पहाड़ के उजड़ते गाँव का सवाल
उत्तराखंड की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांव मैं निवास करती है। 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश में लगभग 6 लाख 41 हजार गांव हैं। उत्तराखंड में भी लगभग 16,826 गांव हैं। लेकिन पहाड़ों का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जिसमें 40 प्रतिशत से कम पलायन हुआ होगा। पहाड़ के खासकर उत्तराखंड हिमालय में औपनिवेशिक काल से ही पलायन झेल रहे हैं, इसलिए गांव का कम से कम इतना उत्पादक होना जरुरी है कि वहां के निवासी वहीं रहकर अपना भरण पोषण करने के अलावा अपनी जरूरतें आराम से पूरी कर सकें। लेकिन ज्यादातर पहाड़ अनुत्पादकता के संकट से जूझ रहे हैं।
जबकि कहा जाता है की पहाड़ (विशेषतः हिमालयी ) संसाधनिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। परन्तु विरोधाभास ये है कि राज्य बनने के इतनी वर्षों बाद भी गांवों से पलायन नहीं रुका और यहां के गांव की लगभग आधी आबादी रोजी-रोटी की तलाश में प्रवास कर रही है। स्पष्ट है की गांव का उत्पादन तंत्र कमजोर है।
अर्थशास्त्र की किताब में पहाड़ के गांव का अर्थशास्त्र सदियों से एक जटिल चुनौती भरा और अनुत्तरित प्रश्न रहा है। हम उसके बारे में सोच पाना तो दूर उसे लेकर घबराते रहे हैं और आज भी कमोबेश हमारी अर्थव्यवस्था लगभग सरकार आश्रित है।
आखिर पहाड़ के गांव अनुत्पादक क्यूं हैं दरअसल अभी तलक शासन के स्तर पर पहाड़ की संसधानिक संरचना तथा उत्पादन प्रवृति और बाजार की समझ एवं पहचान नहीं दिखाई पड़ती है, जबकि पहाड़ों में आर्थिक संरचना के आधार की प्रवृति और क्षमता भिन्न है जिसे कभी पहाडो की दृष्टि से नहीं समझा गया। इसलिए पहाड़ों के विकास के उत्तर को खोजने के लिए पहाड़ों के आर्थिक /उत्पादन सिद्धांत को समझना होगा।
दूसरी और यह विकास की नयी समझ और नए प्रयोगों का युग है, लेकिन पहाड़ो के विकास को लेकर नयी समझ का अभाव दिखता है इसलिए विकास की दृष्टि से आज भी गांव हाशिये पर हैं। पहाड़ के गांव की उत्पादकता रोजगार सृजन और समृधि के सवाल आम आदमी से गहरे जुड़े हैं, लेकिन ये आम आदमी के स्तर पर हल नहीं हो सकते क्योंकि ये कहीं न कहीं राजनैतिक सवाल हैं और इसका जवाब भी राजनैतिक स्तर पर ही निहित है।
अतः हमने इस बार राज्य के प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों को इस सवाल पर अपना दृष्टिकोण रखने हेतु आमंत्रित किया है ताकि हम जान सकें की इस सवाल पर उनका विजन क्या है और उनके मेनिफेस्टो और एजेंडे में गांव कहां पर है या वे गांव के विकास को लेकर क्या सोचते है या गांव के सवाल पर उनका उत्तर क्या है।
धरती का लगभग27 प्रतिशत भाग पहाड़ों का है पहाड़ों के पास प्रकृति की संरचना के रूप में जहां एक और पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण संरचना, नदी तंत्र और ताजा पानी के स्रोत हैं तो दूसरी और मानव जीवन के रूप में उन पर बसे हुए अनेक समाज उनकी संस्कृतियां, परम्पराएं तथा भाषाओँ का धरातल है। दुनिया की लगभग 12 प्रतिशत आबादी पहाड़ों में निवास करती है और 22 प्रतिशत जनता पहाड़ों पर आश्रित है अधिकांश पहाड़ सदियों से गरीब लोगों के आवास रहे हैं।
आज दुनिया भर के पहाड़ों के सामने पर्यावरण पारिस्थितिकी के अलावा उत्पादक होने का संकट भी है। इसलिए पहाड़ के लोगों के मन में अपने आर्थिक सवालों को लेकर हमेशा एक तड़प रही है। ऐसे ही कुछ पहाड़ों की चिंताओं को लेकर विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन ने 11 दिसम्बर 2002 को न्यूयोर्क में एक सम्मलेन आयोजित किया बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव संख्या 57/245 के द्वारा 2003 से इस दिन को विश्व पहाड़ दिवस मनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य दुनिया में पहाड़ों के स्थायी विकास तथा विश्व में पहाड़ों की भूमिका के प्रति जागरूकता के लिए कार्य करना है।
यूं तो इस वर्ष पहाड़ दिवस की थीम भिन्न है, लेकिन हमने अपनी मुख्य चिंता “पहाड़ के उजड़ते हुए गांवों का सवालः विकास की चुनौतियां और उसकी संभावनाएं“ विषय पर बहस आयोजित की है जिसमे निम्न वक्ताओं ने अपने विचार रखने हेतु सहमति दी है।