गढ़वाली-कविता
पहाड़ आवा (गढवाली कविता)
हमरि पर्यटन कि दुकानि खुलिगेन पहाड़ आवाहमरि चा कि दुकान्यों मा ‘तू कप- टी’ बोली जावा पहाड़ आवा हमरा गुमान…
Read More »चुसणा मा… (गढवाली कविता)
बस्स बोट येक दे ही द्या हात ज्वड़्यां खुट्टम् प्वड़दां बक्कै बात हमुन जाणि किलै कि/ भोळ् त चुसणा मा…
Read More »लोक – तंत्र (गढवाली कविता)
हे रे लोकतंत्र कख छैं तू अजकाल गौं मा त् प्रधानी कि मोहर वीं कू खसम लगाणु च बिधानसभा मा…
Read More »सोरा (गढवाली कविता)
सोरा भारा कैका ह्वेन जैंन माणिं सि बुसेन कांद लगै उकाळ् चढै़ तब्बि छाळों पर घौ लगैन दिन तौंकु रात…
Read More »बणिगे डाम
१ बणिगे डाम लगिगे घाम प्वड़िगे डाम मिलिगेन दाम २ सिद्ध विद़द खिद्वा गिद्ध उतरिगेन लांकि मान ३ सैंन्वार खत्म…
Read More »मार येक खैड़ै (गढवाली कविता)
तिन बोट बि दियाली तिन नेता बि बणैयाली अब तेरि नि सुणदु त मार येक खैड़ै ब्याळी वु हात ज्वड़दु…
Read More »पांसा (गढवाली कविता)
1 रावण धरदा बनि-बनि रुप राम गयां छन भैर चुरेड चुडी पैरौणान सीता देळी मु बैठीं डौर 2 अफ्वीं बुलौंदी…
Read More »म्यारा डेरम (गढवाली कविता)
म्यारा डेरम गणेश च चांदरु नि नारेण च पुजदारु नि उरख्याळी च कुटदारु नि जांदरी च पिसदारु नि डौंर थाळी…
Read More »भैजी !!
कंप्यूटर पर न खुज्यावा पहाड़ थैं पहाड़ ऐकि देखिल्यावा पहाड़ थैं सुबेर ह्वेगे, कविलासूं बटि गुठ्यार तक खगटाणिन् तब्बि दंतुड़ी,…
Read More »र्स्वग च मेरू पहाड़ (गढवाली कविता)
गौं मा पाणि नि पाणि नि त मंगरा नि मंगरा नि त धैन-चैन नि धैन-चैन नि त धाण नि धाण…
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