बलभद्र संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल में चांदपुर के डिम्मर गांव में आकर बस गए थे, जिसके फलस्वरूप ये डिमरी कहलाए।
7-थपलियाल :- संवत 980 में थपलियाल सरोला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग चांदपुर के थापली नामक गांव में आकर बस गए। थपलियाल जाति के लोग चांदपुर गढ़ी के अलावा देवलगढ़, श्रीनगर और टिहरी में भी प्रसिद्ध रहे हैं।
8- सेमवाल :- आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण सेमवाल संवत 980 में वीरभूम, बंगाल से गढ़वाल के सेम गांव में आकर बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष प्रभाकर और निरंजन थे।
9- बिजल्वाण :- गौड़ ब्राह्मण बिजल्वाण जाति के आदि पुरुष बिज्जू नामक व्यक्ति थे। जो संवत 1100 में वीरभूम, बंगाल से आकर गढ़वाल में बसे थे। संभवतः उन्हीं के नाम पर ही इस जाति का नाम बिजल्वाण पड़ा।
10- लखेड़ा :- आद्य गौड़ सरोला ब्राह्मण लखेड़ा जाति के मूल पुरुष नारद और भानुवीर संवत 1117 में प- बंगाल के वीरभूम से आकर गढ़वाल के लखेड़ी नामक गांव में आकर बसे।
11- खण्डूड़ी :- गढ़वाल में सरोलाओं के बारह- थोकी समुदाय में से एक ब्राह्मण जाति खंडूड़ी मूलतः गौड़ ब्राह्मण जाति है। जिनका गढ़वाल के खंदूड़ा गांव में आगमन संवत 945 में वीरभूम बंगाल से हुआ।
12- कोटियाल/ कोठियाल :- गौड़ ब्राह्मण कोटियाल/ कोठियाल गढ़वाल के सरोला जाति की एक प्रमुख जाति है। जो चांदपुर के कोटी गांव मैं आकर बसी थी और यहां कोटियाल अथवा कोठियाल नाम से प्रसिद्ध हुई।
13- मैराव के जोशी :- ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुमाऊं से गढ़वाल में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए।
14- रतूड़ी :- इस जाति को सरोला समुदाय की प्रमुख जाति माना जाता है। यह आद्य गौड़ ब्राह्मण जाति गौड़ देश से संवत 980 में गढ़वाल में आयी और चांदपुर के समीप रतुड़ा गांव में बस गयी। टिहरी के राजा के राजदरबार में वजीर पंडित रहे प- हरिकृष्ण रतूड़ी को सर्वप्रथम गढ़वाल का प्रामाणिक इतिहास लिखने का श्रेय भी जाता है।
15- नवानी :- इनकी पूर्व जाति सती थी और ये संवत 980 में गुजरात से गढ़वाल के नवन गांव में आकर बसे जिसके कारण इस जाति का नाम नवानी पड़ा।
16- हटवाल :- गौड़ ब्राह्मण हटवाल वीरभूम, बंगाल से 1059 संवत में गढ़वाल के हाटगांव में आकर बसे जिसके कारण ये हटवाल कहलाए। इनके मूल पुरुष सुदर्शन और विश्वैश्वर थे।
17- सती :- गढ़वाल की ये सरोला जाति गढ़वाल में गुजरात से आई और चांदपुर गढ़ी में बसी है। ब्राह्मण जाति नवानी इस जाति की एक उप-शाखा है। सती जाति के लोग गढ़वाल के अलावा कुमाऊं में भी हैं।
18- कंडवाल :- ये मूलतः सरोला ब्राह्मण हैं, जो गढ़वाल के कांडा गांव में बसने से कंडवाल कहलायी। कंडवाल जाति के लोग कुमाऊं के कांडई नामक गांव से चांदपुर परगने में आकर बसे थे।
