आलेख
‘काफल’ नहीं खाया तो क्या खाया?
देवेश आदमी //
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‘काफल’
(वैज्ञानिक नाम- मिरिका एस्कुलेंटा – myrica esculat) एक लोकप्रिय पहाड़ी फल है। इस फल
में अनेकों पौस्टिक आहार छिपे होते है। खनिज लवणों से भरपूर यह फल मानव जीवन से जुड़ा
हुआ है। काफल दुनियां का अकेला फल है जिस पर 9 महीने के फूल (बौर) आने के बाद फल लगते
है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों (उत्तराखंड, हिमाचल) और नेपाल के हिमालयी तलहटी
क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। जो कि सदाबहार होता है, काफल का फल चैत्र
माह में लगता है।
(वैज्ञानिक नाम- मिरिका एस्कुलेंटा – myrica esculat) एक लोकप्रिय पहाड़ी फल है। इस फल
में अनेकों पौस्टिक आहार छिपे होते है। खनिज लवणों से भरपूर यह फल मानव जीवन से जुड़ा
हुआ है। काफल दुनियां का अकेला फल है जिस पर 9 महीने के फूल (बौर) आने के बाद फल लगते
है। उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों (उत्तराखंड, हिमाचल) और नेपाल के हिमालयी तलहटी
क्षेत्र में पाया जाने वाला एक वृक्ष है। जो कि सदाबहार होता है, काफल का फल चैत्र
माह में लगता है।
काफल पर
फूल जेठ माह में आ जाते हैं। काफल के पेड़ पर फल खत्म होने के 1 महीने बाद फूल आ जाते
हैं। इसके पेड़ काफी बड़े होते हैं, ये पेड़ ठण्डी जगहों में होते हैं। काफल के पेड़ मानव
आबादी के इर्दगिर्द होते है। इसका छोटा गुठली युक्त बेरी जैसा फल गुच्छों में आता है।
जब यह कच्चा होता है तो हरा दिखता है और पकने के बाद लाल हो जाता है। इसका खट्टा-मीठा
स्वाद बहुत मन को भाने वाला और पेट की समस्याओं में बहुत लाभकारी होता है। यह पेड़ अनेक
प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है।
फूल जेठ माह में आ जाते हैं। काफल के पेड़ पर फल खत्म होने के 1 महीने बाद फूल आ जाते
हैं। इसके पेड़ काफी बड़े होते हैं, ये पेड़ ठण्डी जगहों में होते हैं। काफल के पेड़ मानव
आबादी के इर्दगिर्द होते है। इसका छोटा गुठली युक्त बेरी जैसा फल गुच्छों में आता है।
जब यह कच्चा होता है तो हरा दिखता है और पकने के बाद लाल हो जाता है। इसका खट्टा-मीठा
स्वाद बहुत मन को भाने वाला और पेट की समस्याओं में बहुत लाभकारी होता है। यह पेड़ अनेक
प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है।
गर्मियों
में लगने वाले ये फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। पहाड़ां से काफल का
अस्तित्व जिस दिन खत्म हो गया उसी दिन पहाड़ों में मानव जीवन भी खत्म हो जाएगा। जर्मनी,
फ्रांस व अमरीका में काफल पर शोध किया गया तो पता चला कि सब से बेहतरीन रंग काफल के
फल, पत्तों व छाल से बनते हैं। काफल का रंग आसानी से नहीं छूटता है
में लगने वाले ये फल पहाड़ी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय है। पहाड़ां से काफल का
अस्तित्व जिस दिन खत्म हो गया उसी दिन पहाड़ों में मानव जीवन भी खत्म हो जाएगा। जर्मनी,
फ्रांस व अमरीका में काफल पर शोध किया गया तो पता चला कि सब से बेहतरीन रंग काफल के
फल, पत्तों व छाल से बनते हैं। काफल का रंग आसानी से नहीं छूटता है
काफल की
छाल से कब्ज, नकसीर, वाइरल फीवर जैसी बीमारियां ठीक होती है। काफल के तनों पर जमी बरसाती
शैवाल एक प्रकार का मसाला है जिस का नाम कल्पासी भी है। यह शैवाल आंतों के रोगों में
भी दवाई बनाने के काम आता है।
छाल से कब्ज, नकसीर, वाइरल फीवर जैसी बीमारियां ठीक होती है। काफल के तनों पर जमी बरसाती
शैवाल एक प्रकार का मसाला है जिस का नाम कल्पासी भी है। यह शैवाल आंतों के रोगों में
