गढ़वाली-कविता
लोक – तंत्र (गढवाली कविता)
हे रे
लोकतंत्र
कख छैं तू अजकाल
गौं मा त्
प्रधानी कि मोहर
वीं कू खसम लगाणु च
बिधानसभा मा
बिधैक सिर्फ बकलाणु च
लोकसभा मा
सांसद दिदा तनख्वाह मा
बहु-बहु-गुणा चाणु च
अर/ लोक
तंत्र का थेच्यां
भाग थैं कच्याणु च
स्यू कख छैं
मुक लुकाणू
ग्वाया लगाणु
धम्म-सन्डैं दिखाणु
हे रे लोकतंत्र !!