(ब) गंगाड़ी ब्राह्मण :- इसके अंतर्गत उन ब्राह्मण जातियों को रखा जाता है जिनकी व्यवहारिकता का क्षेत्र केवल अपनी बिरादरी और अपने सगे-सम्बंधियों या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष जातियों तक ही सीमित होता है। पं- रतूड़ी जी का मानना है कि सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मण वही ब्राह्मण हैं जिनके मूल पुरुष इस देश के आदिम निवासियों में नहीं थे। बल्कि वे लोग क्रमशः आठवीं या नवीं शताब्दी से और उसके पश्चात भी इस देश में आकर बसे, और बसते रहे।
नानागोत्री या खस ब्राह्मण
गढ़वाल के आदिम निवासी और नवागन्तुक लोगों की मिली-जुली संतान पायी जाती है, जिसके साक्षी रूप उनके आचार-विचार विद्यमान हैं, जो अब भी उनके बीच उसी तरह पाये जाते हैं। गंगाड़ी और सरोला ब्राह्मणों के गोत्र भी एक हैं और धार्मिक और लौकिक रिवाज भी एक हैं। केवल भेद इतना है कि सरोला जाति का पकाया हुआ दाल चावल सब जातियां खा लेती हैं, जबकि गंगाड़ी ब्राह्मणों का पकाया हुआ दाल चावल उनकी रिश्तेदारी में ही चलता है।
1- बुधाणा/बहुगुणा :- गढ़वाल में गंगाड़ी ब्राह्मणों में प्रमुख आद्यगौड़ ब्राह्मण बहुगुणा जाति सम्वत 980 में गौड़ बंगाल से गढ़वाल के बुघाणी नामक गांव में आकार बसी। बुघाणी गांव में बसने के कारण ये बहुगुणा कहलाए। बहुगुणा जाति को चौथोकी समुदाय’ (डोभाल, बहुगुणा, डंगवाल और उनियाल) के अंर्तगत रखा जाता है।
2- डंगवाल :- डंगवाल जाति के द्रविड़ मूल के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 982 में संतोली, कर्नाटक से डांग गांव में बसे थे। इनके मूल पुरुष धरणीधर थे।
3- डोभाल :- डोभाल जाति के लोग संवत 945 में संतोली, कर्नाटक से आकर गढ़वाल के डोभा गांव में आकर बसे, इसीलिए ये डोभाल कहलाए। इस जाति के मूल पुरुष कर्णजीत डोभा सर्वप्रथम वे ही डोभा गांव में आकर बसे थे।
4- उनियाल :- संवत 981 में मिथिला से जयाचंद और विजयाचंद नामक दो पृथक गोत्री ममेरे-फुफेरे भाई श्रीनगर, गढ़वाल के वेणी गांव में आए और वहीं बस गए। वे मैथिल ब्राह्मण थे। वहीं से उनियाल जाति का आरम्भ हुआ।
5- घिल्डियाल :- घिल्डियाल जाति को आद्यगौड़ ब्राह्मण श्रेणी में रखा जाता है। इस जाति के लोग गौड़ देश से संवत 1100 में गढ़वाल में आकर बसे। इसलिए इनका नाम घिल्डियाल पड़ा।
6- नैथानी/नैथाणी :- नैथानी मूलरूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं जो सम्वत 1200 कन्नौज से आकर गढ़वाल के नैथाणा नामक गांव में आकार बस गए। आपके मूलपुरुष कर्णदेव और इंद्रपाल जो सबसे पहले गढ़वाल में आए।
7- जुयाल :- गंगाड़ी ब्राह्मणों की महाराष्ट्रीय जाति जुयाल दक्षिण भारत से जुया गांव में संवत 1700 में इनके आदि पुरुष बासुदेव और विजयानंद के निर्देशन में गढ़वाल में आयी और तत्पश्चात यहीं बस गयी।
8- सकलानी/सकल्याणी :- कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की यह शाखा सम्वत 1700 के आसपास अवध से आकर गढ़वाल के सकलाना गांव में बसी। इनके मूल पुरुष नाग देव ने ही सकलाना गांव बसाया था। कालांतर में इस जाति के नाम पर इस पट्टी का नाम भी सकलाना पट्टी पड़ा। इस जाति के लोगों को ‘पुजारी’ भी कहा जाता है।
9- जोशी :- जोशी जाति के ब्राह्मणों की पूर्व जाति द्रविड़ मानी जाती है। ये जाति कुमाऊं से सम्वत 1700 में गढ़वाल आई और उसके बाद यहीं बस गयी।