भी दवाई बनाने के काम आता है।
विशेषकर
उत्तराखंड की अगर हम बात करें, जिसे देवभूमि कहा जाता है, यहां पर 500 से भी अधिक प्राकृतिक
वनस्पतियों, औषधियों का भण्डार है।
उत्तराखंड की अगर हम बात करें, जिसे देवभूमि कहा जाता है, यहां पर 500 से भी अधिक प्राकृतिक
वनस्पतियों, औषधियों का भण्डार है।
काफल में
बहुत सारे के प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं-
बहुत सारे के प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं-
1- इस प्राकृतिक
फल में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं।
फल में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व पेट से संबंधित रोगों को खत्म करते हैं।
2- इसकी
पत्तियों में फ्लावेन -4‘-हाइड्रोक्सी-3 ग्लाइकोसाइड्स और
मैरिकिट्रिन पाया जाता है।
पत्तियों में फ्लावेन -4‘-हाइड्रोक्सी-3 ग्लाइकोसाइड्स और
मैरिकिट्रिन पाया जाता है।
3- दांतून
बनाने से लेकर, चिकित्सा के अन्य कार्यों में इसकी छाल का उपयोग सदियों से होता रहा
है।
बनाने से लेकर, चिकित्सा के अन्य कार्यों में इसकी छाल का उपयोग सदियों से होता रहा
है।
4- इस फल
का रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।
का रस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।
5- कब्ज
हो या एसिडिटी आप काफल खाएं, इससे पेट की समस्या खत्म होती है।
हो या एसिडिटी आप काफल खाएं, इससे पेट की समस्या खत्म होती है।
6- यदि
आप काफल के पेड़ की छाल से निकलने वाले सार को दालचीनी और अदरक के साथ मिलाकर इसका सेवन
करते हो तो आप पेचिश, बुखार, अस्थमा और डायरिया आदि रोगों से आसानी से बचाव कर सकते
हैं।
आप काफल के पेड़ की छाल से निकलने वाले सार को दालचीनी और अदरक के साथ मिलाकर इसका सेवन
करते हो तो आप पेचिश, बुखार, अस्थमा और डायरिया आदि रोगों से आसानी से बचाव कर सकते
हैं।
7- इसकी
छाल को सूंघने से आंखों के रोग व सिर का दर्द आदि रोग ठीक हो सकते हैं।
छाल को सूंघने से आंखों के रोग व सिर का दर्द आदि रोग ठीक हो सकते हैं।
8- काफलड़ी
चूर्ण इसकी छाल से बने हुए चूर्ण को कहा जाता
है। इसमें अदरक व शहद का रस मिलाकर पीते हो तो इससे आपकी गले की बीमारियां व खांसी
के अलावा सांस से संबंधित रोग भी आसानी से ठीक हो सकते हैं।
चूर्ण इसकी छाल से बने हुए चूर्ण को कहा जाता
है। इसमें अदरक व शहद का रस मिलाकर पीते हो तो इससे आपकी गले की बीमारियां व खांसी
के अलावा सांस से संबंधित रोग भी आसानी से ठीक हो सकते हैं।
9- इसके
साथ ही इसके तेल व चूर्ण को भी अनेक औषधियों के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है।
साथ ही इसके तेल व चूर्ण को भी अनेक औषधियों के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है।
जब भी आप
काफल खाएं या काफल तोड़ें पेड़ की टहनियां न तोड़ें…, जंगलों में आग न लगाएं। कहीं आग
लग रही हो तो तुरंत बुझाने की कोशिश करें। वन विभाग व पुलिस को सूचित करें। वनों में
आग लगाकर किसी का भला नही होता है। प्राकृतिक संपदा जलकर राख हो जाती है। जलस्रोत सुख
जाते है। इससे काफल का अस्तित्व भी खतरे में पहुंच जाएगा। रसीले काफल खाने है तो जंगलों
को बचाना होगा।
काफल खाएं या काफल तोड़ें पेड़ की टहनियां न तोड़ें…, जंगलों में आग न लगाएं। कहीं आग
लग रही हो तो तुरंत बुझाने की कोशिश करें। वन विभाग व पुलिस को सूचित करें। वनों में
आग लगाकर किसी का भला नही होता है। प्राकृतिक संपदा जलकर राख हो जाती है। जलस्रोत सुख
जाते है। इससे काफल का अस्तित्व भी खतरे में पहुंच जाएगा। रसीले काफल खाने है तो जंगलों
को बचाना होगा।
देवेश आदमी