Year: 2019
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राजशाही को हम आज भी ढो रहे
डॉ. अरुण कुकसाल/- ’हे चक्रधर, मुझे मत मार, घर पर मेरी इकत्या भैंस है जो मुझे ही दुहने देती है।…
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‘खुद’ अर ‘खैरि’ की डैअरि (diary)
समीक्षक -आशीष सुन्दरियाल / संसार की कै भि बोली-भाषा का साहित्य की सबसे बड़ी सामर्थ्य होंद वेकी संप्रेषणता अर साहित्य…
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कही पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो
जनकवि- डॉ. अतुल शर्मा/ गांव-गांव में नई किताब लेके चलो कहीं पे आग कहीं पे नदी बहा के चलो। हर…
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‘काफल’ नहीं खाया तो क्या खाया?
देवेश आदमी // ************** ‘काफल’ (वैज्ञानिक नाम- मिरिका एस्कुलेंटा – myrica esculat) एक लोकप्रिय पहाड़ी फल है। इस फल में…
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नक्षत्र वेधशाला को विकसित करने की जरूरत
अखिलेश अलखनियां/- सन् 1946 में शोधार्थियों और खगोलशास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए आचार्य चक्रधर जोशी जी द्वारा दिव्य तीर्थ देवप्रयाग…
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रिव्यू
अतीत की यादों को सहेजता दस्तावेज
– संस्मरणात्मक लेखों का संग्रह ‘स्मृतियों के द्वार’ – रेखा शर्मा ‘गांव तक सड़क क्या आई कि वह आपको भी…
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मेरि ब्वै खुणै नि आइ मदर्स डे (गढ़वाली कविता)
पयाश पोखड़ा // मेरि तींदि गद्यलि निवताणा मा, मेरि गत्यूड़ि की तैण रसकाणा मा, लप्वड़्यां सलदरास उखळजाणा मा, मेरि ब्वै…
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लोकभाषा के एक भयंकर लिख्वाड़ कवि (व्यंग्य)
ललित मोहन रयाल // लोकभाषा में उनका उपनाम ’चाखलू’ था, तो देवनागरी में ’पखेरू’। दोनों नाम समानार्थी बताए जाते थे।…
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फेसबुक अकौंट औफ ब्वाडा … (व्यंग्य)
यस. के थपल्याल ’घंजीर’ / / हे वै निरबै दलेदरा! निगुसैंकरा तु मेरू फीसबुक अकौंट किलै नि खोलणु छै रै……
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‘जानलेवा’ कवि (व्यंग्य)
ललित मोहन रयाल // ‘जानलेवा’ उनका तखल्लुस था, ओरिजिनल नाम में जाने की, कभी किसी ने जरूरत ही नहीं समझी।…
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