10- तिवारी/तिवाड़ी :- त्रिपाठी मूल के तिवाड़ी सरोला ब्राह्मण लगभग 1700 संवत में कुमाऊं से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए और तत्पश्चात वहीं के निवासी हो गए।
11- पैन्यूली :- पैन्यूली मूलतः गंगाड़ी गौड़ ब्रह्मण हैं जो संवत 1207 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के पाण्याला गांव रमोलि में बसे थे। इनके मूल पुरुष ब्रह्मनाथ थे।
12- चंदोला :- इनकी पूर्व जाति सारस्वत है। ये पहले पंजाब से चंदोसी और उसके बाद सम्वत 1633 में गढ़वाल आए आए। इनके मूल पुरुष लूथराज माने जाते हैं। सम्भवतः चंदोसी में बसने के कारण ही ये चंदोला हुए।
13- ढौंडियाळ/ढौंडयाल :- गढ़वाल के नरेश राजा महिपति शाह द्वारा चोथोकी समुदाय में वृद्धि करते हुए 32 अन्य जातियों को भी इस समुदाय में शामिल किया गया, जिनमें ढौंडियाल प्रमुख जाति थी। इस जाति के मूल पुरुष रूपचंद गौड़ ब्राह्मण थे जो राजपुताना से सम्वत 1713 में गढ़वाल के ढौंड गांव में आकर बस गए थे। इनके द्वारा ही ढौंड गांव बसाया गया था, जिस कारण इन्हें ढौंडियाल कहा गया।
14- नौड़ियाल/नौडियाल/नौरियाल :- ये मूलतः गढ़वाली गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं। जो अपने मूल स्थान भृंग चिरंगा से सम्वत 1600 में गढ़वाल के नौड़ी गांव में आए और वहीं बस गए। इनके मूलपुरुष पंडित शशिधर द्वारा ही नौड़ी गांव बसाया गया था। इसी गांव के नाम पर ही इस जाति को नौडियाल कहा गया।
15- ममगाईं :- ममगाईं मूलतः गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन, महाराष्ट्र से आकर गढ़वाल में बसे और मामा के गांव में बसने के कारण ममगाईं नाम से प्रसिद्ध हुए। इस जाति के लोग मूलतः पौड़ी जिले में बसे हैं, लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी में भी इस जाति के कुछ गांव मिलते हैं।
16- बड़थ्वाल :- बड़थ्वाल मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं जो संवत 1543 में गुजरात से आकर गढ़वाल में बसे। इस जाति के मूल पुरुष पंडित सूर्य कमल मुरारी गुजरात से आकर गढ़वाल के बड़ेथ नामक गांव में बसे, बाद में इनके वंशज बड़थ्वाल नाम से प्रसिद्ध हुए।
17- कुकरेती :- ये द्रविड़ ब्रह्मण है, जो विलहित नामक स्थान से संवत 1409 में आकर गढ़वाल में बसे और फिर यहीं के निवासी हो गए। इनके मूल पुरुष गुरुपति कुकरकाटा नाम गांव में आकर बसे थे, यही कुकरकाटा नामक गांव में बसने के कारण ही ये कुकरेती नाम से प्रसिद्ध हुए।
18- धस्माना/धस्माणा :- धस्माना गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण हैं। जो उज्जैन से संवत 1723 में गढ़वाल आए और धस्मण गांव में बस गए थे। इनके मूल पुरुष हरदेव, वीरदेव और माधोदास थे।
19- कैंथोला :- कैंथोला की पूर्व जाति गुजराती भट्ट थी। ये गुजरात से संवत 1669 में अपने मूल पुरुष रामवितल के निर्देशन में गढ़वाल के कैंथोली गांव में आये और वहीं बस गए थे।
20- सुयाल :- सुयाल जाति के ब्राह्मणों के मूलपुरुष दजल और बाज नारायण गुजरात से आकर गढ़वाल के सुई गांव में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
