हिन्दी-कविता

मुट्ठियों को तान दो

मुट्ठियां भींचो मगर
मुट्ठियों में लावा भरकर
मुट्ठियों को तान दो
दुर व्यवस्था के खिलाफ़
इस हवा को रूद्ध कर दो
मुट्ठियां विरूद्ध कर दो
अराजक वितान में. तुम
मुट्ठियों को तान दो
वाद वादी की खिलाफ़त
छद्धम युद्धों से बगावत
मुट्ठियों की है जुर्रत
मुट्ठियों को तान दो
सवाल दर सवालों के
जवाब होंगी मुट्ठियां
हाथ फ़ैला मिले न हक
मुट्ठियां लहरा के खुद
उसके हलक से खींच लो
मुट्ठियों को तान दो
बात मानें शब्दों की तो
शब्द भर दो मुट्ठियों में
हर शाख उल्लू बैठा हो जब
हथियार थामों मुट्ठियों में
जिंदादिल हैं मुट्ठियां
मुट्ठियों को तान दो
आवाज दो आवाज दो
मुट्ठियों को तान दो
Copyright@ Dhanesh Kothari

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