गढ़वाली-कविता

त्राही-त्राही त्राहिमाम… (गढ़वाली कविता)

https://www.bolpahadi.in/2020/05/blog-post-trahi-trahi-trahimam-gargwali-poem-durga-nautiyal.html

• दुर्गा नौटियाल
त्राही-त्राही त्राहिमाम, 
तेरि सरण मा छां आज।
कर दे कुछ यनु काज, 
रखि दे हमारि लाज।।
संगता ढक्यां छन द्वार,
मुस्कौं न घिच्चा बुज्यान।
खट्टी-मिट्ठी भितर-भैर,
ह्वेगे कनि या जिबाळ।
बिधाता अब त्वी बचो, 
ईं विपदा तैं हरो।
करदे कुछ यनु काज, 
रखि दे हमारी लाज।।
त्राही-त्राही त्राहिमाम…
पित्र होला दोष देंणा,
देवता होलु नाराज क्वी।
लोग सब्बि बोळ्न लग्यां,
त्वी कारण निवारण त्वी।
मेरा इष्ट, कुल देबतों, 
अब त दिश्ना द्या चुचों।
करदे कुछ यनु काज, 
रखि दे हमारी लाज।।
त्राही-त्राही त्राहिमाम…
धाण काज अब नि राई,
खिस्सा बटुवा ह्वेगे खालि।
लोण तेल लौण कनै,
लाला बंद करिगे पगाळी।
हे भगवती अब दैणि हो, 
ईं बैतरणी तै तरो।
करदे कुछ यनु काज, 
रखि दे हमारी लाज।।
त्राही-त्राही त्राहिमाम…
रीता गौं बच्याण लग्यां,
तिवारी हैंसण बैठिगे।
बिसरिगे था जु बाटा,
आज तखि उलार बौडिगे।
हे भूमि का भूम्याल, 
तुम दैणा ह्वेजा आज।
करदे कुछ यनु काज, 
रखि दे हमारी लाज।।
त्राही-त्राही त्राहिमाम…
https://www.bolpahadi.in/2020/05/blog-post-trahi-trahi-trahimam-gargwali-poem-durga-nautiyal.html
(लेखक दुर्गा नौटियाल वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं)

Related Articles

5 Comments

Leave a Reply to prabodh uniyal Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button