21- बंगवाल :- बंगवाल गौड़ वंशीय ब्राह्मण हैं। ये सम्वत 1725 में मध्यप्रदेश से गढ़वाल के बांगा गांव में आकर में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
22- अन्थ्वाल/अणथ्वाल :- अणथ्वाल सारस्वत ब्रह्मण हैं। जो संवत 1612 में पंजाब से गढ़वाल के अणेथ गांव में आए और तत्पश्चात यहीं के निवासी हो गए। अणथ्वाल जाति के लोग मूलतः अफगानिस्तान मूल के माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अणथ्वाल नाम की एक जाति लाहौर, पाकिस्तान में भी रहती है, जो वहां के हिन्दू मंदिरों की पूजा सम्पन्न कराने का काम करती है।
23- बौखण्डी :- महाराष्ट्र वंशीय बौखंडी ब्राह्मण जाति विलहित से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहां के निवासी हुए। यह जाति स्वयं को भुकुण्ड कवि की संतान बतलाती है।
24- जुगराण/जुगड़ाण :- पांडे मूल वंश के जुगराण नामक गंगाड़ी ब्राह्मण कुमाऊं से संवत 1700 में गढ़वाल आए और यहां के जुगड़ी नामक गांव में बसने के कारण जुगड़ाण और बाद में जुगराण कहलाए।
25- मालकोटी :- गौड़ सरोला ब्राह्मण मालकोटी संवत 1700 में अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के मालकोटी गांव में बस गए और मालकोटी नाम से प्रचलित हुए। इनके मूल पुरुष बालकदास थे।
26- बलोदी :- दविड़ वंश गंगाड़ी ब्राह्मण बलोदी संवत 1400 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल के बलोद नामक गांव में बसने के कारण बलोदी कहलाए।
27- घनसाला/घणसाला :- घणसाला गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1600 में गुजरात से आकर गढ़वाल के घनसाली अथवा घणसाली नामक गांव में बसने के कारण घनसाला अथवा घणसाला नाम से जाने गए।
28- देवरानी/देवराणी :- ये भट्ट जाति के ब्राह्मण हैं। जो संवत 1500 में गुजरात से गढ़वाल में आकर बस गए थे।
29- पोखरियाल :- ये मूलतः गौड़ ब्रह्मण हैं जो संवत 1678 में विलहित से आकर पौड़ी गढ़वाल, चमोली और टिहरी में बसने से पोखरियाल प्रसिद्ध हुए। इनके कुछ लोग नेपाल में प्रसिद्ध शिव मंदिर पशुपति नाथ में पूजाधिकारी हैं।
30- डबराल :- डबराल महाराष्ट्र वंशीय ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1433 में अपने मूल पुरुष विश्वनाथ और रघुनाथ के साथ गढ़वाल के डाबर गांव में आकर बसे थे।
31- सुंदरियाल :- सुंदरियाल ब्राह्मण जाति के लोग संवत 1711 में गढ़वाल आए। ये कर्नाटक वंश के ब्राह्मण हैं जो गढ़वाल के सुन्द्रोली नामक गांव में बसने के कारण सुंदरियाल
कहलाए।
32- किमोटी :- ये गौड़ वंशीय गंगाड़ी ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो कि संवत 1617 में अपने मूल पुरुष रामभजन किमोटा के नेतृत्व में बंगाल से गढ़वाल आए और यहीं किमोता गांव में बस गए।
33- बडोला/बुडोला :- बडोला गौड़ वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण हैं। संवत 1798 में उज्जैन से अपने मूल पुरुष उज्जल के साथ आकर बडोली अथवा बुडोला नामक गांव में बसने से बुडोला कहलाए।
