आलेख
नक्षत्र वेधशाला को विकसित करने की जरूरत
अखिलेश अलखनियां/-
सन् 1946 में शोधार्थियों
और खगोलशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए आचार्य चक्रधर जोशी जी द्वारा दिव्य तीर्थ
देवप्रयाग में स्थापित नक्षत्र वेधशाला ज्योतिर्विज्ञान के क्षेत्र में एक
महत्वपूर्ण भेंट है।
और खगोलशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए आचार्य चक्रधर जोशी जी द्वारा दिव्य तीर्थ
देवप्रयाग में स्थापित नक्षत्र वेधशाला ज्योतिर्विज्ञान के क्षेत्र में एक
महत्वपूर्ण भेंट है।
आचार्य चक्रधर जोशी जी ने
भूतपूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री गणेश मावलंकर की प्रेरणा से सन् 1946 में नक्षत्र
वेधशाला की नींव डाली थी। ताकि यहां ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करके लोग लाभ ले
सकें। साथ ही उन्होंने बड़े परिश्रम से भारत के कोने-कोने में भ्रमण करके अनेक
ग्रन्थ, पांडुलिपियां और महत्वपूर्ण पुस्तकें संग्रहित की। जिसके चलते नक्षत्र
वेधशाला अपने अनूठे संग्रह के कारण क्षेत्रीय और देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण
का केंद्र रहा है।
भूतपूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्री गणेश मावलंकर की प्रेरणा से सन् 1946 में नक्षत्र
वेधशाला की नींव डाली थी। ताकि यहां ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करके लोग लाभ ले
सकें। साथ ही उन्होंने बड़े परिश्रम से भारत के कोने-कोने में भ्रमण करके अनेक
ग्रन्थ, पांडुलिपियां और महत्वपूर्ण पुस्तकें संग्रहित की। जिसके चलते नक्षत्र
वेधशाला अपने अनूठे संग्रह के कारण क्षेत्रीय और देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण
का केंद्र रहा है।
नक्षत्र वेधशाला में
जर्मन टेलीस्कोप, जलघटी, सूर्यघटी, धूर्वघटी, बैरोमीटर, सोलर सिस्टम, राशि बोध,
नक्षत्र मंडल चार्ट, दूरबीनें आदि समेत कई हस्तलिखित ग्रन्थ, भोज पत्र, ताड़ पत्र
और दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, ज्योतिष से सम्बंधित अनेक प्रकार का साहित्य मौजूद
है। मगर, मौजूदा वक्त में इनका सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका एक कारण सरकार की अनदेखी है। समुचित
रखरखाव के अभाव में यहां मौजूद बहमूल्य धरोहरें नष्ट होती जा रही हैं और संबंधित
विषयों के जानकारों, जिज्ञासुओं और साहित्य प्रेमियों को भी इसका लाभ नहीं मिल पा
रहा है। लिहाजा, जरूरी है कि इस स्थान को “साहित्यिक पर्यटन“ स्थल के रूप में
विकसित किया जाए। ताकि देश दुनिया के इन विषयों के शोधार्थियों और जिज्ञासुओं तक
इसकी जानकारी पहुंच सके।
जर्मन टेलीस्कोप, जलघटी, सूर्यघटी, धूर्वघटी, बैरोमीटर, सोलर सिस्टम, राशि बोध,
नक्षत्र मंडल चार्ट, दूरबीनें आदि समेत कई हस्तलिखित ग्रन्थ, भोज पत्र, ताड़ पत्र
और दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, ज्योतिष से सम्बंधित अनेक प्रकार का साहित्य मौजूद
है। मगर, मौजूदा वक्त में इनका सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसका एक कारण सरकार की अनदेखी है। समुचित
रखरखाव के अभाव में यहां मौजूद बहमूल्य धरोहरें नष्ट होती जा रही हैं और संबंधित
विषयों के जानकारों, जिज्ञासुओं और साहित्य प्रेमियों को भी इसका लाभ नहीं मिल पा
रहा है। लिहाजा, जरूरी है कि इस स्थान को “साहित्यिक पर्यटन“ स्थल के रूप में
विकसित किया जाए। ताकि देश दुनिया के इन विषयों के शोधार्थियों और जिज्ञासुओं तक
इसकी जानकारी पहुंच सके।
सरकार इस ओर ध्यान दे तो
“साहित्यिक पर्यटन“ स्थल एक ऐसा कदम होगा, जिससे नक्षत्र वेधशाला में संग्रहित
उपकरणों व साहित्य की उचित व्यवस्था भी हो सकेगी और यह सैलानियों,
साहित्यप्रेमियो, शोधार्थियों के आकर्षण का केंद्र भी बन सकेगा।
“साहित्यिक पर्यटन“ स्थल एक ऐसा कदम होगा, जिससे नक्षत्र वेधशाला में संग्रहित
उपकरणों व साहित्य की उचित व्यवस्था भी हो सकेगी और यह सैलानियों,
साहित्यप्रेमियो, शोधार्थियों के आकर्षण का केंद्र भी बन सकेगा।
उत्तराखंड की कमाई का एक
बड़ा हिस्सा पर्यटन विपणन से भी आता है। इसीलिए सरकार लगातार टूरिज्म डेवलपमेंट पर
भी काम कर रही है। आध्यात्मिक पर्यटन (Spiritual tourism) की तर्ज पर साहित्यिक
पर्यटन जहां नक्षत्र वेधशाला को मजबूती देगा, वहीं दूसरी और यहां पर्यटकों की
आवाजाही से स्थानीय रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे।
बड़ा हिस्सा पर्यटन विपणन से भी आता है। इसीलिए सरकार लगातार टूरिज्म डेवलपमेंट पर
भी काम कर रही है। आध्यात्मिक पर्यटन (Spiritual tourism) की तर्ज पर साहित्यिक
पर्यटन जहां नक्षत्र वेधशाला को मजबूती देगा, वहीं दूसरी और यहां पर्यटकों की
आवाजाही से स्थानीय रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे।
सरकार का ध्यान हमेशा अपना खजाना भरने में रह है यही कारण है कि जरूरी धरोहरें नष्ट होने की कगार पर हैं