34- पांथरी :- गढ़वाल के गंगाड़ी सारस्वत ब्राह्मण पांथरी जाति के आदि पुरुष अन्थू और पंथराम संवत 1600 में जालंधर से आकर गढ़वाल के पांथर गांव में आकर बसे और पंथारी नाम से जाने जाते हैं।
35- बलोनी/ बलोणी :- बलोनी सारस्वत मूल के ब्राह्मण हैं जो जालंधर से 1776 संवत में गढ़वाल के बलोण गांव में आकर बसे और यहीं के निवासी हो गए। जीवराम इनके मूल पुरुष थे।
36- पुरोहित :- ये जम्मू कश्मीर राजपरिवार के कुल पुरोहित और वहां पुरोहिताई करते थे यही कारण है कि ये पुरोहित नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके पहले गांव दसोली में माने जाते हैं तत्पश्चात ये नागपुर पट्टी में भी बस गए थे।
37- बडोनी/बडोणी :- बडोनी गौड़ ब्राह्मण जाति के लोग सम्वत 1600 में बंगाल से आए और बडोन गांव में बस गए। बडोन गांव में बसने के कारण ही ये बडोनी कहलाए।
38- रुडोला :- तैलंग मूल के ब्राह्मण रुडोला सिंध हैदराबाद से आकर गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों में बस गए।
39- सुन्याल :- अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सोनी गांव में बसने के कारण ये सुन्याल नाम से जाने गए।
40- कोटनाला :- ये गौड़ ब्राह्मण जाति बंगाल के निवासी माने जाते हैं जो बंगाल से से सम्वत 1725 में गढ़वाल के कोटी गांव में आकर बस गए। कोटी गांव में बसने के कारण ये कोटनाला कहलाए।
41- काला :- ऐसा माना जाता है कि काला जाति के लोग गढ़वाल में काली कुमाऊं क्षेत्र से आये और पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी नामक गांव में बस गए।
42- कौंस्वाल :- कौंस्वाल जाति के गंगाड़ी गौड़ ब्राह्मण संवत 1722 में गढ़वाल आए और यहां के कंस्याली नामक गांव में बसने के कारण कौंसवाल कहलाए।
43- वैरागी :- गौड़ मूल के ब्राह्मण वैरागी गढ़वाल में आकर बस गए।
44- मलासी :- गौड़ वंश के मलासी ब्राह्मण अज्ञात स्थान से आकर मलासू गांव में आकर बसे।
45- फरासी :- ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो संवत 1791 में दक्षिण भारत से गढ़वाल में आए और यहां के फरासू नामक गांव में बसने से फरासी नाम से जाने गए।
46- बदाणी/बधाणी :- बदाणी अथवा बधाणी कान्यकुब्ज वंश के गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1722 में कन्नौज से गढ़वाल आए। ये सर्वप्रथम गढ़वाल बधाण परगने में बसे इसीलिए बधाणी अथवा बदाणी कहलाए।
47- गोदुड़ा :- यह गंगाड़ी ब्राह्मण जाति पहले भट्ट थी जो संवत 1718 में दक्षिण भारत से आकर गढ़वाल में बसे। इनके मूलपुरुष गोदू थे। संभवतः उनके नाम से ही इस जाति का नाम गोदुड़ा पड़ा होगा।
48- सैल्वाल :- ये किसी अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल के सैल गांव में बसने के कारण सैल्वाल कहलाए।
49- कुड़ियाल :- कुड़ियाल जाति के गौड़ वंशीय ब्राह्मण बंगाल के मूल निवासी हैं जो संवत 1600 में बंगाल से यहां आए। गढ़वाल के कूड़ी नामक गांव में बसने के कारण ये कुड़ियाल कहलाए।
50- भट्ट :- यह सामान्यतः एक प्रकार की उपाधि थी, जो राजाओं दी जाती थी। कालांतर में ये एक ब्राह्मण जाति के रूप में प्रचलित हुई। भट्ट जाति के लोग मूलतः दक्षिण भारतीय मूल के माने जाते हैं। यह गढ़वाल की एकमात्र जाति है जो सरोला, गंगाड़ी और नागपुरी ब्राह्मणों की सूची में शामिल की गयी है।
51- बौराई/बौड़ाई :- ये गौड़ वंश के ब्राह्मण हैं जो कि अज्ञात स्थान से संवत 1500 में गढ़वाल आए और वहां के बौधर या बौर गांव में बस गए।
52- मैकोटी :- कान्यकुब्ज वंश के मैकोटी गंगाड़ी ब्राह्मण संवत 1622 में कन्नौज से गढ़वाल आए। गढ़वाल के मैकोटी नामक गांव में बसने से ये मैकोटी कहलाए।
53- बिंजोला :- ये द्रविड़ वंश के ब्राह्मण हैं जिनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
54- पोखरियाल :- पोखरियाल जाति के लोग मूलपुरुष गुरुसेन के साथ संवत 1678 में विलहित से गढ़वाल में आए। गढ़वाल में पोखरी गांव में बसने के कारण ये पोखरियाल कहलाए।
55- सिलवाल :- सिलवाल जाति के ब्राह्मण द्रविड़ वंश से सम्बद्ध हैं और ये सम्वत 1600 में बनारस से आकर गढ़वाल के सिल्ला गांव में बसने से सिलवाल हुए।
(स) अन्य ब्राह्मण :- इस श्रेणी में वे सभी ब्राह्मण आते हैं जो उपर्युक्त दोनों श्रेणियों में शामिल नहीं हैं।
बेंजवाल :- बेंजवाल कान्यकुब्ज ब्राह्मण जाति के लोग गढ़वाल के अगस्त्यमुनि क्षेत्र में बेंजी नामक गांव के निवासी हैं जो 11वीं शताब्दी में महाराष्ट्र से यहां आकर बसे। बेंजी गांव में बसने के कारण ही इन्हें बेंजवाल कहा गया। प्रसिद्ध इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर मैं इस जाति वर्णन किया है। ऐसा माना जाता है कि यह ब्राह्मण जाति अगस्त्य ऋषि के साथ आये 64 गोत्रीय ब्राह्मणों में से एक थी।
पंत :- ये मूलतः भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण हैं। जिनके मूल पुरुष जयदेव पंत महाराष्ट्र से 10वीं सदी में तत्कालीन राजाओ के साथ कुमाऊं में आगमन हुआ। तत्पश्चात इनके वंशज चार थोकों में विभाजित हुए जिनसे बाद में मूल कुमाऊंनी पंत ब्राह्मण जाति का आविर्भाव हुआ। बाद में इस जाति के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे और वहीं के मूल निवासी हो गए। इसके अलावा जखमोला, गोदियाल, उपाध्याय, कुकसाल/खुग्साल और खंतवाल आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं लेकिन इनके बारे में जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।
संकलन – नवीन नौटियाल
सन्दर्भ :
1- गढ़वाल हिमालय : इतिहास, संस्कृति, यात्रा और पर्यटन – रमाकांत बेंजवाल, पृष्ठ – 39
2- गढ़वाल का इतिहास – प- हरिकृष्ण रतूड़ी, संपा- – डॉ- यशवंत सिंह कठोच, पृष्ठ – 77
नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में शोधार्थी श्री नवीन चंद्र नौटियाल मूलरूप से उत्तराखंड राज्य के जनपद पौड़ी गढ़वाल के कोट ब्लॉक अंतर्गत रखूण गांव, सितोनस्यू पट्टी के मूल निवासी हैं। उत्तराखंड के इतिहास, साहित्य, भाषा आदि के अध्ययन में उनकी गहरी अभिरुचि है। उनका मानना है कि नई पीढ़ी को अपने इतिहास, परंपराओं, भाषा आदि की जानकारियां जरूर होनी चाहिए। इसीलिए वह सोशल मीडिया पर ऐसी जानकारियों को साझा कर अपनी मुहिम को जारी रखे हुए हैं।
बहुत अच्छी विस्तृत ज्ञानवर्धक जानकारी हेतु धन्यवाद आपका !
आभार कविता जी, आगे भी कोशिश रहेगी कि उत्तराखंड के अतीत की जानकारियों से आम समाज और अपनी नई पीढ़ी को परिचित कराने की।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-08-2019) को "बप्पा इस बार" (चर्चा अंक- 3447) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार सर
आपको भी विघ्नहर्ता भगवान गणेश की चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं
आपसेआपसे अनुरोध है कि (पेटवाल ब्राह्मण जाति में आते है व बीरभूम पश्चिम बंगाल से संवत 980 मेंउत्तराखंड में आये थे) काे भीअपने रिकॉर्ड में दर्ज करने की कृपा करें।
जी, अगले भागों में यह प्रयास रहेगा। आलेख के संकलनकर्ता नवीन नौटियाल जी इसी शोध कार्य से जुड़े हैं।
गढ़वाल के ब्राह्मणों में चमोली जनपद में निवास करने वाले मूल गाँव नेणि नौटि में निवास करने वाले सरौला ब्राह्मणों के बारे में नही बताया गया है ।इसी तरह से अन्य भी छूटे होंगे ।
गढ़वाली जाति के बारे में इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद
KYA GAUD JATI KE BARE ME NAHI LIKHA HAI KUCHH.UTTARAKHAND ME TOH GAUD JATI KE BHI BAHUT BRAMIN HAI
भाई जी कोठारी जाति का तो कोई उल्लेख ही नहीं है इसमें
Sir saudiyal jati ke itihaas ke baare mai nahi likha hai iske ullekh bhi kare …
बहुत सुन्दर जानकारी सर।किन्तु किमोठी ब्राह्मणों के बारें में कहा जाता है कि वे कन्नौज के धारानगरी के पवार वंशीय राजाओं के साथ उनके कुलगूरू के रूप में आये थे जोकि गौड ब्राह्मण थे ये राजा रडुवा में बसे तथा रामभजन जिनका उपनाम कियल था और स्थूल शरीर अर्थात मोटा था,इनका उच्चारण कियलमोटा कहते कहते किमोठा स्थानिक नाम विकसित हुआ, और वहां के रहने वाले किमोठी कहलाए,जो बाद में भिकोना,कान्डई, सलना और मण्डल आदि गांवों में बस गया।
KULSARI caste bhi Brahman jati mein aatee hain. Tehri Garhwal mein.
महोदय मैं जखमोला जाति से सम्बंधित हूँ यदि सम्भव हो तो जखमोला जाति पर भी जानकारी उपलब्ध करवाने की कृपा करें,🙏🙏
महोदय मैं नवानी जाति से हूं। कही पर बताया गया है कि इस जाती के निवासी जो नवन गांव बसे थे उन्हें नेपाली गोरखोआ ने मार दिया था उनमें से एक गर्भवती महिला मायके गई थी उसके पुत्र के जन्म से पुनः नवानी परिवार का विस्तार हुआ। क्या ये विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है?
कृपया करके डूंगरिया जाति के ब्राह्मण के बारे में बताने का कष्ट करें
डुंगरियाल जाति के ब्राह्मण
KULSARI is also caste belonging to Brahmin Caste in Chamoli Garhwal also. Many persons with Surname as KULSARI are found in Pipalkoti village, Kulsari village.
KULSARI caste may also be added in the list of Brahmin.
क्या अवस्थी(गौड़ ब्राह्मण) और उत्तराखंड के डबराल के मध्य शादी हो सकती है।
Please achhe pandito se Puri jankari ke sath reply de please 🙏❤️🙏❤️❤️🙏❤️🙏
Sir ap or hum मूलतः महाराष्ट्र से आए है,,, पंत वाले section m dekhiye,,,I am khantwal
किया आप गोनीयाल बरामहण कै बारे मैं बता सकते हैं
माननीय,क्या मैडोलिया ब्राह्मण जाति है? इनका जातीय इतिहास मिल सकता है?
मैंदओलिया जाति के बारे में जानकारी दीजिएगा।धन्यवाद।
Sir, GHILDIYAL KIS CATEGORY ME AATE HAI?
52 गढो मे एक बीरलंगूरगढ है जो कालनाथ भैरव का गढ है जिसके चमा दोबरियाल (डोबरियाल)तथा चमा को सुल्तान की उपाधि थी जिसने साथ सेनापति रमा वकरोडि (रावत)थे स्वम कमलनाथ भैरव ईष्ट वनकर चमा को पुजारी तथा रमा को मन्दिर सुरक्षित रखने हेतु नियुक्त किया कहा जाता है चमा डोटि (आज नेपाल)का शासक था गोरखो ने डोटि का राज्य नष्ट किया तब ये दोनो लगूर गढ आये इनको खोजते इनका ईष्ट भी गंगाराम गढ आया येसे मे कॄपया दोबरियाल (डोबरियाल)जाति करोयेगा
52 गढो मे एक बीरलंगूरगढ है, जो कालनाथ भैरव का गढ है। जिसके चमा दोबरियाल (डोबरियाल) को सुल्तान की उपाधि थी। जिनके साथ सेनापति रमा वकरोडि (रावत)थे। स्वम कालनाथ भैरव ईष्ट बनकर चमा को पुजारी तथा रमा को मन्दिर सुरक्षित रखने हेतु नियुक्त किया। कहा जाता है, चमा डोटि (आज नेपाल)का शासक था। गोरखो ने डोटि का राज्य नष्ट किया, तब ये दोनो लगूर गढ आये इनको खोजते इनका ईष्ट भी लंगूर गढ आया। जो कालनाथ भैरव है,येसे मे कॄपया दोबरियाल (डोबरियाल)जाति का भी उल्लेख करीयेगा।
ब्राह्मणों में भी जातियों की भरमार है… हमारे समाज को अब इन जातियों से ऊपर उठना चाहिए क्योंकि अब हर कोई अपनी जाति से ऊपर नीचे वाला कार्य कर रहा है। जैसे नाच-गाना पहले किसी एक जाति के लोग करते थे मगर आज सब कर रहे है।
नमस्कार.
आपके इस अनूठे संकलन हेतु आपको साधुवाद.🙏
कहा जाता है कि हमारे पूर्वज उत्तर गया दूबानगरी से चंद वंश के राजा रतन चंद के साथ नेपाल आये. जो देवप्रयाग की ओर संकेत करता है. कृपया देवप्रयाग के ब्राह्मणों मे शुक्ल यजुर्वेदीय त्रिप्रवर माध्यंदिनी शाखा से संबंधित कोई जानकारी हो तो बताने की कृपा करें..
9568799234
Tq sir
I am jayesh valjibhai kala from Junagadh, Gujarat. Here we are scheduled caste brahmin.but we don't know our history. Can u help us??
Basliyals brahmann detail are missing
साधुवाद। आप वास्तव में बधाई के पात्र हैं।
Nice
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रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी को प्रस्तूत करने हेतू आपका अभार ।
कृपया अधिक जानकारी दीजिए
रणू रावत, सूप्या रावत के बाद के रावत और धौंकल सिहं रावत दयाल सिंह रावत के बीच के रावत के विषय में कोई जानकारी हो तो मेल करे
डंडरियाल वंश का भी कोई उल्लेख नहीं मिलता, कृपया इनके मूल अथवा आदि निवास पर भी प्रकाश डालें।
Badola caste is a Brahmin Caste found in pauri district of uttrakhand.
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तैलवाल कान्यकुब्ज ब्राह्मण है ये पश्चिमी मध्यभारत से आकर 1600 संवत में गढ़वाल के तैला गांव में बस गए जिससे इनका नाम तैलवाल पड़ा. पं० रामानंद इनके मूल पुरुष थे.